नगर निगम अधिकारियों ने आर्थिक बकायों पर दिल्ली के प्रमुख सचिव वित्त को लिखे पत्र

अपने आर्थिक बकायों एवं चैथे वित्त आयोग की सिफारिशों को लागू न करने को लेकर दिल्ली सरकार पर अवमानना याचिका दायर करेंगे तीनों नगर निगम

नई दिल्ली, 27 जनवरी।  दिल्ली भाजपा अध्यक्ष श्री सतीश उपाध्याय ने दिल्ली के तीनों महापौरों श्री सुभाष
आर्य, श्री हर्ष मल्होत्रा एवं श्री रविन्द्र गुप्ता एवं अन्य निगम नेताओं के साथ आज एक पत्रकार सम्मेलन को सम्बोधित किया और पत्रकारों के समक्ष दिल्ली के तीनों नगर निगमों की ओर से अपने आर्थिक देयों की मांग रखते हुये दिल्ली के प्रमुख सचिव वित्त श्री एस. एन. सहाय को प्रेषित पत्रों की प्रति रखी।  उन्होंने घोषणा की कि दिल्ली के तीनों नगर निगम अब शीघ्र ही बकाया आर्थिक संसाधन उपलब्ध कराने एवं चैथे वित्त आयोग की सिफारिशें लागू करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेशों का पालन न करने पर दिल्ली सरकार के खिलाफ अवमानना याचिका दायर करेंगे।  न्यायालय के संज्ञान में यह भी लाया जायेगा कि पांचवें दिल्ली वित्त आयोग के गठन को लेकर भी दिल्ली सरकार ने प्रक्रिया अभी तक प्रारम्भ नहीं की है।

दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के नेता श्री आशीष सूद एवं श्री राधेश्याम शर्मा, उत्तरी दिल्ली नगर निगम के नेता श्री योगेन्द्र चांदोलिया, पूर्वी दिल्ली नगर निगम के नेता श्री रामनारायण दूबे एवं श्रीमती लता गुप्ता, मीडिया प्रभारी श्री प्रवीण शंकर कपूर और प्रवक्ता श्री हरीश खुराना पत्रकार सम्मेलन में उपस्थित थे।

श्री उपाध्याय एवं महापौरों ने कहा कि दिल्ली सरकार के प्रवक्ता ने आज एक बयान जारी कर कहा है कि यदि नगर निगमों को हमसे पैसा लेना था तो उच्च न्यायालय को क्यों नहीं बताया और राष्ट्रपति शासन के दौरान चैथे वित्त आयोग को लागू क्यों नहीं किया गया।  हम उनको बताना चाहेंगे कि किसी भी वित्त आयोग की सिफारिश केवल कोई राज्य सरकार ही सदन के पटल पर रख सकती है न कि उपराज्यपाल या राष्ट्रपति महोदय।  उच्च न्यायालय ने जिस वर्तमान मामले में आदेश जारी किये हैं उस मामले में नगर निगम पार्टी नहीं थे और हम दिल्ली सरकार के संज्ञान में लाना चाहेंगे कि हमारे दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के नेता श्री राधेश्याम शर्मा ने भी इसी तरह की एक जनहित याचिका दायर की हुई है, जिसमें फंड न मिलने की बात रखी गई है।

महापौरों श्री सुभाष आर्य, श्री हर्ष मल्होत्रा एवं श्री रविन्द्र गुप्ता ने कहा कि दिल्ली की जनता को आज निगम सेवायें ठप्प होने के कारण जो असुविधा हो रही है उसके लिए केजरीवाल सरकार की हठधर्मी दोषी है।  सरकार को यह समझना चाहिए कि जिन आर्थिक संसाधनों के साथ हमसें 2011 में काम करने की अपेक्षा की जाती थी उनसे 2016 में किस प्रकार हम काम कर सकते हैं।  इस दौरान दिल्ली सरकार का राजस्व और केन्द्रीय मदों से आय लगभग दोगुनी हो गई है पर दुख का विषय है कि राजनीतिक द्वेष के चलते दिल्ली सरकार हमारे संसाधन नियमानुसार बढ़ाने को तैयार नहीं है।  तीनों महापौरों ने पत्रकारों के समक्ष निगम अधिकारियों द्वारा प्रेषित उन पत्रों की प्रति रखी जिनके अनुसार लगभग 3,000 करोड़ रूपया नगर निगमों को विभिन्न मदों में तीसरे दिल्ली वित्त आयोग के आधार पर भी अभी दिल्ली सरकार से मिलना बांकी है।

दिल्ली भाजपा अध्यक्ष श्री सतीश उपाध्याय ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि दिल्ली सरकार को नगर निगमों को कमजोर करने और राजनीतिक रूप से बदनाम करने में एक सेडिस्टिक प्लेजर मिलता है, फिर चाहे इसके चलते दिल्ली की जनता को कितनी भी कठिनाई हो या नगर निगम कर्मियों के परिवारों के सामने आर्थिक संकट कितना भी गहन क्यों न हो जाये।

गत सोमवार को मुख्यमंत्री द्वारा महापौरों को पाॅलिटिकल एनिमल कहे जाने के संदर्भ में श्री उपाध्याय ने कहा कि ऐसा लगता है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री के लिए राजनीतिक मर्यादाओं का अब कोई महत्व नहीं रह गया है और शायद हमें ऐसे मुख्यमंत्री से जो खुद को अराजक कहने में गर्व महसूस करता हो उनसे किसी मर्यादा के पालन की उम्मीद भी नहीं रखनी चाहिए।  हम तो सिर्फ मुख्यमंत्री के सहयोगी मंत्री श्री कपिल मिश्रा से पूछना चाहते हैं कि उन्हें महापौरों के लिए उपयोग किये गये सम्बोधन पाॅलिटिकल एनिमल सुनकर कैसा लगा क्योंकि वह स्वयं एक पूर्व महापौर के पुत्र हैं ?

