सीएनजी फिटनेस घोटाला में सरकारी अभियोक्ता को हटाने की न्यायिक जाॅंच की जाये : विजेन्द्र गुप्ता
नई दिल्ली, 11 सितम्बर। दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष श्री विजेन्द्र गुप्ता ने आज सीएनजी फिटनेस घोटाले में चार्जशीट दाखिल करने पर अतिरिक्त सरकारी अभियोक्ता श्री विनोद कुमार शर्मा को हटाये जाने के मामले में न्यायिक जाॅंच की मांग करी । उन्होंने कहा कि यह न्यायिक प्रक्रिया में राजनैतिक दखलंदाजी का साफ नमूना है । वह आज विधान सभा परिसर में संवाददाताओं को सम्बोधित कर रहे थे । उनके साथ विधायक श्री ओमप्रकाश शर्मा तथा श्री जगदीश प्रधान भी उपस्थित थे । भाजपा विधायकों ने कहा कि उपराज्यपाल को वस्तुस्थिति से अवगत करा दिया गया है और अब उनसे निवेदन है कि वे सच्चाई को सामने लाने के लिये कदम उठायें । उन्होंने कहा कि आप सरकार ने न्यायिक प्रक्रिया में कार्यरत सरकारीकर्मी को डरा-धमकाकर अपना न्यायोचित काम करने से रोका है, जो अपने आप में एक गम्भीर अपराध है । उन्होंने कहा कि सारे मामले को देखने से स्पष्ट होता है कि न्यायिक प्रक्रिया में रत एक ईमानदार अधिकारी को अपने दायित्व को निभाने से रोका गया है ।
विपक्ष के नेता ने इस बात पर बल दिया कि आप सरकार बहुत बढ़चढ़कर भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ने की बात करती है परंतु वह स्वयं भ्रष्ट तरीके अपनाने में जरा भी संकोच नहीं करती है और बदले की भावना से सरकारी कार्यांे में लगे अपने अधिकारियों व कर्मचारियों को डरा धमकाकर अपना उल्लू सीधा करनेे में सबसे आगे रहती है । श्री गुप्ता ने कहा कि भ्रष्टाचार निरोधक शाखा के पुलिस स्टेशन में सीएनजी घोटाले के संबंध में एक एफआईआर दर्ज कराई गई । जाॅंच के उपरांत, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री राजेन्द्र कुमार तथा आठ अन्य व्यक्तियों को आरोपी नामजद किया गया । जाॅंच के उपरांत संबंधित जाॅंच अधिकारी ने भ्रष्टाचार निरोधक शाखा की विशेष न्यायाधीश सुश्री पूनम चैधरी के अधीन नियुक्त विद्वान अभियोक्ता को प्रेषित कर दिया ताकि अग्रिम कार्यवाही प्रारम्भ की जा सके ।
श्री गुप्ता ने जानकारी दी कि अतिरिक्त सरकारी अभियोक्ता श्री विनोद कुमार शर्मा ने मुख्यमंत्री को अपने हस्तलिखित पत्रों के माध्यम से सूचित किया कि उन्हैं उनके प्रधान सचिव श्री राजेन्द्र कुमार ने अपने कार्यालय में बुलाया और उन्हैं डराया धमकाया गया तथा उन्हैं निलम्बित करने की भी धमकी दी । उनको आदेश दिये गये कि वे अग्रिम कार्यवाही हेतु न्यायालय में चार्जशीट/चालान जमा न करायें ।
विपक्ष के नेता ने कहा कि विद्वान अभियोक्ता सरकारी कर्मचारी होने के नाते अपनी सरकारी ड्यूटी निभाने के लिये बाध्य थे । उन्होंने 31 अगस्त, 2015 को जाॅंच अधिकारी से चार्जशीट/चालान प्राप्त किये । सारी चार्जशीट जाॅंचने के उपरांत उन्होंने निर्धारित प्रक्रिया को अपनाते हुये सारे मामले को माननीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर दिया ताकि अग्रिम न्यायिक प्रक्रिया निर्बाध रूप से चलती रहे ।
मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री राजेन्द्र कुमार ने 2 सितम्बर, 2015 को श्री विनोद कुमार शर्मा को दिल्ली सचिवालय स्थित अपने कक्ष में बुलवाया । उन्होंने उनके साथ काफी डांट डपट की और अनादर किया । उन्होंने कहा कि “तनख्वाह सरकार से लेते हो और एक हजार पन्नों की चार्जशीट एक दिन में जमा करा देते हो, फाइल को देरी करो फाइल ए सी ब्रांच से मंगवाओ, हमारे सामने पेश करो , यदि ऐसा नहीं किया तो सस्पेंड किये जाओगे” । श्री शर्मा को नौकरी से निकाल दिये जाने तक की धमकी दी गई । “आरोप पत्र यदि दाखिल हो जाये तो उसे दाखिल मत होने दो, वर्ना तुम्हारी छुट्टी ”।
