स्कूलों की मनमानी रोकने के लिये एक प्रभावी कानून बनाने की सरकार से भाजपा की मांग
नयी दिल्ली, 20 जून। दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तथा दिल्ली अभिभावक महासंघ के अध्यक्ष विजेन्द्र गुप्ता ने कहा है कि दिल्ली सरकार ने दिल्ली स्कूल शिक्षा अधिनियम और नियम 1973 में संशोधन करने का जो प्रस्ताव तैयार किया है उससे अभिभावकों की मुश्किलें कम होने के स्थान पर बढ़ जायेंगी। सरकार का यह प्रयास अभिभावकों की आँखों में धूल झोंकने का प्रयत्न मात्र है। इससे स्कूलों द्वारा शिक्षा का व्यवसायीकरण और मनमानी फीस वसूलने का धंधा रूकेगा नही बल्कि जारी रहेगा।
उन्होंने कहा कि जो प्रस्ताव सरकार ने तैयार किया है इस संदर्भ में मुख्यमंत्री को पत्र लिखेंगे तथा विस्तार से चर्चा के बाद सरकार प्रस्ताव सदन में प्रस्तुत करे ताकि विधायकगण इस पर खुले दिल से चर्चा कर सकें। श्री गुप्ता ने आशा व्यक्त की कि सरकार इस संपूर्ण मसले पर विपक्ष को विश्वास में लेते हुये सरकार सदन में अवश्य लायेगी और इस पर में निष्पक्ष चर्चा करायेगी। यदि सरकार ने मामले का राजनीतिकरण नहीं किया और सदन में इस विषय पर विस्तार से वस्तुगत चर्चा हुई तो ही दिल्ली में शिक्षा का व्यवसायीकरण रूक सकेगा और दिल्ली के लाखों अभिभावकों को स्कूलों द्वारा लूटे जाने की परंपरा समाप्त हो पायेगी।
लम्बे समय से दिल्ली के अभिभावकों को शिक्षा संबधी लूट का शिकार होना पड़ रहा है। इसका कारण यह रहा है कि पूर्व की काँग्रेस सरकार के लोगों ने निजी स्कूलों से मिलीभगत कर रखी थी और उन्हें मनमानी फीस वसूलने की खुली छूट दे रखी है। वर्तमान आम आदमी पार्टी की सरकार ने भी इस पर विधिवत रोक न लगाकर शिक्षा अधिनियम की धाराआंे 17, 24, 27 नियम संख्या 145 में संशोधन करने का जो प्रस्ताव तैयार किया है उसमें स्कूलों के लिये तैनात दिल्ली सरकार के अधिकारियों पर कोई जिम्मेदारी न लादकर अभिभावकों पर ही जिम्मेदारी लाद दी है। इस कारण सरकार ने शिक्षा में लूट रोकने का जो प्रस्ताव बनाया है वह पूरी तरह निष्प्रभावी हो जायेगा।
आॅल इण्डिया पैरेन्ट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने कहा कि सरकार द्वारा जो प्रस्ताव तैयार किया गया है उसके तहत शिक्षा विभाग के अतिरिक्त निदेशक की अध्यक्षता में एक कमेटी बनायी जायेगी। यह कमेटी अभिभावकों से शिक्षा संबधी शिकायतें आमंत्रित करेगी। शिकायतों की जांच के बाद कमेटी संशोधित फीस का ढंाचा तैयार करेगी।
यदि सरकार की नीयत साफ है तो वह तमिलनाडु सरकार की तर्ज पर दिल्ली में भी उच्च न्यायालय के किसी अवकाश प्राप्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन सुनिश्चित दिशा निर्देशों के साथ गठित करे ताकि मामले के सभी पहलुओं पर निष्पक्ष विचार और सुनवाई करके कमेटी अपनी अनुशंसा सरकार को सौपे।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली सरकार जो कमेटी बनाने जा रही है उस कमेटी को सिर्फ उन्हीं स्कूलों की जांच करके अपनी रिपोर्ट देने का मौका मिलेगा, जिनकी शिकायतें अभिभावकगण करेंगे। अन्य स्कूल पूरी तरह मनमानी करते रहेंगे। अभिभावकगण पहले से ही परेशान हैं। सरकार ने उनको शिकायतंे कर दौड़ाने और परेशान करने का एक और हथियार उपलब्ध करा देगी। श्री गुप्ता ने कहा कि अभिभावकों पर कोई जिम्मेदारी न डालकर सरकार स्कूलों पर कानूनन यह जिम्मेदारी अनिवार्य करे कि जब भी उन्हें बढ़ानी हो वे अपना प्रस्ताव सरकार द्वारा गठित कमेटी को प्रस्तुत करें। कमेटी यदि आदेश दे तब ही फीस बढ़ाई जा सके।
