दिल्ली भाजपा ने राष्ट्रपति महोदय को ज्ञापन देकर दिल्ली सरकार द्वारा उत्पन्न किये जा रहे संवैधानिक संकट में हस्तक्षेप करने उसे संवैधानिक प्रक्रियाओं में काम करने का निर्देश देने का किया अनुरोध
नई दिल्ली, 10 अगस्त। दिल्ली प्रदेश भाजपा के एक प्रतिनिधिमंडल ने आज भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणव
मुखर्जी से मुलाकात कर उनका ध्यान दिल्ली प्रशासन में उत्पन्न हो रहे संवैधानिक संकट की ओर आकृष्ट करते हुये उन्हें एक ज्ञापन दिया।
प्रतिनिधिमंडल में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्री सतीश उपाध्याय, प्रदेश प्रभारी श्री श्याम जाजू, केन्द्रीय मंत्री डाॅ. हर्ष वर्धन, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष श्री विजेन्द्र गुप्ता, राष्ट्रीय मंत्री सरदार आर पी सिंह एवं श्री महेश गिरी, सांसद श्री रमेश बिधूड़ी, श्री प्रवेश वर्मा, डाॅ. उदित राज, श्रीमती मीनाक्षी लेखी, प्रदेश महामंत्री श्री आशीष सूद, श्रीमती रेखा गुप्ता एवं संगठन महामंत्री श्री सिद्धार्थन, विधायक श्री ओम प्रकाश शर्मा एवं श्री जगदीश प्रधान और मीडिया प्रमुख श्री प्रवीण शंकर कपूर सम्मिलित थे।
ज्ञापन में भाजपा ने कहा है कि शासन में आने के पहले दिन से ही दिल्ली सरकार जानबूझ कर संवैधानिक प्रक्रियाओं की अवहेलना करती रही है। शपथ लेने के बाद से ही चाहे प्रशासनिक नियुक्तियां हों, राजनीतिक नियुक्तियां हों, उपराज्यपाल से संबंधित विषय हों हर मुद्दे पर दिल्ली सरकार ने अपने नियम कानून खुद बनाने के प्रयास किये हैं और टकराव की नीति लेकर चली है।
भारत के प्रधानमंत्री के प्रति संबोधन में भी दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री और उनके सहयोगियों ने सभी शासकीय मर्यादायें तोड़ी हैं। जिनके कारण केन्द्र और दिल्ली सरकार के रिश्तों में तलखी आ सकती है जो लोकतंत्र के लिए स्वस्थ्य नहीं होगा।
ज्ञापन में कहा गया है कि यूं तो इस सरकार के हर कार्य में विवाद रहा है पर कुछ प्रमुख बिन्दू ऐसे हैं जिन्हें देखकर स्पष्ट हो जाता है कि दिल्ली सरकार को चेतावनी दिया जाना आवश्यक है। जिन प्रमुख बिन्दुओं का ज्ञापन में उल्लेख किया गया है वे हैं -
(1) संवैधानिक परम्पराओं की अवहेलना कर विधानसभा के पटल पर विभिन्न बिल लाये गये हैं जैसे कि 21 संसदीय सचिवों की अवैध नियुक्ति के संदर्भ में लाया गया दिल्ली मेम्बर्स आफ लेजिसलेटिव एसेम्बली (रिमूवल आफ डिसकाॅलीफिकेशन) (संशोधन) बिल-2015।
इसी तरह दिल्ली नेताजी सुभाष यूनिवरसिटी आफ टैक्नाॅलाजी बिल 2015 प्रस्तुत करने में संवैधानिक शब्द “सरकार“ की गलत रूप से व्याख्या की गई।
अभी 3 अगस्त, 2015 को दिल्ली विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसके अंतर्गत जांच आयोग स्थापना की बात की गई है। भारत के अतिरिक्त सोलिसिटर जनरल ने अपनी टिप्पणी में स्पष्ट कर दिया था कि दिल्ली विधानसभा ऐसा कोई प्रस्ताव पारित नहीं कर सकती फिर भी दिल्ली सरकार ने अपनी हठधर्मी की।