श्री गुप्ता ने कहा कि श्री विनोद कुमार शर्मा ने एक जिम्मेदार अधिकारी के नाते अपने कर्तव्य का निर्वाहन करते हुये श्री राजेन्द्र कुमार के डराने धमकाने के बावजूद भी माननीय न्यायालय के समक्ष 2 सितम्बर को आरोप पत्र दाखिल कर दिया । न्यायालय ने अग्रिम सुनवाई के लिए 26 सितम्बर की तारीख निर्धारित की । तत्पश्चात् 4 सितम्बर को दिल्ली सरकार के उच्च अधिकारियों ने सरकारी अभियोक्ता के कार्यालय में रेड करी और जोर जबरदस्ती कुछ चालान अपने कब्जे में कर ले गये । लिये गये रिकार्ड की उन्होंने कोई रसीद नहीं दी । उन्होंने उपस्थित कर्मचारियों के साथ दुव्र्यवहार भी किया ।
विपक्ष के नेता ने कहा कि यह सरकारी न्यायिक प्रक्रिया में डरा धमकाकर राजनीतिक हस्तक्षेप का जीता जागता सबूत है । सरकार यह नहीं चाहती कि सौ करोड़ के घोटाले की न्यायोचित तरीके से जाॅंच की जाये । सरकार की मंशा है कि मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री राजेन्द्र कुमार को किसी भी तरीके से बचाया जाये ।
श्री गुप्ता ने कहा कि यहंा यह बताना भी उचित होगा कि सरकार ने अवकाश प्राप्त निदेशक श्री बी.एस. जून को विशेष सरकारी अभियोक्ता नियुक्त किया। उनको भ्रष्टाचार विरोधी शाखा के मामलों की जाॅंच का दायित्व दिया गया । परंतु माननीय उपराज्यपाल ने श्री संजय गुप्ता को इस शाखा का विशेष सरकारी अभियोक्ता नियुक्त किया ।
माननीय सुश्री पूनम चैधरी के न्यायालय ने श्री बी.एस.जून के प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया है और श्री संजय गुप्ता के नाम को स्वीकृति दे दी है । इससे यह भी पता चलता है कि किस प्रकार सरकार न्यायिक प्रक्रिया में बाधा पहुंचाने की चेष्टा कर रही है ।
श्री गुप्ता ने कहा कि केजरीवाल सरकार इंक्वायरी कमीशन के मामले में भी पूरी तरह उजागर हो चुकी है । यह अपने चहेते अधिकारियों को बचाने के लिये दृढ़संकल्प थी परंतु केन्द्र सरकार ने दिल्ली सरकार की पिक एंड चूज पालिसी को देखते हुये दिल्ली सरकार द्वारा गठित इंक्वायरी कमीशन को रद्द कर एक उचित कदम उठाया ।
विपक्ष के नेता ने इस बात पर बल दिया कि आप सरकार बहुत बढ़चढ़कर भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ने की बात करती है परंतु वह स्वयं भ्रष्ट तरीके अपनाने में जरा भी संकोच नहीं करती है और बदले की भावना से सरकारी कार्यांे में लगे अपने अधिकारियों व कर्मचारियों को डरा धमकाकर अपना उल्लू सीधा करनेे में सबसे आगे रहती है । श्री गुप्ता ने कहा कि भ्रष्टाचार निरोधक शाखा के पुलिस स्टेशन में सीएनजी घोटाले के संबंध में एक एफआईआर दर्ज कराई गई । जाॅंच के उपरांत, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री राजेन्द्र कुमार तथा आठ अन्य व्यक्तियों को आरोपी नामजद किया गया । जाॅंच के उपरांत संबंधित जाॅंच अधिकारी ने भ्रष्टाचार निरोधक शाखा की विशेष न्यायाधीश सुश्री पूनम चैधरी के अधीन नियुक्त विद्वान अभियोक्ता को प्रेषित कर दिया ताकि अग्रिम कार्यवाही प्रारम्भ की जा सके ।
श्री गुप्ता ने जानकारी दी कि अतिरिक्त सरकारी अभियोक्ता श्री विनोद कुमार शर्मा ने मुख्यमंत्री को अपने हस्तलिखित पत्रों के माध्यम से सूचित किया कि उन्हैं उनके प्रधान सचिव श्री राजेन्द्र कुमार ने अपने कार्यालय में बुलाया और उन्हैं डराया धमकाया गया तथा उन्हैं निलम्बित करने की भी धमकी दी । उनको आदेश दिये गये कि वे अग्रिम कार्यवाही हेतु न्यायालय में चार्जशीट/चालान जमा न करायें ।