ज्ञात हो कि तमिलनाडु की सरकार ने अपने राज्य में गैरसहायता प्राप्त स्कूलों द्वारा वसूलने को तमिलनाडु (रेगुलेशन आॅफ कलेक्शन आॅफ फी) अधिनियम 2009 द्वारा विनियमित किया है। इसके अनुसार कोई भी स्कूल फीस बढ़ाने से पहले कमेटी के समक्ष अपना प्रस्ताव प्रस्तुुत करेगी। कमेटी द्वारा अनुमति मिलने के बाद ही स्कूल फीस बढ़ा सकेगा। एक बार फीस बढ़ायी गयी तो अगले तीन साल तक वह स्कूल फीस नही बढ़ा सकेगा। ऐसी ही प्रणाली दिल्ली में भी लागू की जानी चाहिये ताकि यहाँ मनमानी फीस वसूलने का जो कल्चर स्कूलों ने अपना लिया है उस पर कानून सम्मत रोक लग सके।
आॅल इण्डिया पैरेन्ट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने बताया कि दिल्ली अभिभावक महासंघ दिल्ली के स्कूलों द्वारा अभिभावकों की लूट किये जाने के खिलाफ दिल्ली अभिभावक महासंघ बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली तथा अन्य की याचिका संख्या डब्ल्यू.पी. (सी) नं. 7777/2009 उच्च न्यायालय में दायर की थी। इसमें माननीय उच्च न्यायालय ने अपना निर्णय दिया। इसके तहत जस्टिस अनिल देव सिंह कमेटी का गठन किया गया। इसमें कमेटी ने स्कूलों के लेखांे और उनके द्वारा वसूली गयी बढ़ी फीस का अध्ययन किया। पाया गया कि स्कूलों ने अभिभावकों से मनमानी फीस वसूली थी। कमेटी ने छठवें केन्द्र्रीय वेतन आयोग की गैर सहायता प्राप्त स्कूलों के बारे में की गयी टिप्पणी को उचित ठहराया कि वे ज्यादा फीस वसूल रहे हैं। दिल्ली के 450 से अधिक स्कूलों ने अभिभावकांे ंसे 250 करोड़ रूपये अधिक वसूले थे और वापसी आदेश के बाद भी यह रकम अभिभावकों को लौटायी नही गयी थी।
पाँचवंे केन्द्रीय वेतन आयोग की सिफारिशें आने के बाद दिल्ली अभिभावक महासंघ ने वर्ष 1997 में माननीय उच्च न्यायालय की शरण ली थी। न्यायालय ने अपने अंतरिम आदेश द्वारा यह कहा था कि जिन स्कूलों ने 40 प्रतिशत बढ़ी फीस वसूली है वह 400 करोड़ रूपया बनता है। इसे अभिभावकों को वापस लौटाया जाए। इस संबध में गठित जस्टिस संतोष दुग्गल कमेटी ने भी फीस वापस लौटाने को कहा था। आज तक किसी भी स्कूल ने एक भी अभिभावक को उनसे वसूली गयी अतिरिक्त फीस वापस नहीं लौटाई है। लाचार अभिभावकगण निराश हैं।
उन्होंने कहा कि जो प्रस्ताव सरकार ने तैयार किया है इस संदर्भ में मुख्यमंत्री को पत्र लिखेंगे तथा विस्तार से चर्चा के बाद सरकार प्रस्ताव सदन में प्रस्तुत करे ताकि विधायकगण इस पर खुले दिल से चर्चा कर सकें। श्री गुप्ता ने आशा व्यक्त की कि सरकार इस संपूर्ण मसले पर विपक्ष को विश्वास में लेते हुये सरकार सदन में अवश्य लायेगी और इस पर में निष्पक्ष चर्चा करायेगी। यदि सरकार ने मामले का राजनीतिकरण नहीं किया और सदन में इस विषय पर विस्तार से वस्तुगत चर्चा हुई तो ही दिल्ली में शिक्षा का व्यवसायीकरण रूक सकेगा और दिल्ली के लाखों अभिभावकों को स्कूलों द्वारा लूटे जाने की परंपरा समाप्त हो पायेगी।
लम्बे समय से दिल्ली के अभिभावकों को शिक्षा संबधी लूट का शिकार होना पड़ रहा है। इसका कारण यह रहा है कि पूर्व की काँग्रेस सरकार के लोगों ने निजी स्कूलों से मिलीभगत कर रखी थी और उन्हें मनमानी फीस वसूलने की खुली छूट दे रखी है। वर्तमान आम आदमी पार्टी की सरकार ने भी इस पर विधिवत रोक न लगाकर शिक्षा अधिनियम की धाराआंे 17, 24, 27 नियम संख्या 145 में संशोधन करने का जो प्रस्ताव तैयार किया है उसमें स्कूलों के लिये तैनात दिल्ली सरकार के अधिकारियों पर कोई जिम्मेदारी न लादकर अभिभावकों पर ही जिम्मेदारी लाद दी है। इस कारण सरकार ने शिक्षा में लूट रोकने का जो प्रस्ताव बनाया है वह पूरी तरह निष्प्रभावी हो जायेगा।
