केन्द्रीय गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह ने आपातकाल बंदियों को लोकतंत्र प्रहरी कहते हुये किया वंदन-अभिनंदन
नई दिल्ली, 25 जून। दिल्ली भाजपा ने आज नई दिल्ली के केदारनाथ साहनी सभागार में आपातकाल में 1975-77 के बीच बंदी बनाये गये पार्टी एवं समाजिक कार्यकर्ताओं का अभिनंदन किया। दिल्ली भाजपा प्रतिवर्ष 25 जून को आपातकाल भत्र्सना दिवस के रूप में मनाती है।
केन्द्रीय गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह ने आपातकाल बंदियों का अभिनंदन कर उपस्थित कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं श्री रामलाल, प्रो. विजय कुमार मलहोत्रा एवं सांसद प्रवेश वर्मा की उपस्थिति में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्री सतीश उपाध्याय ने की। कार्यक्रम के संयोजक दिल्ली के पूर्व महापौर श्री महेश चंद शर्मा ने गणमान्य अतिथियों का स्वागत करते हुये आपातकाल से जुड़े अपने संस्मरण कार्यकर्ताओं के बीच रखे।
श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि आपातकाल के बंदी लोकतंत्र के प्रहरी हैं और मैं उन्हें वंदन नमन करता हूं। आपातकाल की घोषणा इस देश में किसी संविधानिक संकट या विदेशी आक्रमण के कारण नहीं की गई थी बल्कि 1971-72 की राजनीतिक घटनाओं के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की कुर्सी बचाने के लिये की गई थी। लोकतंत्र भारत का संस्कार है। जो भी सरकार लोकतंत्र का अपमान करेगी, जनता के मौलिक अधिकारों का हनन करेगी, उसे इसकी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ेगी और ऐसी ही कीमत 1977 के चुनाव में श्रीमती इंदिरा गांधी को भी चुकानी पड़ी थी।
आपातकाल में लोगों के विरूद्ध झूठे मुकदमे दर्ज किये गये, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एवं जनसंघ के अनेक कार्यकर्ताओं को बिना किसी आरोप पत्र के 18-19 महीनों तक जेल में रखा गया। जिन लोगों ने आपातकाल में कुर्बानी दी उन्होंने कभी किसी सम्मान की अभिलाषा नहीं की, उन्होंने लोकतंत्र के प्रति अपनी आस्था के लिये कुर्बानी दी। कांग्रेस सरकार ने अंग्रेजों के शासन की दमनकारी नीतियों का अनुसरण किया और अनेक लोकतंत्र प्रहरियों को 18 माह तक अपने परिवारों से भी मिलने नहीं दिया।
भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री श्री रामलाल ने कहा कि आपातकाल में कांग्रेस शासन के जुल्म सहने वाले हमारे साथियों ने लगभग वैसे ही कुर्बानी की जैसी अंग्रेजों के शासन के दौरान क्रांतिकारियों ने की। आज हम महसूस कर सकते हैं कि आपातकाल बंदियों ने अवश्य ही उन वीर क्रांतिकारियों से प्रेरणा पाकर कुर्बानियां दीं।
श्री सतीश उपाध्याय ने कहा कि हमारी पीढ़ी सौभाग्यशाली है जिन्हें बिट्रिश साम्राज्य से भारत को मुक्त कराने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के साथ-साथ आपातकाल के विरूद्ध संघर्ष करने वाले लोकतंत्र प्रहरियों से भी प्रेरणा लेने का अवसर प्राप्त है। उन्होंने कहा कि हमें उन लोकतंत्र प्रहरियों पर गर्व है जिन्होंने 1973 से 1977 के बीच कांग्रेस के तानाशाह शासन से लौटे हुये निजी जीवन में बहुत सी कुर्बानियां दी।
प्रो. विजय कुमार मलहोत्रा ने कहा कि आपातकाल जिसके दौरान देश के नागरिकों के संविधानिक हकों में कटौती की गई आजाद भारत के इतिहास का काला अध्याय है। देश की जनता ने तानाशाही शासन के खिलाफ बगावत की और उसका परिणाम कांग्रेस को 1977 के चुनावों में भुगतना पड़ा।