श्री उपाध्याय ने कहा कि 1 अप्रैल, 2008 से लागू हुई तृतीय दिल्ली वित्त आयोग की सिफारिशें केवल 31 मार्च, 2011 तक के लिए थीं।  राजनीतिक द्वेष के चलते तत्कालीन शीला दीक्षित सरकार ने विलम्ब से चैथे दिल्ली वित्त आयोग का गठन 2011 में किया और वर्ष 2011-12 के लिए भी तृतीय वित्त आयोग के हिसाब से ही नगर निगमों को साधन दिये।  2012 के अंत में चैथे दिल्ली वित्त आयोग की सिफारिशें आ गईं पर शीला दी़िक्षत सरकार ने इनको विधानसभा पटल पर नहीं रखा और उसके बाद 2013 में बनी 49 दिनों की केजरीवाल सरकार ने भी इसको सदन के पटल पर नहीं रखकर इसका अनुपालन नहीं किया।  उसके बाद दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगा और फरवरी, 2015 में केजरीवाल सरकार पुनः बनी पर 10 माह तक फिर राजनीतिक द्वेष के चलते चैथे वित्त आयोग की सिफारिशों को दबाये बैठी रही।  एक तरफ भाजपा के राजनीतिक दबाव और दूसरी तरफ दिल्ली उच्च न्यायालय में लम्बित मामले के चलते केजरीवाल सरकार ने दिसम्बर, 2015 के अंत में सिफारिशों को सदन के पटल पर रखकर स्वीकार तो किया पर इनके अनुपालन को असंवैधानिक टिप्पणीयों के साथ ठंडे बस्ते में डाल दिया।

दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के महापौर श्री सुभाष आर्य ने कहा कि विभिन्न दिल्ली वित्त आयोग की सिफारिशों को अगर हम समझे ंतो सीधा-सीधा फार्मूला बनता है कि दिल्ली सरकार के कुल राजस्व का 10.5 प्रतिशत नगर निगमों को मिलना चाहिए।  यह आधार तृतीय दिल्ली वित्त आयोग की सिफारिश का भी था और अगर दिल्ली सरकार ईमानदारी से उसी सिफारिश का पालन करते तो भी हमारा फंड दोगुना हो जाता है जबकि चैथे वित्त आयोग की सिफारिशों के लागू होते ही यह और अधिक बनता है।

पूर्वी दिल्ली नगर निगम के महापौर श्री हर्ष मल्होत्रा ने कहा कि हम लगातार कहते रहे हैं कि निगम बटवारे के समय ही यह तय था कि पूर्वी दिल्ली नगर निगम स्वःराजस्व आर्थिक संसाधनों में सबसे कमजोर है।  इसके चलते तत्कालीन सरकार ने वायदा किया था कि एक 250 करोड़ रूपये से अधिक का विशेष अनुदान पूर्वी दिल्ली नगर निगम को मिलेगा पर पहले शीला दीक्षित फिर केजरीवाल सरकार दोनों ने ही आज तक यह राशि भी हमें नहीं दी है।  विषमताओं के बावजूद हमनें मुनिसिपल रिफोर्म लागू करने में भी पहल की पर दिल्ली सरकार हमारे सभी प्रयासों को नकारती है और हमें न तो मुनिसिपल रिफोर्म का, न ही अन्य मदों का बकाया पैसा दे रही है। हमारे निगम आयुक्त ने दिल्ली सरकार को इस बारे में 25 जनवरी को पत्र लिखा है और विभिन्न अन्य बकायाओं के साथ 500 करोड़ रूपये के विशेष अनुदान की मांग की है।

उत्तरी दिल्ली नगर निगम के महापौर श्री रविन्द्र गुप्ता ने कहा है कि उत्तरी दिल्ली नगर निगम को जहां मुनिसिपल रिफोर्म का पैसा लगभग 800 करोड़ रूपये तो मिला ही नहीं है वहीं हमें 80 करोड़ रूपया फेमिली प्लानिंग क्लिनिक का लेना है।


श्री रविन्द्र गुप्ता ने बताया कि उन्होंने दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री को एक पत्र लिख सरकार द्वारा निगम खातों के लिए जांच कमेटी बनाने पर सवाल उठाते हुये पूछा है कि क्या यह कमेटी मुनिसिपल आॅडिट टीम या प्रति वर्ष सीएजी आॅडिट करने वाली टीम से भी ज्यादा सक्षम होगी।

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