आॅल इण्डिया पैरेन्ट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने कहा कि सरकार द्वारा जो प्रस्ताव तैयार किया गया है उसके तहत शिक्षा विभाग के अतिरिक्त निदेशक की अध्यक्षता में एक कमेटी बनायी जायेगी। यह कमेटी अभिभावकों से शिक्षा संबधी शिकायतें आमंत्रित करेगी। शिकायतों की जांच के बाद कमेटी संशोधित फीस का ढंाचा तैयार करेगी।
यदि सरकार की नीयत साफ है तो वह तमिलनाडु सरकार की तर्ज पर दिल्ली में भी उच्च न्यायालय के किसी अवकाश प्राप्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन सुनिश्चित दिशा निर्देशों के साथ गठित करे ताकि मामले के सभी पहलुओं पर निष्पक्ष विचार और सुनवाई करके कमेटी अपनी अनुशंसा सरकार को सौपे।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली सरकार जो कमेटी बनाने जा रही है उस कमेटी को सिर्फ उन्हीं स्कूलों की जांच करके अपनी रिपोर्ट देने का मौका मिलेगा, जिनकी शिकायतें अभिभावकगण करेंगे। अन्य स्कूल पूरी तरह मनमानी करते रहेंगे। अभिभावकगण पहले से ही परेशान हैं। सरकार ने उनको शिकायतंे कर दौड़ाने और परेशान करने का एक और हथियार उपलब्ध करा देगी। श्री गुप्ता ने कहा कि अभिभावकों पर कोई जिम्मेदारी न डालकर सरकार स्कूलों पर कानूनन यह जिम्मेदारी अनिवार्य करे कि जब भी उन्हें बढ़ानी हो वे अपना प्रस्ताव सरकार द्वारा गठित कमेटी को प्रस्तुत करें। कमेटी यदि आदेश दे तब ही फीस बढ़ाई जा सके।
ज्ञात हो कि तमिलनाडु की सरकार ने अपने राज्य में गैरसहायता प्राप्त स्कूलों द्वारा वसूलने को तमिलनाडु (रेगुलेशन आॅफ कलेक्शन आॅफ फी) अधिनियम 2009 द्वारा विनियमित किया है। इसके अनुसार कोई भी स्कूल फीस बढ़ाने से पहले कमेटी के समक्ष अपना प्रस्ताव प्रस्तुुत करेगी। कमेटी द्वारा अनुमति मिलने के बाद ही स्कूल फीस बढ़ा सकेगा। एक बार फीस बढ़ायी गयी तो अगले तीन साल तक वह स्कूल फीस नही बढ़ा सकेगा। ऐसी ही प्रणाली दिल्ली में भी लागू की जानी चाहिये ताकि यहाँ मनमानी फीस वसूलने का जो कल्चर स्कूलों ने अपना लिया है उस पर कानून सम्मत रोक लग सके।
आॅल इण्डिया पैरेन्ट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने बताया कि दिल्ली अभिभावक महासंघ दिल्ली के स्कूलों द्वारा अभिभावकों की लूट किये जाने के खिलाफ दिल्ली अभिभावक महासंघ बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली तथा अन्य की याचिका संख्या डब्ल्यू.पी. (सी) नं. 7777/2009 उच्च न्यायालय में दायर की थी। इसमें माननीय उच्च न्यायालय ने अपना निर्णय दिया। इसके तहत जस्टिस अनिल देव सिंह कमेटी का गठन किया गया। इसमें कमेटी ने स्कूलों के लेखांे और उनके द्वारा वसूली गयी बढ़ी फीस का अध्ययन किया। पाया गया कि स्कूलों ने अभिभावकों से मनमानी फीस वसूली थी। कमेटी ने छठवें केन्द्र्रीय वेतन आयोग की गैर सहायता प्राप्त स्कूलों के बारे में की गयी टिप्पणी को उचित ठहराया कि वे ज्यादा फीस वसूल रहे हैं। दिल्ली के 450 से अधिक स्कूलों ने अभिभावकांे ंसे 250 करोड़ रूपये अधिक वसूले थे और वापसी आदेश के बाद भी यह रकम अभिभावकों को लौटायी नही गयी थी।
पाँचवंे केन्द्रीय वेतन आयोग की सिफारिशें आने के बाद दिल्ली अभिभावक महासंघ ने वर्ष 1997 में माननीय उच्च न्यायालय की शरण ली थी। न्यायालय ने अपने अंतरिम आदेश द्वारा यह कहा था कि जिन स्कूलों ने 40 प्रतिशत बढ़ी फीस वसूली है वह 400 करोड़ रूपया बनता है। इसे अभिभावकों को वापस लौटाया जाए। इस संबध में गठित जस्टिस संतोष दुग्गल कमेटी ने भी फीस वापस लौटाने को कहा था। आज तक किसी भी स्कूल ने एक भी अभिभावक को उनसे वसूली गयी अतिरिक्त फीस वापस नहीं लौटाई है। लाचार अभिभावकगण निराश हैं।
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