आधुनिकता ज़रूरी या संस्कृति

आधुनिक दौर टेक्नोलॉजी व तेज़ी का युग है और पूरा विश्व इसके साथ चलना चाहता है और बेशक चल भी रहा है | भारत एक ऐसा देश है जो विभिन्न संस्कृति, धर्म और जीवनशैलियों से मिल कर बना है जो निःसंदेह ही इसकी पहचान भी है | हमारे देश में ये चर्चा हमेशा से ही रही है कि किसी भी व्यक्ति के लिए उसकी संस्कृति ज़रूरी है या आधुनिकता | इस बात में कोई दोराहे नहीं की बदलाव प्रक्रति का नियम है सुर इसके साथ चलना बेहतर ही नहीं बल्कि ज़रूरी भी है | पर उसी समय अपने संस्कारों और परम्परा का भी सम्मान करना अनिवार्य है, तो इस दौर के व्यक्ति को क्या करना चाहियें? समय के साथ बदल जाना चाहिए या अपनी संस्कृति से जुड़े रहना चाहिए?

गौरतलब है कि किसी भी एक खेमे में रह जाना उस व्यक्ति विशेष के लिए लाभदायक नहीं होगा, ऐसे में दोनों का कुछ अनिवार्यित हिस्सा ले लिया जाए तो न केवल यह सबसे बेहतर विकल्प होगा बल्कि समाज के भी विकास में रुकावट नहीं बनेगा | अर्थात् पूर्ण रूप से आधुनिक हो जाना व संस्कारों को भूल जाना व्यक्ति को समय के साथ चलने में मदद तो करता है पर भारत जैसे देख में उसे बाकी समाज से दूर कर देता है और यह आज कल के युवाओं में आम तौर पर देखा भी जाता है | इसी प्रकार अपनी परंपरा और संस्कृति से जुड़े रह कर किसी भी बदलाव को न अपनाने वाला व्यलती भी समाज से मेल नहीं खाता और यह अक्सर देखा जाता है कि पढ़े लिखे व आधुनिक लोग इस तरह के लोगों के साथ ज्यादा जुड़ नहीं पाते | अब ज़रूरी हो जाता है की आप आधुनिक भी हो और अपनी परंपरा से भी जुड़े रहे | दोनों का मिश्रण ले कर चलना सबके साथ मेल खाने में भी मदद करता है और आपकी पहचान भी मज़बूत बनता है |

निःसंदेह ही जीन्स के ऊपर खाड़ी कुर्ता, शर्ट पेंट के ऊपर कोठी (नेहरु जैकेट) या फैशनेबल कपडों के साथ जुती (मोजड़ी) पहनने वाले आज के दौर में केवल टीशर्ट जीन्स और फंकी जूते वाले लोगों से खासे बेहतर साबित होते है | अंग्रेजी गाने सुनने वाला व्यक्ति अगर रोज़ मंदिर जाता है तो उसे संतुलित मनुष्य बोलना गलत नहीं होगा | इस तरह के लोग इस तेज़ बदलाव के साथ बदलते भी जा रहे है और अपनी संस्कृति को भी बखूबी निभा रहे है | वर्तमान दौर में ज़रूरी है कि संसार में जो कुछ भी चल रहा है उसमे संतुलन बनाये रखे | मतलब की केवल कपड़ों या जीवनशैली से किसी को भांप लेना सही नहीं है, उसके विचार, देश के प्रति जागरूकता और समाज की और झुकाव सबसे महत्वपूर्ण है |

मनुष्य की पहचान कई मापों पर आधारित होतोई है पर निष्पक्ष और विचारित सोच इसमें सबसे ऊपर आती है| पेशा, जीवनशैली, पहनावा, बोल-चाल आदि बदल सकता है पर व्यक्ति की सोच और फितरत इतनी आसानी से नहीं बदलती | भारत ददुनियां का सबसे तेज़ विकासशील देश है और युवा इसकी रीढ़ है | समाज के हर तब्के के लिए ज़रूरी है कि वह उसूलों से जुड़े रहने के साथ-साथ आधुनिकरण पर भी खासा ध्यान दे | बदलाव ज़रूरी है पर अभी मिटटी और संस्कारों की कीमत पर तो बिलकुल नहीं |

लेखक के बारे में –
हृदय गुप्ता एक युवा लेखक व विचारक है जो पेशे से जनसंपर्क अधिकारी है | पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली में जनसंपर्क के क्षेत्र में अपने करियर की शुरवात करी | वर्तमान में चंडीगढ़ शहर में जनसंपर्क के क्षेत्र में ही कार्य कर रहे है और निष्पक्ष विचार और शोध के आधार पर विभिन्न विषयों पर अभी लेखनी द्वारा प्रकाश डालते रहते है | निजी तौर पर राजनितिक, समाजिक, जनहित, शोध आधारित व अन्य विषयों पर रूचि रखते है |

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