यह सभी असंवैधानिक बिल/प्रस्ताव सरकार ने संख्या बल के आधार पर पारित करा लिये।
(2) दिल्ली के उपराज्यपाल की संवैधानिक अधिकारों की अवमानना - केन्द्र शासित प्रदेश होने के कारण दिल्ली में उपराज्यपाल महोदय को अनेक संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं, अनेक मामलों में उपराज्यपाल नियुक्ति अधिकारी हैं या नियुक्ति को स्वीकृति देने के अधिकारी हैं पर वर्तमान दिल्ली सरकार लगातार उपराज्यपाल के संवैधानिक अधिकारों की अवहेलना करती रही है चाहे वह दिल्ली महिला आयोग का मामला हो, निजी बिजली कम्पनियों के बोर्ड पर दिल्ली सरकार के निदेशकों की नियुक्ति का मामला हो या फिर दिल्ली में कृषि भूमि का सर्कल रेट बढ़ाने का।
इसी तरह अधिकारियों की नियुक्ति का मसला हो, सतर्कता विभाग में नियुक्तियों का विषय हो या फिर कोटर्मिनस नियुक्तियों का सभी में उपराज्यपाल की आवश्यक स्वीकृति लेने में कोताही बरती गई। विवाद उत्पन्न किये गये और ऐसा दिखाने का प्रयास किया गया मानो उपराज्यपाल या केन्द्र सरकार ने दिल्ली सरकार पर कोई असंवैधानिक दबाव डाला हो।
(3) दिल्ली में लोकायुक्त की नियुक्ति को भी दिल्ली सरकार ने लगातार विवाद का विषय बनाया है। पहले पांच माह तक नियुक्ति के मामले को टालते रहे और फिर जब दिल्ली हाई कोर्ट ने मामले का संज्ञान लिया तब नियुक्ति की प्रक्रिया को शुरू किया गया है। इस प्रक्रिया में भी विपक्ष से चर्चा जैसी संवैधानिक आवश्यकता की भी अवहेलना की जा रही है और इसे भी विवादित बनाया जा रहा है।
(4) दिल्ली में राजनीतिक अराजकता - सत्ता में आने के तुरन्ब बाद से दिल्ली सरकार और दिल्ली के विधायकों ने मनमानी के जो कीर्तिमान स्थापित किये हैं वैसे दिल्ली में कभी नहीं देखे गये। मुख्यमंत्री की हठधर्मी के चलते दिल्ली में पहली बार एक मंत्री जितेन्द्र सिंह तोमर को जेल जाना पड़ा वह भी फर्जी शिक्षा डिग्री के मामले में। अब कुछ अन्य विधायकों के भी फर्जी डिग्री के मामले सामने आये हैं।
एक विधायक श्री सोमनाथ भारती पर उनकी पत्नी के साथ-साथ महिलाओं को अपमानित करने के मामले सामने आये हैं और उन पर अब कोर्ट में मुकदमा चलाया जायेगा।
दिल्ली में दो विधायकों श्रीमती प्रोमिला टोकस एवं श्री सुरेन्द्र कमांडो पर अनुसूचित जाति एक्ट के अंतर्गत मामले दर्ज हुये हैं पर मुख्यमंत्री सब पर चुप हैं।
अनेक विधायकों पर दंगा करने, साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने और जालसाजी जैसे मुकदमें दर्ज हुये हैं। तीन विधायक गिरफ्तार हो चुके हैं, एक अंतरिम जमानत पर हैं तो 8 अन्य कभी भी गिरफ्तार किये जा सकते हैं।
