सौ बार भी पार्टी, परिजन और पंजाब में चुनना पड़े तो मैं सौ बार पंजाब को ही चुनूंगा: सिद्धू
राज्यसभा से इस्तीफा देने के बाद पहली बार मीडिया के सामने आए, नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा कि "मैं आज कोई व्यक्तिगत बात नहीं करने आया हूं।" बड़ी गहरी बात है। इसे कुएं में मत फेंकना। उन्होंने कहा कि सवालिया मुद्दा ये है कि नवजोत सिंह सिद्धू ने राज्यसभा से इस्तीफा क्यों दिया। सिद्धू ने बताया कि उन्होंने 'राज्यसभा से इस्तीफा इसलिए दिया क्योंकि मुझे कहा गया था कि पंजाब की तरफ मुंह नहीं करोगो।' तुम पंजाब से दूर रहोगे। सिद्धु का कहना है कि सिद्धु कैसे राजधर्म छोड़ सकता है। सिद्धू कैसे अपने उस वतन को छोड़ सकता है, जहां की जनता ने उसे चार बार जिताया है। राज्यसभा मुझे इसी शर्त पर भेजा गया था कि मैं पंजाब से दूर रहूं। राष्ट्रभक्त पक्षी भी अपना पेड़ नहीं छोड़ते। मैं तो इंसान हूं। नवजोत सिंह सिद्धू का कहना दुनिया की कोई पार्टी पंजाब से बड़ी नहीं है। कोई धर्म पंजाब से बड़ा नहीं। मुझे किसी नफे नुकसान की परवाह नहीं। पंजाब पर सिद्धु जैसे परवाने न्यौछावर हो।
सिद्धू ने बताया कि पहली बार जब उन्हें अमृतसर से बीजेपी ने चुनाव लड़ाने का फैसला किया उस वक्त मैं पाकिस्तान में कमेंट्री कर रहा था। मेरे पास सिर्फ 17 दिन थे। मैंने चुनाव लड़ने से मना कर दिया। लेकिन, अटल बिहारी वाजपेयी जी के कहने पर मैंने चुनाव लड़ने का फैसला लिया। नवजोत सिंह सिद्धू का कहना है कि मेरे ऊपर केस दर्ज हुआ तो एक मिनट भी नहीं लगाया इस्तीफा देने में। पार्टी ने मुझे सरेंडर करने को कहा, मैंने फौरन सरेंडर किया। कोर्ट ने नैतिकता के आधार पर मुझे चुनाव लड़ने की इजाजत दी। जब मोदी साहब की लहर आई तो विरोधी तो डूबे, मुझे भी डुबो दिया।
मुझे कुरुक्षेत्र और वेस्ट दिल्ली से चुनाव लड़ने का ऑफर दिया गया। लेकिन, मैंने अपनी जड़ नहीं छोड़ी। मैं चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन, मैंने अमृतसर के लेागों का भरोसा नहीं तोड़ा। सिद्धू का कहना है कि अगर उन्हें सौ बार भी पार्टी, परिजन और पंजाब में चुनना पड़े तो मैं सौ बार पंजाब को ही चुनूंगा। सिद्धु का कहना है कि मैं हमेशा पंजाब और अमृतसर के लिए ही काम करुंगा। पंजाब ने मुझे बहुत कुछ दिया है।
बीजेपी से वफादारी पर सिद्धू ने एक दोहा पढ़ा, उन्होंने कहा, "आग लगी इस वृक्ष में जरन लगे सब पात, तुम पंछी क्यों जरत हौ, जब पंख तुम्हारे पास।" तो पक्षियों ने कहा, फल खाए इस वृक्ष के गंदे कीन्हें पात….अब फर्ज हमारा यही है कि जलें इसी के साथ।’
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