विपक्ष के नेता ने कहा कि विद्वान अभियोक्ता सरकारी कर्मचारी होने के नाते अपनी सरकारी ड्यूटी निभाने के लिये बाध्य थे । उन्होंने 31 अगस्त, 2015 को जाॅंच अधिकारी से चार्जशीट/चालान प्राप्त किये । सारी चार्जशीट जाॅंचने के उपरांत उन्होंने निर्धारित प्रक्रिया को अपनाते हुये सारे मामले को माननीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर दिया ताकि अग्रिम न्यायिक प्रक्रिया निर्बाध रूप से चलती रहे ।
मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री राजेन्द्र कुमार ने 2 सितम्बर, 2015 को श्री विनोद कुमार शर्मा को दिल्ली सचिवालय स्थित अपने कक्ष में बुलवाया । उन्होंने उनके साथ काफी डांट डपट की और अनादर किया । उन्होंने कहा कि “तनख्वाह सरकार से लेते हो और एक हजार पन्नों की चार्जशीट एक दिन में जमा करा देते हो, फाइल को देरी करो फाइल ए सी ब्रांच से मंगवाओ, हमारे सामने पेश करो , यदि ऐसा नहीं किया तो सस्पेंड किये जाओगे” । श्री शर्मा को नौकरी से निकाल दिये जाने तक की धमकी दी गई । “आरोप पत्र यदि दाखिल हो जाये तो उसे दाखिल मत होने दो, वर्ना तुम्हारी छुट्टी ”।
श्री गुप्ता ने कहा कि श्री विनोद कुमार शर्मा ने एक जिम्मेदार अधिकारी के नाते अपने कर्तव्य का निर्वाहन करते हुये श्री राजेन्द्र कुमार के डराने धमकाने के बावजूद भी माननीय न्यायालय के समक्ष 2 सितम्बर को आरोप पत्र दाखिल कर दिया । न्यायालय ने अग्रिम सुनवाई के लिए 26 सितम्बर की तारीख निर्धारित की । तत्पश्चात् 4 सितम्बर को दिल्ली सरकार के उच्च अधिकारियों ने सरकारी अभियोक्ता के कार्यालय में रेड करी और जोर जबरदस्ती कुछ चालान अपने कब्जे में कर ले गये । लिये गये रिकार्ड की उन्होंने कोई रसीद नहीं दी । उन्होंने उपस्थित कर्मचारियों के साथ दुव्र्यवहार भी किया ।
विपक्ष के नेता ने कहा कि यह सरकारी न्यायिक प्रक्रिया में डरा धमकाकर राजनीतिक हस्तक्षेप का जीता जागता सबूत है । सरकार यह नहीं चाहती कि सौ करोड़ के घोटाले की न्यायोचित तरीके से जाॅंच की जाये । सरकार की मंशा है कि मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री राजेन्द्र कुमार को किसी भी तरीके से बचाया जाये ।
श्री गुप्ता ने कहा कि यहंा यह बताना भी उचित होगा कि सरकार ने अवकाश प्राप्त निदेशक श्री बी.एस. जून को विशेष सरकारी अभियोक्ता नियुक्त किया। उनको भ्रष्टाचार विरोधी शाखा के मामलों की जाॅंच का दायित्व दिया गया । परंतु माननीय उपराज्यपाल ने श्री संजय गुप्ता को इस शाखा का विशेष सरकारी अभियोक्ता नियुक्त किया ।
माननीय सुश्री पूनम चैधरी के न्यायालय ने श्री बी.एस.जून के प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया है और श्री संजय गुप्ता के नाम को स्वीकृति दे दी है । इससे यह भी पता चलता है कि किस प्रकार सरकार न्यायिक प्रक्रिया में बाधा पहुंचाने की चेष्टा कर रही है ।
श्री गुप्ता ने कहा कि केजरीवाल सरकार इंक्वायरी कमीशन के मामले में भी पूरी तरह उजागर हो चुकी है । यह अपने चहेते अधिकारियों को बचाने के लिये दृढ़संकल्प थी परंतु केन्द्र सरकार ने दिल्ली सरकार की पिक एंड चूज पालिसी को देखते हुये दिल्ली सरकार द्वारा गठित इंक्वायरी कमीशन को रद्द कर एक उचित कदम उठाया ।
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