सरकारी विद्यालयों में दाखिले की उचित आयु निर्धारित करने वाला आदेश वापिस हो - विजेन्द्र गुप्ता
नयी दिल्ली, 24 अगस्त। नेता प्रतिपक्ष श्री विजेन्द्र गुप्ता ने दिल्ली सरकार का ध्यान अप्रैल 2014 में शिक्षा निदेशालय द्वारा जारी उस सर्कुलर की ओर आकर्षित किया है जिसके द्वारा वर्ष 2014-2015 तथा उसके उपरांत 12वीं कक्षा तक के विद्यार्थियों के दिल्ली सरकार के विदयालयों में दाखिले की उचित आयु निर्धारित की गई है ।
श्री गुप्ता ने कहा कि इस आदेश के कारण बड़ी संख्या में गरीब बच्चों को स्कूलों मंे दाखिला नहीं मिल पाया है। उनका भविष्य अंधकारमय हो गया है। इन बच्चों के अभिभावक परेशान है कि उनके बच्चों को शिक्षा कैसे प्राप्त होगी? उन्होंने इस आदेश को अविलम्ब वापिस लेने की मांग करी ताकि अधिक से अधिक संख्या में बच्चे शिक्षा की मुख्यधारा में सम्मिलित हो सकें ।
4 अप्रैल 2014 को दिल्ली सरकार ने एक सर्कुलर जारी करके सभी सरकारी स्कूलों को बताया कि दूसरी कक्षा से लेकर ग्यारहवीं कक्षा तक सिर्फ उन्हीं बच्चों को प्रवेश दिया जाये जिनकी उम्र सर्कुलर में बताये गये अनुसार हो। इसके तहत दूसरी कक्षा में प्रवेश के लिये उम्र 6 वर्ष से अधिक और 7 वर्ष से कम होनी चाहिये। तीसरी कक्षा में प्रवेश के लिये आयु 7 वर्ष से अधिक और 8 वर्ष से कम हो। इसी प्रकार चैथी, पांचवीं, छठी, सातवीं, आठवीं कक्षा के लिये भी न्यूनतम और अधिकतम आयुसीमा निर्धारित की गयी। कक्षा नौ में प्रवेश के लिये उम्र 13 वर्ष से अधिक और 15 वर्ष से कम होनी चाहिये। 10 वीं कक्षा में प्रवेश के लिये 14 वर्ष से अधिक और 15 वर्ष से कम आयु हो। ग्यारहवीं कक्षा के लिये आयुसीमा 15 वर्ष से अधिक और 17 वर्ष से कम होनी चाहिये।
श्री गुप्ता ने बताया कि दिल्ली की आबादी में 70 प्रतिशत से अधिक लोग अनधिकृत काॅलोनियों और स्लम बस्तियों में निवास करते हैं। इनकी जीविका का साधन स्थायी नहीं है। दैनिक मजदूरी या छोटा मोटा कार्य करके ये लोग अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं। इन्हीं के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ने के लिये जाते हैं। सरकारी सर्वेक्षणों के अनुसार इन गरीबों के अधिकतर बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। परिवार की आय अधिक न होेने के कारण ज्यादातर परिवार अपने बच्चों को उचित उम्रसीमा पर स्कूलों में दाखिला नहीं करा पाते। इनके बच्चे पढ़ना चाहते हैं लेकिन सरकार द्वारा हर कक्षा के लिये आयुसीमा निर्धारित करने के कारण इनको अब स्कूलों में प्रवेश नहीं मिल पा रहा है। इससे राजधानी के अनेक परिवारों में निराशा का माहौल व्याप्त हो गया है।
श्री गुप्ता ने बताया कि गत दिनों भजनपुरा, सीलमपुर, करावल नगर, मयूर विहार, वेलकम आदि इलाकों में सर्वेक्षण के दौरान सैकड़ों गरीब, दलित, वंचित परिवारों के लोगों ने बताया कि भयंकर महंगाई के युग में आर्थिक तंगी के कारण बच्चों को पढ़ा पाना मुश्किल हो रहा था, अब सरकार के आदेश के कारण उनके बच्चों का स्कूल जाना कठिन हो गया है। स्कूलों के अधिकारियों ने उम्रसीमा का हवाला देकर प्रवेश करने से इन्कार कर दिया है।
नेता प्रतिपक्ष का कहना है कि केन्द्र सरकार ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम इसलिये बनाया था कि देश के सभी बच्चों को शिक्षा मिले और भारत एक साक्षर देश बन जाये। शिक्षा का अधिकार मूल अधिकार है। दिल्ली सरकार को गत अप्रैल में जारी सकुर्लर को वापिस लेना चाहिये ताकि आगे आने वाले समय में बच्चे शिक्षा अधिकार के अनुरूप सरकारी विद्यालयों में दाखिला लेकर शिक्षा की मुख्यधारा में समाहित हो सकें ।