ज्ञापन में भाजपा नेताओं ने राष्ट्रपति महोदय से अनुरोध किया है कि वह दिल्ली को संवैधानिक संकट में जाने से रोकें और दिल्ली सरकार को चेतावनी जारी कर संवैधानिक व्यवस्थाओं के अंतर्गत कार्य करते हुये विकास को बढ़ाने का निर्देश दें।
मुखर्जी से मुलाकात कर उनका ध्यान दिल्ली प्रशासन में उत्पन्न हो रहे संवैधानिक संकट की ओर आकृष्ट करते हुये उन्हें एक ज्ञापन दिया।
प्रतिनिधिमंडल में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्री सतीश उपाध्याय, प्रदेश प्रभारी श्री श्याम जाजू, केन्द्रीय मंत्री डाॅ. हर्ष वर्धन, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष श्री विजेन्द्र गुप्ता, राष्ट्रीय मंत्री सरदार आर पी सिंह एवं श्री महेश गिरी, सांसद श्री रमेश बिधूड़ी, श्री प्रवेश वर्मा, डाॅ. उदित राज, श्रीमती मीनाक्षी लेखी, प्रदेश महामंत्री श्री आशीष सूद, श्रीमती रेखा गुप्ता एवं संगठन महामंत्री श्री सिद्धार्थन, विधायक श्री ओम प्रकाश शर्मा एवं श्री जगदीश प्रधान और मीडिया प्रमुख श्री प्रवीण शंकर कपूर सम्मिलित थे।
ज्ञापन में भाजपा ने कहा है कि शासन में आने के पहले दिन से ही दिल्ली सरकार जानबूझ कर संवैधानिक प्रक्रियाओं की अवहेलना करती रही है। शपथ लेने के बाद से ही चाहे प्रशासनिक नियुक्तियां हों, राजनीतिक नियुक्तियां हों, उपराज्यपाल से संबंधित विषय हों हर मुद्दे पर दिल्ली सरकार ने अपने नियम कानून खुद बनाने के प्रयास किये हैं और टकराव की नीति लेकर चली है।
भारत के प्रधानमंत्री के प्रति संबोधन में भी दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री और उनके सहयोगियों ने सभी शासकीय मर्यादायें तोड़ी हैं। जिनके कारण केन्द्र और दिल्ली सरकार के रिश्तों में तलखी आ सकती है जो लोकतंत्र के लिए स्वस्थ्य नहीं होगा।
ज्ञापन में कहा गया है कि यूं तो इस सरकार के हर कार्य में विवाद रहा है पर कुछ प्रमुख बिन्दू ऐसे हैं जिन्हें देखकर स्पष्ट हो जाता है कि दिल्ली सरकार को चेतावनी दिया जाना आवश्यक है। जिन प्रमुख बिन्दुओं का ज्ञापन में उल्लेख किया गया है वे हैं -
(1) संवैधानिक परम्पराओं की अवहेलना कर विधानसभा के पटल पर विभिन्न बिल लाये गये हैं जैसे कि 21 संसदीय सचिवों की अवैध नियुक्ति के संदर्भ में लाया गया दिल्ली मेम्बर्स आफ लेजिसलेटिव एसेम्बली (रिमूवल आफ डिसकाॅलीफिकेशन) (संशोधन) बिल-2015।
इसी तरह दिल्ली नेताजी सुभाष यूनिवरसिटी आफ टैक्नाॅलाजी बिल 2015 प्रस्तुत करने में संवैधानिक शब्द “सरकार“ की गलत रूप से व्याख्या की गई।
अभी 3 अगस्त, 2015 को दिल्ली विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसके अंतर्गत जांच आयोग स्थापना की बात की गई है। भारत के अतिरिक्त सोलिसिटर जनरल ने अपनी टिप्पणी में स्पष्ट कर दिया था कि दिल्ली विधानसभा ऐसा कोई प्रस्ताव पारित नहीं कर सकती फिर भी दिल्ली सरकार ने अपनी हठधर्मी की।
यह सभी असंवैधानिक बिल/प्रस्ताव सरकार ने संख्या बल के आधार पर पारित करा लिये।
