दिल्ली भाजपा अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री से मांगा 11 प्रश्नों का जवाब
किसान की मृत्यु की मीडिया कवरेज पर मुख्यमंत्री द्वारा यह कहना कि यह तो ड्रामेवाजी और टी.आर.पी. का खेल चल रहा है न सिर्फ निंदनीय है बल्कि मानवता का घिनौना अपमान है - सतीश उपाध्याय
कहा कि तीन दिन की चुप्पी के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविन्द केजरीवाल ने उनकी पार्टी के कार्यकत्र्ता किसान गजेन्द्र की आत्महत्या रूपी हत्या पर जो प्रतिक्रिया दी है उससे उनका घिनौना व्यक्तित्व सामने आया है। पत्रकारवार्ता में सांसद श्री रमेश बिधूड़ी एवं भाजपा के राष्ट्रीय मंत्री सरदार आर पी सिंह भी उपस्थिति थे।
श्री उपाध्याय ने कहा कि गंभीर संदिग्ध परिस्थिति में एक मुख्यमंत्री के सामने एक किसान मरा हो तो उसकी मीडिया कवरेज स्वाभाविक है। ऐसे में मुख्यमंत्री द्वारा यह कहना कि यह तो ड्रामेवाजी और टी.आर.पी. का खेल चल रहा है न सिर्फ निंदनीय है बल्कि मानवता का घिनौना अपमान है। श्री उपाध्याय ने कहा है कि जिस तरह तीन दिन तक मुख्यमंत्री जनता एवं मीडिया से छिपे रहे तो यह अपने आप में एक प्रश्न खड़ा करता है कि मुख्यमंत्री अपनी आंख के सामने हुई घटना पर बोलने से बच क्यों रहे थे ?
श्री उपाध्याय ने कहा कि आम आदमी पार्टी के लिए किसानों का मुद्दा एक सस्ती लोकप्रियता पाने का साधन बना और उसकी के चलते उन्होंने पहले दिल्ली के किसानों को गुमराह करने की कोशिश की। तीन सप्ताह पूर्व मुण्डका में एक रैली आयोजित कर किसानों के लिए 20,000 रूपये एकड़ मुआवजे की घोषणा की थी पर आज तक किसी भी एक किसान को मुआवजा मिलना तो दूर आज तक उसके लिए सर्वे कार्य ही शुरू नहीं हुआ। मुख्यमंत्री ने मुआवजे के बड़े-बड़े बोर्ड लगा अपना प्रचार खूब किया।
श्री उपाध्याय ने कहा है कि श्री अरविन्द केजरीवाल का एक स्वभाव बन गया है कि पहले अपनी हठधर्मी करते हैं और फिर मासूम बन माफी मांगने का नाटक करते हैं। आज की माफी जिन शब्दों में मांगी गई है ऐसा लगता है कि कोई सशर्त मांफी मांग रहा हो।
मुख्यमंत्री का अब इस मसले पर सिर्फ मांफी मांगना काफी नहीं अब उन्हें देश की जनता को जवाब देना होगा। बहुत से सवाल हैं जिनका उन्हें जवाब देना होगा।
-> मुख्यमंत्री जी आप हर छोटी बड़ी बात पर डायलाॅग करने की बात करते हैं - आप बतायेंगे कि आपसे 30 गज की दूरी पर एक व्यक्ति आत्म हत्या का प्रयास कर रहा था, क्या आपने उससे कोई डायलाॅग कर समझाने का प्रयास किया ?
-> मुख्यमंत्री जी कल तक आप की पार्टी के नेता जोर जोर से कह रहे थे कि दिल्ली पुलिस दोषी है, मीडिया दोषी है, आज आप ने माफी नामे में कहा है कि पुलिस की कोई गलती नहीं है - आखिर सही कौन है आपके साथी या आप ?
-> मुख्यमंत्री जी इस संदर्भ में दिल्ली पुलिस की एफआईआर में साफ लिखा है कि पुलिस ने मंच से अनुरोध किया कि वह आप कार्यकत्र्ताओं को ताली बजाने, नारे लगाने से रोकें - आप स्वयं मंच पर थे जवाब दें कि क्या यह सच नहीं ?
-> मुख्यमंत्री जीएफआईआर कहती है कि आप के कार्यकत्र्ताओं ने आपातकालीन वाहन को पहले अंदर घुसने से रोका फिर बाहर निकलने में बाधा पहुंचाई। यह सिर्फ एफआईआर का मसला नहीं, देश की जनता ने विभिन्न चैनलों के माध्यम से आप के कार्यकत्र्ताओं को ऐसा करते देखा - मुख्यमंत्री जी आप वहां मौजूद थे, बतायें क्या यह भी झूठ है ?
-> मुख्यमंत्री जी आपकी मौजूदगी में किसान की मृत्यु से लगभग 20 मिनिट पहले आपके साथी कुमार विश्वास ने मंच से कहा “लटक गया“ - देश जानना चाहता है कि यह बोलने का क्या अभिप्राय था, क्या उन्हें पहले से पता था कि यह होने वाला है ?
-> मुख्यमंत्री जी आपकी एक विधायिका सुश्री अल्का लाम्बा द्वारा मृत्यु की घोषणा से पहले ही आपको बताया कि किसान की मृत्यु हो गई और श्रद्धांजलि दे दी, क्या उन्हें पहले से मालूम था कि आज किसान मर जायेगा - क्या आप यह तथ्य भी झुठला सकते हैं ?
-> मुख्यमंत्री जी आपके एक विधायक साथी सोमनाथी भारती ने इस संदर्भ में एक ट्वीट किया और उसे बाद में हटा दिया - आखिर क्यों हटाना पड़ा यह ट्वीट ?
-> मुख्यमंत्री जी मृतक किसान के परिवार और मीडिया सहित अन्य सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मृतक किसान लगातार आपके उपमुख्यमंत्री श्री मनीष सिसोदिया के संपर्क में था - क्या आप उन्हें निर्देश देंगे कि आगे आकर दिल्ली पुलिस को जांच में सहयोग दें?
-> मुख्यमंत्री जी आपके एक साथी आशुतोष ने बड़ी बेशर्मी से कहा कि अगली बार कोई किसान पेड़ पर चढ़ेगा तो मैं अरविन्द से कहूंगा कि पेड़ पर चढ़कर बचा - क्या आप आशुतोष के इस बयान की भत्र्सना करेंगे ?
-> मुख्यमंत्री जी आपके साथी लगातार विरोधाभाषी बयान देते हैं कभी मृतक को किसान कहते हैं तो कभी साफा व्यवसायी - आखिर यह विरोधाभाष क्यों ?
-> मुख्यमंत्री जी आपने अपनी सशर्त माफी नामे में कहा है कि यह मीडिया का टी.आर.पी. खेल है - क्या आप अपनी इस बात पर कायम हैं और अगर कायम हैं तो बतायें कि क्या एक किसान की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु पर मीडिया को चुप रहना चाहिए था ?
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