श्री गुप्ता ने कहा कि इस आदेश के कारण बड़ी संख्या में गरीब बच्चों को स्कूलों मंे दाखिला नहीं मिल पाया है। उनका भविष्य अंधकारमय हो गया है। इन बच्चों के अभिभावक परेशान है कि उनके बच्चों को शिक्षा कैसे प्राप्त होगी? उन्होंने इस आदेश को अविलम्ब वापिस लेने की मांग करी ताकि अधिक से अधिक संख्या में बच्चे शिक्षा की मुख्यधारा में सम्मिलित हो सकें ।
4 अप्रैल 2014 को दिल्ली सरकार ने एक सर्कुलर जारी करके सभी सरकारी स्कूलों को बताया कि दूसरी कक्षा से लेकर ग्यारहवीं कक्षा तक सिर्फ उन्हीं बच्चों को प्रवेश दिया जाये जिनकी उम्र सर्कुलर में बताये गये अनुसार हो। इसके तहत दूसरी कक्षा में प्रवेश के लिये उम्र 6 वर्ष से अधिक और 7 वर्ष से कम होनी चाहिये। तीसरी कक्षा में प्रवेश के लिये आयु 7 वर्ष से अधिक और 8 वर्ष से कम हो। इसी प्रकार चैथी, पांचवीं, छठी, सातवीं, आठवीं कक्षा के लिये भी न्यूनतम और अधिकतम आयुसीमा निर्धारित की गयी। कक्षा नौ में प्रवेश के लिये उम्र 13 वर्ष से अधिक और 15 वर्ष से कम होनी चाहिये। 10 वीं कक्षा में प्रवेश के लिये 14 वर्ष से अधिक और 15 वर्ष से कम आयु हो। ग्यारहवीं कक्षा के लिये आयुसीमा 15 वर्ष से अधिक और 17 वर्ष से कम होनी चाहिये।
श्री गुप्ता ने बताया कि दिल्ली की आबादी में 70 प्रतिशत से अधिक लोग अनधिकृत काॅलोनियों और स्लम बस्तियों में निवास करते हैं। इनकी जीविका का साधन स्थायी नहीं है। दैनिक मजदूरी या छोटा मोटा कार्य करके ये लोग अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं। इन्हीं के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ने के लिये जाते हैं। सरकारी सर्वेक्षणों के अनुसार इन गरीबों के अधिकतर बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। परिवार की आय अधिक न होेने के कारण ज्यादातर परिवार अपने बच्चों को उचित उम्रसीमा पर स्कूलों में दाखिला नहीं करा पाते। इनके बच्चे पढ़ना चाहते हैं लेकिन सरकार द्वारा हर कक्षा के लिये आयुसीमा निर्धारित करने के कारण इनको अब स्कूलों में प्रवेश नहीं मिल पा रहा है। इससे राजधानी के अनेक परिवारों में निराशा का माहौल व्याप्त हो गया है।
श्री गुप्ता ने बताया कि गत दिनों भजनपुरा, सीलमपुर, करावल नगर, मयूर विहार, वेलकम आदि इलाकों में सर्वेक्षण के दौरान सैकड़ों गरीब, दलित, वंचित परिवारों के लोगों ने बताया कि भयंकर महंगाई के युग में आर्थिक तंगी के कारण बच्चों को पढ़ा पाना मुश्किल हो रहा था, अब सरकार के आदेश के कारण उनके बच्चों का स्कूल जाना कठिन हो गया है। स्कूलों के अधिकारियों ने उम्रसीमा का हवाला देकर प्रवेश करने से इन्कार कर दिया है।
नेता प्रतिपक्ष का कहना है कि केन्द्र सरकार ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम इसलिये बनाया था कि देश के सभी बच्चों को शिक्षा मिले और भारत एक साक्षर देश बन जाये। शिक्षा का अधिकार मूल अधिकार है। दिल्ली सरकार को गत अप्रैल में जारी सकुर्लर को वापिस लेना चाहिये ताकि आगे आने वाले समय में बच्चे शिक्षा अधिकार के अनुरूप सरकारी विद्यालयों में दाखिला लेकर शिक्षा की मुख्यधारा में समाहित हो सकें ।
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