मैनेजमेंट कोटा तथा मापदंड समाप्त करना जनता की आखों में धूल झोंकना है - विजेन्द्र गुप्ता
सरकार ने नर्सरी प्रवेष प्रक्रिया को स्कूलों के प्रबंधतंत्र की कठपुतली बनाया, अब स्कूल प्रवेष के लिए भारी डोनेषन वसूलने के लिए स्वतंत्र है - विजेन्द्र गुप्ता
स्कूलों में मैनेजमेंट कोटा 20 प्रतिषत था। भाजपा इसको समाप्त करने की पक्षधर है, परन्तु सरकार ने इस कोटे को समाप्त करने के नाम पर अप्रत्यक्ष रूप से मैनेजमेंट को 75 प्रतिषत दाखिलें अपनी मर्जी से देने का रास्ता खोल दिया है। अब अभिभावकगण पहले से भी अधिक परेषान होंगे। उन्हें स्कूलों की तानाषाही और अवैध धनवसूली का षिकार होना पड़ेगा। सरकार ने जनता को यह नहीं बताया है कि स्कूलों का प्रबंधतंत्र प्रवेष के लिए क्या प्रक्रिया अपनायेगा। प्रवेष के लिए लाॅटरी सिस्टम या प्रथम आगत प्रथम स्वागत का नियम सरकार बना सकती थी, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया। स्कूलों को मनमानी करने की पूरी छूट दे दी। पहले निजी स्कूलों में कन्याओं के प्रवेष के लिए प्राथमिकता दिये जाने का प्रावधान था, नये दाखिला प्रक्रिया में अब वह भी समाप्त कर दिया गया है।
उन्होंने बताया कि दिल्ली सरकार ने नर्सरी प्रवेष के लिए सभी मापदंड समाप्त कर दिये हैं। इस कारण स्कूलों के पड़ोस में रहने वाले बच्चों को भी अब नजदीकी स्कूलों में प्रवेष देने से स्कूलों का प्रबंधतंत्र मना कर सकता है। जबकि पहले प्रबंधतंत्र द्वारा पड़ोस में रहने वाले बच्चों को प्रवेष देने के लिए समान्यतः 60 अंक निर्धारित थे। इसी तरह सिबलिंग कोटे के तहत 25 अंक मिलता था। सरकार ने अब हर स्कूल को छूट दे दी है कि वह अपने यहां प्रवेष के लिए अपने मापदंड खुद तय करे। इससे भ्रश्टाचार का रास्ता खुल गया है। नजदीक रहने वाले और सिबलिंग कोटे के तहत कुल 85 अंक मिलते थे। अब यह नियम समाप्त कर दिया गया है, जबकि प्रवेष के लिए इस प्रक्रिया का निर्धारण उच्च न्यायालय के आदेषों के तहत किया गया था। इस प्रकार सरकार ने अदालत में जाने का रास्ता अभिभावकों के लिए खोल दिया है। अनेक अभिभावकगण स्कूलों पर अपने बच्चों का प्रवेष न मिल पाने के कारण अदालत की षरण लेंगे और मुकदमों की बाढ़ आ जायेगी। हाईकोर्ट का निर्णय बच्चों तथा अभिभावकों के हक में था, जिसे सरकार ने जानबूझकर समाप्त कर दिया है। अब मैनेजमेंट को अपने स्कूल में प्रवेष देने के लिए पड़ोस का कोटा और सिबलिंग कोटा समाप्त हो जाने से 85 प्रतिषत सीटें मनमाने ढंग से उन लोगों को बेचने का रास्ता पिछले दरवाजे से दिल्ली सरकार ने खोल दिया है ताकि वे अभिभावकों को खुलकर लूटें।
दिल्ली सरकार ने पहले कहा था कि स्कूलों में प्रवेष प्रक्रिया को पारदर्षी और भ्रश्टाचार से मुक्त करने के लिए उसने कानून में संषोधन कर दिया है। उसका यह वायदा पूरी तरह गलत साबित हुआ। सरकार ने प्रवेष के लिए सभी मापदंड समाप्त कर दिये हैं। जबकि यह मापदंड हाईकोर्ट द्वारा निर्धारित किये गये थे। यदि कोई अभिभावक कोर्ट में चला गया तो दिल्ली सरकार पर मापदंड समाप्त करने के लिए अदालत अवमानना का केस बनायेगी। इस प्रकार सारी दिल्ली में प्रवेष प्रक्रिया खटाई में पड़ जायेगी। इसका खामियाजा मासूम बच्चों और उनके अभिभावकों को भुगतना पड़ेगा।
सरकार स्वयं कहती है कि दिल्ली के अनेक निजी स्कूलों ने सरकार द्वारा निर्धारित प्रवेष प्रक्रिया के नियमों को न मानकर अपने मापदंड खुद तय कर लिये हैं। सरकार ने अभी तक किसी भी स्कूल के खिलाफ कोई भी कार्यवाही नहीं की है। इससे साबित हो जाता है कि स्कूलों का प्रबंधतंत्र और दिल्ली सरकार के बीच अंदरखाने कोई बड़ा सौदा हुआ है। इसलिए दिल्ली के 5,00,000 से अधिक अभिभावकों को स्कूलों के प्रबंधतंत्र की मनमानी पर सरकार ने छोड़ दिया है। स्कूलों में 25 प्रतिषत सीटें कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए अलग से आरक्षित है। स्कूल इस कोटे में प्रवेष देने में अपने मापदंड बनाकर गरीब बच्चों को प्रवेष नहीं दे रहे हैं।
Comments
Post a Comment