सरकारों की गलत नीतियों के कारण भारतीय नस्ल का गोवंश खतरे में है!

गोरक्षा आन्दोलन के नेता श्री के. एन. गोविन्दाचार्य की दिनांक 3.11.2016 को दिल्ली में आयोजित पत्रकार वार्ता मे प्रसारित नोट :-

भारत मे आजादी के बाद की सरकारों की गलत नीतियों के कारण भारतीय नस्ल का गोवंश खतरे में है| सरकार दावा करती है कि जो बीफ देश से निर्यात किया जाता है, वह भैसवंश का मांस होता है| 1991-92 के आर्थिक संकट के पश्चात बीफ निर्यात को सब्सिडी देकर लगातार प्रोत्साहन दिया गया| परिणामस्वरूप 1998-1999 के पश्चात बीफ निर्यात में प्रचंड वृद्धि हुई | 1998-1999 में बीफ का निर्यात 1.54 लाख टन था जो 2015-2016 में बढ़कर 13.15 लाख टन हो गया | 2011-12 से जितना बीफ निर्यात हुआ उतने बीफ के लिये प्रति वर्ष एक करोड़ से अधिक भैसवंश के क़त्ल कि जरूरत होती हैं|

सन् 1951 में गोवंश कि संख्या 15.5 करोड़ थी जो 2012 तक बढ़ कर 19.09 करोड़ हो गयी | इसी प्रकार भैसवंश 1951 में 4.34 करोड़ थी और 2012 में वह बढ़कर हो गया 10.87  करोड़ | अर्थात 1951-2012 में गोवंश में केवल २३ प्रतिशत वृद्धि दर्ज कि गयी जबकि भैसवंश में 150 प्रतिशत वृद्धि हुई| यह बात सिद्ध करती हैं कि केंद्र सरकार का यह दावा गलत हैं कि बीफ के नाम पर केवल भैसमांस का निर्यात हो रहा हैं |  अगर बीफ के नाम पर भैसमांस  ही निर्यात होता तो भैसवंश घटना चाहिये था पर वह 150 प्रतिशत बढ़ा हैं| और गोमांस निर्यात पर प्रतिबन्ध के बावजूद गैरकानूनी तरीके से भैसमांस के नाम पर गोमांस का बड़ी मात्रा में निर्यात किया जा रहा हैं |

इसमे एक और तथ्य गंभीर परिस्थिति कि ओर ईशारा कर रहा है| देश में यद्दपि गोवंश की संख्या 2007 से 2012 में बढ़ी है, पर इसमें देशी नस्ल की गोवंश की संख्या वास्तव में घटी है और विदेशी नस्ल व संकर गोवंश कि संख्या बढ़ी है| यह हमारे लिये और भी गंभीर चुनौती है| देशी गाय न केवल हमारे लिये आस्था का मानबिंदु है, बल्कि वह आर्थिक और आरोग्य कि दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है| अब तो विज्ञान ने भी सिद्ध कर दिया है कि विदेशी नस्ल की गाय का दूध (A 1 Milk) आरोग्य के लिये हानिकारक है , वहीँ देशी गोवंश का दूध (A2 Milk) मानव के आरोग्य के लिये परम लाभदायी है| देशी गोवंश पर छाये संकट के कारण इस समय गोरक्षा तात्कालिक उपाय बन गया है | अगर गोरक्षा के माध्यम से देशी गोवंश बच पाया, तभी उसका पालन और संवर्धन संभव हो पायेगा|

इस भीषण पारिस्थितिक को देखते हुए तथा 7 नवंबर 1966 को हुए गोभक्तों के बलिदान को 50 वर्ष पूर्ण हो रहें हैं, इस तथ्य को ध्यान में रखकर देश के संत समाज और गोभक्तों ने मंथन करके सरकार और समाज के लिये “गोमाता का निर्देश पत्र” तैयार किया है| गोरक्षा, गोपालन और गोसंवर्धन के लिये सरकार क्या-क्या करें और समाज क्या-क्या करें, उन सारे बिन्दुओं को समाहित किया गया है | निर्देश पत्र के प्रमुख बिंदु हैं :-

