नई दिल्लीः ईमानदार राजनीति की शुरुआत। पारदर्शी राजनीति की शुरुआत। नई तरह की राजनीति की शुरुआत। जनलोकपाल के माध्यम से भ्रष्टाचार पर कड़ा प्रहार करने की शुरुआत इत्यादि-इत्यादि, का चुनाव के समय(विधानसभा चुनाव-2015) दावा करने वाली आम आदमी पार्टी(आप) ने जो लुभावने वायदे दिल्ली की जनता से किए थे। उस घोषण-पत्र को सरकारी रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं बनने दिया! यह खुलासा हुआ है सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के तहत मिलने वाली कार्यालय मुख्य निर्वाचन अधिकारी, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली से प्राप्त(सीईओ/आरटीआई/ 106/आईडी169/ 2015/12) सूचना से।

     ऐसे में सवाल उठता है कि क्या आम आदमी पार्टी ने ऐसा जानबूझकर किया है? क्या वह जानती थी कि उसके द्वारा किए जा रहे दिल्ली की जनता से लुभावने वायदे केवल सत्ता को हथियाने की जुगत है और जिसमें वह कामयाब भी रही है। लेकिन जनता से किए गए वायदों का क्या होगा? आए दिन दिल्ली सरकार के मुखिया श्री केजरीवाल केन्द्र सरकार से लोहा लेते हुए दिखाई देते हैं। दिल्ली की समस्याओं के लिए देश के प्रधानमंत्री को टारगेट किया जाता है। जब मीडिया जनता की ओर से इनसे सवाल पूछती है तो यह उसे भी ब्लेकमेलर और न जाने क्या-क्या कहते हैं। फिर ऐसे में जनता की बात मीडिया के अलावा इनसे पूछेगा कौन?

     गौरतलब रहे कि कांग्रेस ने दिल्ली निर्वाचन आयोग में अपने घोषणा-पत्र को जमा करवाकर सरकारी रिकॉर्ड का हिस्सा बना दिया। जिसे देख लगता है कि इस राजनैतिक दल की जनता से किए गए वायदों को पूरा करने की मंशा ठीक थी। भाजपा ने घोषणा-पत्र जारी न करके विज़न डॉक्यूमेंट जारी किया था। यानि कि अपना रोडमेप जनता के समक्ष रख दिया था। लेकिन दिल्लीवालों ने कांग्रेस को पूरी तरह नकार दिया, भाजपा को केवल तीन सीटें देकर, आपको 67 सीटें दे दी। लेकिन मौजूदा सरकार से जनता का मोह भंग साल पूरा होने से पहले ही हो गया है। बतौर सबूत विश्व विधालय के हाल ही में आए चुनावी परिणाम हैं। जब ‘आप’ भी वही कर रही है जो अन्य राजनैतिक दल कर रहे हैं तो भला आप अन्य राजनैतिक दलों से अलग कैसे है? आखि़र क्यों इससे दिल्लीवालों का तेज़ी से मोह भंग होता जा रहा है? क्या जनता को लगता है ‘आप’ ने लुभावने वायदे कर उन्हें छल लिया है? स्वास्थ्य का बजट बढ़ गया है, लेकिन सुविधाएं(डेंगू से होने वाली मौतें और इनके बाद फंड का रिलीज़ होना गवाह है) दिल्ली के अस्पतालों से लापता हैं। शिक्षा का बजट पहले से ज्यादा है, परन्तु लोग अच्छी शिक्षा अपने बच्चों को दिलवाने के लिए प्राइवेट स्कूलों के हाथों लुटने को मजबूर हैं। बिजली हाफ, पानी माफ के नाम पर दिल्ली की अवैध कॉलोनियों में रहने वालों के लिए टैंकरों से होनी वाली पानी की सुविधा लगभग बंद कर दी गई है। जिनके पास पानी के कनेक्शन नहीं हैं या फिर जिन कालोनियों में पानी की लाइनें ही नहीं हैं, जहां पानी की लाइनें हैं और उन लाइनों में पानी नहीं है। क्या उन्हें पीने के पानी के लिए अब 5 साल तक तरसना होगा? मौजूदा दिल्ली सरकार कहती है कि 80 प्रतिशत शुल्क पानी के कनेक्शन लेने पर माफ कर दिया गया है। लेकिन सच्चाई कुछ और ही है, दिल्ली जल बोर्ड में कनेक्शन लेने जब लोग जाते हैं तो उन्हें पानी का कनेक्शन देने के लिए चक्कर- पे-चक्कर लगवाए जा रहे हैं, इन कार्यालय में दलालों के माध्यम से लोग कनेक्शन लेने को मजबूर हैं। क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है? क्या यही है अलग तरह की राजनीति? राजनीति में ‘आप’ कुशल हो या न हो। लेकिन प्रचार नीति में इस दल से कुशल कोई अन्य राजनैतिक दल नहीं है। यह आप की कार्यशैली (विज्ञापन बजट व प्रचार करने का तरीका) बता रही है। जनता का धन खर्च करके कहा जाता है कि ‘‘वो परेशान करते रहे, हम काम करते रहे’’। परन्तु तस्वीर इसके विपरीत है।

     गौरतलब रहे कि चुनाव के दौरान जनहित में जनता से लिखित में किए गए वायदे, यानि कि घोषणा-पत्र एक अहम दस्तावेज़ होता है। जिसे सरकारी रिकॉर्ड का हिस्सा होना अनिवार्य होना चाहिए। अगर घोषणा-पत्र द्वारा किए गए वायदों पर देश व किसी भी राज्य में जो भी सत्तारूढ़ राजनैतिक दल है, खरा नहीं उतरता है तो क्यों न उस पर जनद्रोह का मामला चले? क्यों न उसकी चुनाव आयोग मान्यता रद्द कर दे? जब ऐसा होगा; तभी तो सत्तापर काबिज़ होने वाला राजनैतिक दल चुनाव के समय किए हुए वायदों को पूरा करने के लिए गंभीर होगा और लुभावने वायदे सत्ता हथियाने का हथियार नहीं बनेंगे। अन्यथा हर बार जनता से कोई-न-कोई राजनैतिक दल लुभावने वायदे कर सत्ता हथिया लेगा और जनता पांच साल बाद केवल हाथ मलते हुए रह जाएगी। फिर अगली बार चुनाव के समय देश मे मौजूदा राजनैतिक दल नए रूप में नए पैंतरे अपनाएंगे। लोगों को कर्मशील नहीं, मुफ्तखोरी की लत लगाकर कर्महीन बनाएंगे।

     अगर घोषणा-पत्र में किए गए वायदों को पूरा करने के लिए सरकारें अनिवार्य होंगी, तभी तो देश व राज्य में विकास की गारंटी होगी और सरकार पूर्ण रूप से जवाबदेह। समय आ गया है कि जनता फैसला करे कि राजनैतिक दलों द्वारा चुनाव के समय लिखित में किए गए वायदे, यानि कि घोषणा-पत्र पूरा न करने पर, क्या उसका सत्ता से बेदखल होना ही पर्याप्त है या फिर उसे जनविरोधी करार दिया जाए?

Comments

Popular posts from this blog

Sameer Ansari, Don of Bihar, having a Reward of Rs 50000/- Arrested in Delhi

MOST WANTED GANGSTER NAMELY GYANENDER @ GADGU REWARDEE OF RS.1 LAC ALONGWITH HIS ASSOCIATE RAJIV DAHIYA @ RAJU ARRESTED

Imposter IPS Officer Arrested; an Academic Who Became a Cheat to Realize His Dream Unfulfilled