युवाओं में बढ़ता हैड नेक कैंसर का खतरा
गुटका और पान मसालों पर प्रतिबंध कितना प्रभावी
नई दिल्ली : देशभर में प्रतिवर्ष दस लाख से अधिक मुख और गले के कैंसर रोगी सामने आ रहे है, और जिनमें से 50 प्रतिशत की मौत बीमारी की पहचान के अंतराल में ही हो जाती है। इसमें युवा अवस्था में होने वाली मौतों का कारण भी मुंह व गले का कैंसर मुख्य है।
हलांकि पूरी दुनिया भर में विश्व गला व सिर कैंसर दिवस आज ही के दिनमनाया जा रहा है, लेकिन अभी तक इससे होेने वाली मौत पर सरकार पूरी तरह से रेाक लगाने में असफल सी साबित हो रही है। पिछले 16 सालों में मुख और गले के कैंसर रोगियेां की संख्या पुरुषों
और महिलाओं में तीव्र गति से बढ़ती जा रही है। इसका खुलासा एशियन पेसिफिक जर्नल ऑफ कैंसर प्रिवेंशन में जारी रिपोर्ट में हुआ है।
वायस ऑफ टोबेको विक्टिमस के पैटर्न व कैंसर रोग विशेषज्ञ डा. हरित चतुर्वेदी कहते हैं कि देशभर में लाखों लोगों में देरी से इस बीमारी की पहचान, अपर्याप्त इलाज व अनुपयुक्त पुनर्वास सहित सुविधाअेां का अभाव है। करीब 30 साल पहले तक 60 से 70 साल की उम्र में मुंह और गले का कैंसर का कैंसर होता था, लेकिन अब यह उम्र कम होकर 30 से 50 साल तक पहुंच गई। वही आजकल 20 से 25 वर्ष के कम उम्र के युवाओं में मुंह व गले का कैंसर देखा जा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण हमारी सभ्यता का पाश्चात्यकरणतथा युवाअेां में
स्मोकिंग को फैशन व स्टाइल आइकान मानना है। मुंह के कैंसर के रोगियों की सर्वाधिक संख्या भारत में है।
स्मोकिंग को फैशन व स्टाइल आइकान मानना है। मुंह के कैंसर के रोगियों की सर्वाधिक संख्या भारत में है।
भारत में पूरे विश्व की तुलाना में धूम्ररहित चबाने वाले तंबाकू उत्पाद (जर्दा,गुटखा,खैनी,) का सेवन सबसे अधिक होता है। यह सस्ता
और आसानीसे मिलने वाला नशा है। पिछले दोदशकेां में इसका प्रयोग अत्यधिक रुप से बढ़ा है, जिस कारण भी हैड नेक कैंसर के रोगी बढ़े, डा.चतुर्वेदी बतातें है कि ’इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिर्सच द्वारा वर्ष 2008 में प्रकाशित अनुमान के मुताबिक भारत में हैड नेककैंसर के मामलों में वृद्वि देखी जा रही है, कैंसर में इन मामलों में नब्बे फीसदी तम्बाकु, मदिरा व सुपारी के सेवन से होतें है और इस प्रकार के कैंसर की रोकथाम की जा सकती है।’
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान (आईसीएमआर) की रिपोर्ट मे भी इस बात का खुलासा किया गया है कि पुरुषों में 50% और स्त्रियों में 25% कैंसर की वजह तम्बाकू है। इनमें से 60%मुंह के कैंसर हैं। धुआ रहित तम्बाकू में 3000 से अधिक रासायनिक यौगिक हैं, इनमें से 29 रसायन कैंसर पैदा कर सकते हैं उन्होने कहा कि हैड नेक कैंसर के मामले राष्टीय स्वास्थ्य योजनाओं, वंचित लोगों, परिवारों व समुदायों पर भार बढा रहे हैं। भाग्यवश हैड नेक कैंसर से जुडे अधिकांश, मामलों में यदि बीमारी का पता पहले लग जाये तो इसे रोका जा सकता है और ईलाज भी किया जा सकता है। लेकिन लाखों लाखों लोग रोग की देरी से पहचान, अपर्याप्त ईलाज व अनुपयुक्तपुनवर्वास सुविधाओं के शिकार हो जाते है।’ जिस कारण कितनी ही मातांए व पत्नी व बहिने परिवारजनो से वंचित हो जाती है।
टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के प्राचार्य और सर्जन डा. पंकज चतुर्वेदी जो इस अभियान की अगुवाई वैश्विक स्तर पर कर रहे है, कहते है ’ हैड नेक कैंसर के नियंत्रण के लिये सरकारो,एनजीओ, चिकित्सा व स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, सामाजिक संगठनों, शिक्षा व उघोग संस्थानों सहित बहु क्षेत्रिय सहयोग की आवश्यकता है। हैड नेक कैंसर पर प्रभावी नियंत्रण औरईलाज की और वैश्विक ध्यान आकर्षित करने के लिये अंतर्राष्टीय फेडरेशन ऑफ हेड एण्ड नेक ऑनोलोजिक सोसाईटिज - आईएफएचएनओएस- ने जुलाई 27 को विश्व सिर, गला कैंसर दिवस डब्ल्यु एचएनसीडी- के रूप में मनाये जाने का प्रस्ताव रखा और आज यह मनाया जाने लगा है। फेडरेशन को इसके लिये अनेक