(2) दिल्ली के उपराज्यपाल की संवैधानिक अधिकारों की अवमानना - केन्द्र शासित प्रदेश होने के कारण दिल्ली में उपराज्यपाल महोदय को अनेक संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं, अनेक मामलों में उपराज्यपाल नियुक्ति अधिकारी हैं या नियुक्ति को स्वीकृति देने के अधिकारी हैं पर वर्तमान दिल्ली सरकार लगातार उपराज्यपाल के संवैधानिक अधिकारों की अवहेलना करती रही है चाहे वह दिल्ली महिला आयोग का मामला हो, निजी बिजली कम्पनियों के बोर्ड पर दिल्ली सरकार के निदेशकों की नियुक्ति का मामला हो या फिर दिल्ली में कृषि भूमि का सर्कल रेट बढ़ाने का।
इसी तरह अधिकारियों की नियुक्ति का मसला हो, सतर्कता विभाग में नियुक्तियों का विषय हो या फिर कोटर्मिनस नियुक्तियों का सभी में उपराज्यपाल की आवश्यक स्वीकृति लेने में कोताही बरती गई। विवाद उत्पन्न किये गये और ऐसा दिखाने का प्रयास किया गया मानो उपराज्यपाल या केन्द्र सरकार ने दिल्ली सरकार पर कोई असंवैधानिक दबाव डाला हो।
(3) दिल्ली में लोकायुक्त की नियुक्ति को भी दिल्ली सरकार ने लगातार विवाद का विषय बनाया है। पहले पांच माह तक नियुक्ति के मामले को टालते रहे और फिर जब दिल्ली हाई कोर्ट ने मामले का संज्ञान लिया तब नियुक्ति की प्रक्रिया को शुरू किया गया है। इस प्रक्रिया में भी विपक्ष से चर्चा जैसी संवैधानिक आवश्यकता की भी अवहेलना की जा रही है और इसे भी विवादित बनाया जा रहा है।
(4) दिल्ली में राजनीतिक अराजकता - सत्ता में आने के तुरन्ब बाद से दिल्ली सरकार और दिल्ली के विधायकों ने मनमानी के जो कीर्तिमान स्थापित किये हैं वैसे दिल्ली में कभी नहीं देखे गये। मुख्यमंत्री की हठधर्मी के चलते दिल्ली में पहली बार एक मंत्री जितेन्द्र सिंह तोमर को जेल जाना पड़ा वह भी फर्जी शिक्षा डिग्री के मामले में। अब कुछ अन्य विधायकों के भी फर्जी डिग्री के मामले सामने आये हैं।
एक विधायक श्री सोमनाथ भारती पर उनकी पत्नी के साथ-साथ महिलाओं को अपमानित करने के मामले सामने आये हैं और उन पर अब कोर्ट में मुकदमा चलाया जायेगा।
दिल्ली में दो विधायकों श्रीमती प्रोमिला टोकस एवं श्री सुरेन्द्र कमांडो पर अनुसूचित जाति एक्ट के अंतर्गत मामले दर्ज हुये हैं पर मुख्यमंत्री सब पर चुप हैं।
अनेक विधायकों पर दंगा करने, साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने और जालसाजी जैसे मुकदमें दर्ज हुये हैं। तीन विधायक गिरफ्तार हो चुके हैं, एक अंतरिम जमानत पर हैं तो 8 अन्य कभी भी गिरफ्तार किये जा सकते हैं।
ज्ञापन में भाजपा नेताओं ने राष्ट्रपति महोदय से अनुरोध किया है कि वह दिल्ली को संवैधानिक संकट में जाने से रोकें और दिल्ली सरकार को चेतावनी जारी कर संवैधानिक व्यवस्थाओं के अंतर्गत कार्य करते हुये विकास को बढ़ाने का निर्देश दें।
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