सांसद श्री प्रवेश वर्मा ने लोकतंत्र प्रहरियों का आभार व्यक्त किया कि उनकी दी कुर्बानी के फलस्वरूप आज देश में ऐसा वातावरण है कि कोई सरकार कभी भी राजनीतिक कारणों से आपातकाल लगाने की कल्पना भी नहीं कर सकती।
केन्द्रीय गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह ने आपातकाल बंदियों का अभिनंदन कर उपस्थित कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं श्री रामलाल, प्रो. विजय कुमार मलहोत्रा एवं सांसद प्रवेश वर्मा की उपस्थिति में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्री सतीश उपाध्याय ने की। कार्यक्रम के संयोजक दिल्ली के पूर्व महापौर श्री महेश चंद शर्मा ने गणमान्य अतिथियों का स्वागत करते हुये आपातकाल से जुड़े अपने संस्मरण कार्यकर्ताओं के बीच रखे।
श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि आपातकाल के बंदी लोकतंत्र के प्रहरी हैं और मैं उन्हें वंदन नमन करता हूं। आपातकाल की घोषणा इस देश में किसी संविधानिक संकट या विदेशी आक्रमण के कारण नहीं की गई थी बल्कि 1971-72 की राजनीतिक घटनाओं के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की कुर्सी बचाने के लिये की गई थी। लोकतंत्र भारत का संस्कार है। जो भी सरकार लोकतंत्र का अपमान करेगी, जनता के मौलिक अधिकारों का हनन करेगी, उसे इसकी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ेगी और ऐसी ही कीमत 1977 के चुनाव में श्रीमती इंदिरा गांधी को भी चुकानी पड़ी थी।
आपातकाल में लोगों के विरूद्ध झूठे मुकदमे दर्ज किये गये, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एवं जनसंघ के अनेक कार्यकर्ताओं को बिना किसी आरोप पत्र के 18-19 महीनों तक जेल में रखा गया। जिन लोगों ने आपातकाल में कुर्बानी दी उन्होंने कभी किसी सम्मान की अभिलाषा नहीं की, उन्होंने लोकतंत्र के प्रति अपनी आस्था के लिये कुर्बानी दी। कांग्रेस सरकार ने अंग्रेजों के शासन की दमनकारी नीतियों का अनुसरण किया और अनेक लोकतंत्र प्रहरियों को 18 माह तक अपने परिवारों से भी मिलने नहीं दिया।
भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री श्री रामलाल ने कहा कि आपातकाल में कांग्रेस शासन के जुल्म सहने वाले हमारे साथियों ने लगभग वैसे ही कुर्बानी की जैसी अंग्रेजों के शासन के दौरान क्रांतिकारियों ने की। आज हम महसूस कर सकते हैं कि आपातकाल बंदियों ने अवश्य ही उन वीर क्रांतिकारियों से प्रेरणा पाकर कुर्बानियां दीं।
श्री सतीश उपाध्याय ने कहा कि हमारी पीढ़ी सौभाग्यशाली है जिन्हें बिट्रिश साम्राज्य से भारत को मुक्त कराने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के साथ-साथ आपातकाल के विरूद्ध संघर्ष करने वाले लोकतंत्र प्रहरियों से भी प्रेरणा लेने का अवसर प्राप्त है। उन्होंने कहा कि हमें उन लोकतंत्र प्रहरियों पर गर्व है जिन्होंने 1973 से 1977 के बीच कांग्रेस के तानाशाह शासन से लौटे हुये निजी जीवन में बहुत सी कुर्बानियां दी।
प्रो. विजय कुमार मलहोत्रा ने कहा कि आपातकाल जिसके दौरान देश के नागरिकों के संविधानिक हकों में कटौती की गई आजाद भारत के इतिहास का काला अध्याय है। देश की जनता ने तानाशाही शासन के खिलाफ बगावत की और उसका परिणाम कांग्रेस को 1977 के चुनावों में भुगतना पड़ा।
सांसद श्री प्रवेश वर्मा ने लोकतंत्र प्रहरियों का आभार व्यक्त किया कि उनकी दी कुर्बानी के फलस्वरूप आज देश में ऐसा वातावरण है कि कोई सरकार कभी भी राजनीतिक कारणों से आपातकाल लगाने की कल्पना भी नहीं कर सकती।
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