विधान सभा में प्रस्तावित किया जाने वाला दिल्ली विद्यालय शिक्षा विधेयक, 2015 (संशोधित) अध्यापक-विरोधी, विद्यार्थी-विरोधी तथा अभिभावक-विरोधी

नर्सरी कक्षाओं में दाखिल के समय स्क्रीनिंग प्रोसिजर पर प्रतिबंध सराहनीय, शेष अन्य संशोधन रद्द किये जाने योग्य

नेता प्रतिपक्ष श्री विजेन्द्र गुप्ता, भाजपा विधायक श्री ओम प्रकाश शर्मा और श्री जगदीश प्रधान तथा प्रमुख शिक्षाविद एवं अखिल भारतीय अभिभावक संघ (आईपा) के अध्यक्ष श्री अशोक अग्रवाल ने आज एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा कि केजरीवाल सरकार द्वारा प्रस्तावित दिल्ली विद्यालय शिक्षा विधेयक, 2015 (संशोधित) अध्यापक-विरोधी, विद्यार्थी-विरोधी तथा अभिभावक-विरोधी है । उन्होंने कहा कि प्रस्तावित संशोधनों से शिक्षा के स्तर में कोई सुधार नहीं होगा, न अध्यापकों व विद्यालय स्टाफ के शोषण में कोई कमी आयेगी और न ही स्कूल प्रबंधन द्वारा अभिभावकों से भारी भरकम फीस वसूलने में अंकुश लगेगा । तथापि उन्हांेने नर्सरी कक्षाओं में दाखिले के समय होने वाले स्क्रीनिंग प्रोसिजर पर प्रतिबंध लगाने का स्वागत किया । उन्होंने कहा कि यह एक सराहनीय कदम हैं परंतु इसके अतिरिक्त सारे कदम सीधे रद्द किये जाने योग्य है ।
प्रस्तावित संशोधन को तैयार करते समय इस प्रमुख तथ्य का कतई ध्यान नहीं रखा गया कि समूची स्कूल शिक्षा प्रणाली में केन्द्र सरकार की क्या संवैधानिक शक्तियाॅं हैं और राज्य सरकार की उनके चलते क्या मर्यादायें हैं । प्रस्ताव में यह कहा गया है कि दिल्ली सरकार के पास दिल्ली विद्यालय अधिनियम, 1973 के अंतर्गत आने वाले सभी नियमों व प्रावधानों में केन्द्र सरकार की बिना पूर्वानुमति के दिल्ली सरकार के पास उन्हें संशोधित व परिवर्तित करने की शक्ति निहित होनी चाहिये । दिल्ली सरकार ने ये शक्तियाॅं स्वयं ही गृहण करने की मंशा जाहिर करी है । वह यह भूल गई कि यदि ऐसा करना भी है तो ये राज्य नहीं अपितु केन्द्र सरकार ही कर सकती है ।
दिल्ली सरकार ने उन प्रावधानों को भी समाप्त करने की बात कही है जिनमें प्राइवेट स्कूलों के अध्यापकों व स्टाफ के वेतन को सरकारी विद्यालयों के वेतन के समकक्ष दिये जाने को अनिवार्य बनाया है । यदि राज्य सरकार के संशोधन स्वीकार हो जाते हैं तो इससे प्राइवेट स्कूलों व स्टाफ का शोषण और अधिक उग्र हो जायेगा । सरकार यह सोचती है कि अध्यापकों को न्यूनतम वेतन दरों के अनुसार वेतन देना बेहतर होगा । परंतु वह यह भूल जाती है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय की रूलिंग के अनुसार अध्यापक न्यूनतम वेतन दरों के अधिकारी नहीं हैं क्योंकि वे वर्कर की श्रेणी में नहीं आते । सरकार अपने दायित्व से भाग रही है उसे प्राइवेट विद्यालयों के प्रबंधन पर इतना अंकुश लगाना चाहिये ताकि उन्हें अपने विद्यालयों में पढा़ने वाले अध्यापकों को भी सरकारी विद्यालयों के अनुरूप वेतन देना अनिवार्य हो। यह कार्य उनके बैंक के खाते में ई.सी.एस. के माध्यम से वेतन जमा कर सुचारू रूप से किया जा सकता है । परंतु ऐसा करने के स्थान पर सरकार प्रबंधन समितियों के आगे घुटने टेक रही है ।
श्री गुप्ता ने कहा कि सरकार द्वारा दिल्ली विद्यालय लेखा तथा अधिक फीस रिफंड सत्यापन कमेटी का गठन का प्रस्ताव है जो कि निजी गैर सहायता प्राप्त विद्यालयों की फीस वृद्धि को नियमित करेगी । इससे यह समझ से परे है कि फीस नियमितिकरण कमेटी किस प्रकार विद्यालयों द्वारा ली जाने वाली फीस को नियमित करेगी । प्रत्येक विद्यालय की अपनी अपनी अनेक आवश्यकतायें होती हैं । बेहतर होगा कि सरकार यह नियंत्रण अपने हाथ में ले लें और फीस पर सीधे ही नियंत्रण रखे । किसी भी हालत में यह अधिकार स्कूल प्रबंधन को देना बेमानी होगी ।


 दिल्ली सरकार का प्रस्ताव है कि कक्षा 8 तक किसी भी विद्यार्थी को रोका नहीं जाना चाहिये । श्री गुप्ता के अनुसार यह नीति शिक्षा अधिकार के विरूद्ध जाती है इससे विद्यालयों में ड्राप आउट रेट में वृद्धि होगी तथा गरीब तबके के लोगों को अपने बच्चों को शिक्षा दिलाने में कठिनाई आयेगी । यह संशोधन राष्ट्र की शिक्षा नीति के विरूद्ध है और इसे त्यागना ही श्रेयस्कर होगा । 

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