सरकारी संस्थानों, एनजीओ, 55 से अधिक सिर व गला कैंसर संस्थानों व 51 देशों का समर्थन प्राप्त है।
सरकारी संस्थानों, एनजीओ, 55 से अधिक सिर व गला कैंसर संस्थानों व 51 देशों का समर्थन प्राप्त है।
डा.पंकज चतुर्वेदी बतातें है कि एशियन पेसिफिक जर्नल ऑफ कैंसर प्रिवेंशन 2008 व 2016 में प्रकाशित शोध पत्र के अनुसार 2001 में पुरुषों में मुँह का कैंसर के 42725 वंही 2016 में 65205, वंही महिलाओं में 22080 व 35088, गले और श्वासं नली 49331, 75901, महिलाओं में 9251,14550, भोजन नली 24936 व 38536 वंही महिलाओं में17511व 28165, अमाश्य में 20537 व 31538 वंही महिलाओं में 11162 व 17699, फैंफड़े 39262 व 60730 वंही महिलाओं में 9525 व 15191,स्तन कैंसर महिलाअेां में89914 व 140975, गर्भाश्य महिलाओं में 79827 व 125821 तथा अन्य तरह के 214967 व 315840 तथा महिलाअेां में 166629 व 252410 रोगी पाए गए।
मैक्स इंडिया फाउडेशन की माहिनी दलजीत सिंह ने बताया कि देश में अनेक परेशानियों के बावजूद, हालंाकि गुटखे पर, जो की एकधुंआ रहित औधोगिक उत्पाद है, पर लगभगपूरे भारत पर प्रतिबंध लग गया है। गुटखे के अलावा,13 राज्यों ने अब उत्पादित सुगंधयुक्त चबाने वाले तम्बाकु को भी निषेध कर दिया है ’तम्बाकु पीडितों की आवाज’ नामक तम्बाकु पीडितों के स्वयं के द्वारा चलाये गये निरंतर आंदोलन के परिणामस्वरूप यह प्रतिबंध प्रभाव में आया। इस आंदोलन से देश के नामी कैंसर विशेषज्ञ भी जुड गये। उन्होने बताया कि वर्ष 2014 में जॉन हॉपकिंस यूनिर्वसिटी ब्लूूमबर्ज स्कूल ऑफ पब्लिक हैल्थ व विश्व स्वास्थ्य संगठन ने गुटखा प्रतिबंध के प्रभावों पर एक अध्यन करवाया अध्ययन के दोरान देश के सात राज्यों: असम, बिहार, गुजरात, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट उड़ीसा और दिल्ली में 1,001 वर्तमान व पूर्व गुटखा उपभोक्ताओं और 458 खुदरातम्बाकु उत्पाद विक्र्रताओं पर सर्वे किया गया।इस सर्वे में सामने आया कि 90 फीसदी रिस्पोडेंन्ट्स ने इच्छा जताई कि सरकार को धुंआ रहित तम्बाकु के सभी प्रकार के उत्पादों की
बिक्री और डिस्टिब्यूशन पर प्रतिबंध लगा देना चाहिये। इस पर 92 फीसदी लोगों ने प्रतिबंध का समर्थन किया। 99 फीसदी लोगों ने कहा कि भारतीय युवाओं के स्वाथ्य के लिये प्रतिबंध अच्छा है। जो लोग प्रतिबंध के बावजूदगैरकानूनी ढंग से पैकेज्ड तम्बाकु का सेवन करतेहै उनमें से आधे लोगों ने कहा कि प्रतिबंध के बाद उनके गुटखा सेवन में कमी आई है। 80 फीसदी लोगो ने विश्वास जताया कि प्रतिबंध ने उन्हें गुटखा छोडने के लिये प्रेरित किया है और इनमें से आधे लोगों ने कहा उन्होने वास्तव में छोडने की कोशिश भी की है। प्रतिबंध के बाद जिन लोगों ने गुटखे का सेवन छोडा उनमें से प्रत्येक राज्य से एक बडे हिस्से -41 -88 फीसदी ने कहा कि प्रतिबंध के बाद उन्होने गुटखे का सेवन छोड दिया।
इंडेक्स ऑफ इंडिस्टरियल प्रोडक्शन आईआईपी- के आंकडो के मुताबिक सिगरेट, बीडी व चबाने वाले तम्बाकु उत्पादों को उत्पाद मार्च 2015 में पिछले वर्ष की अपेक्षा 12.1 फीसदीगिर गया, चबाने वाले तम्बाकु उत्पाद पर प्रतिबंध के प्रभाव यूरोमोनिटर इंटरनेशनल की रिपोर्ट दर्शाती है, जिसके मुताबिक धुआं तम्बाकु उत्पाद में निम्न गिरावट देखी गई है- वर्ष 2011: 2 प्रतिशत 2012: 26 प्रतिशत 2013 य 80 प्रतिशत पूर्वानुमान के मुताबिक यह दर 2014 मे 40 फीसदी तक और 2015 में करीब 35 प्रतिशत तक गिर गई। 2016 तक 30 व 2018 में 25 फीसदी तक गिर जायेगी।
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