1.       देश में सम्पूर्ण गोहत्या बंदी का केंद्रीय क़ानून बनें |
2.       भारतीय गोवंश पर छाए प्रमुख संकट को तत्काल दूर करने के लिये बीफ निर्यात को प्रतिबंधित किया जाए |
3.       भारत कि पंचायत व्यवस्था की अंग रही गोचर भूमि को सभी सरकारी और गैसराकारी अतिक्रमणों से मुक्त किया जाए | इसके साथ ही निराश्रित गोवंश के लिये प्रत्येक जिलें में गो-अभयारण बनाया जाए |
4.       देश में गोरक्षा,गोपालन,गोसंवर्धन के लिए केंद्र व राज्य सरकार में गोमंत्रालय की स्थापना की जाए |
5.       केंद्रीय वाहन कानून (संशोधन) - 2015 (मोटर व्हीकल एक्ट 2015) में पशुओं को लाने ले जाने के लिए उपयोग हो रहे विशेष वाहनों के नियम को पुनः लागू किया जाए और उस नियम को पंगु करने वाले संशोधन को निरस्त किया जाए |

उपरोक्त प्रमुख मांगों के आलावा 6 अगस्त को गोरक्षकों के विषय में प्रधानमंत्री की टिप्पणी और उसके बाद केंद्र सरकार द्वारा गोरक्षकों के डोजियर बनाने की एडवाईजरी से संत समाज एवं गोसेवा में लगें गोभक्त आहात हैं| पूज्य संतों और गोभक्तों की भावनाओं का आदर करने के लिये केंद्र सरकार की उस एडवाईजरी को वापस लिया जाय, यह तत्कालिक मांग हैं |
अंग्रेजों द्वारा प्रारम्भ कत्लखानों की परम्परा को स्वतंत्रता के बाद भी न केवल जारी रखा गया बल्कि कत्लखानों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई | अब तक की सरकारों की गोवंश विरोधी नीतियों और बीफ निर्यात समर्थक अनुदान के कारण भारतीय गोवंश खतरे में पड़ गया हैं| आजादी के समय भी एक मनुष्य पर एक मवेशी का अनुपात था जो अब घट कर लगभग सात मनुष्य पर एक मवेशी हो गया हैं |
इसीलिए अब पहली प्राथमिकता गोरक्षा हो गयी है| अगर गोवंश बचेगा तब गोपालन और गोसंवर्धन का विषय सम्मुख होगा| भारतीय समाज के लिए गो का विषय सभ्यतामूलक हैं| 
भारतीय सभ्यतामूलक विकास या भारतीय सभ्यतानाशक विकास के बीच द्वंद्व होना हमारे लिए यक्ष प्रश्न हैं | भारतीय सभ्यता में विकास मनुष्य केन्द्रित नहीं बल्कि प्रकृति केन्द्रित हैं |उस प्रकृति केन्द्रित विकास का केंद्र बिंदु गाय हैं | अतः गोवंश के अनुरूप शिक्षा नीति, आरोग्य नीति, कृषि नीति, ऊर्जा नीति, परिवहन नीति आदि नहीं बनती हैं तब तक वो भारतीय सभ्यतामूलक विकास नहीं हैं | गाय केवल हमारे लिये आस्था का विषय नहीं हैं बल्कि यह आर्थिक आरोग्य एवं पर्यावरण के लिहाज से भी महत्वपूर्ण हैं |                           


Comments

Popular posts from this blog

Sameer Ansari, Don of Bihar, having a Reward of Rs 50000/- Arrested in Delhi

MOST WANTED GANGSTER NAMELY GYANENDER @ GADGU REWARDEE OF RS.1 LAC ALONGWITH HIS ASSOCIATE RAJIV DAHIYA @ RAJU ARRESTED

Imposter IPS Officer Arrested; an Academic Who Became a Cheat to Realize His Dream Unfulfilled