सरकार नहीं दे रही है निगमों को उनका ग्लोबल शेयर
दिल्ली सरकार की मनमानी से संवैधानिक संकट की स्थिति राश्ट्रपति तुरंत हस्तक्षेप करें -विजेन्द्र गुप्ता
उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार अपना संवैधानिक दायित्व निभाने में पूर्ण रूप से असफल हो गयी है । यह सरकार संविधान की धज्जियाँ उड़ा रही है । दिल्ली के उपराज्यपाल का आदेष मानने से इंकार कर रही है । राजधानी में संवैधानिक संकट की स्थिति उत्पन्न हो गयी है । सरकार और प्रषासन पूरी तरह से ठप पड़ा है । जनता त्राहि-त्राहि कर रही है । तीनों नगर निगमों के एक लाख से अधिक कर्मचारी हड़ताल पर चले गये हैं । राजधानी एक कूड़ा घर में तब्दील हो गयी है । ऐसी विकट स्थिति पहले कभी पैदा नहीं हुई । दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार राजनैतिक बदले की भावना से कार्य कर रही है । नगर निगमों को खस्ताहाल बनाने की नीयत से सरकार द्वारा संवैधानिक प्रावधानों के तहत उन्हें दी जाने वाली रकम जानबूझकर जारी नहीं की है ताकि ठीकरा केन्द्र सरकार पर फोड़ा जा सके ।
श्री गुप्ता ने कहा कि दिल्ली सरकार चैथे वित्त आयोग की रिपोर्ट लागू नहीं करना चाह रही थी। इसी कारण उसने रिपोर्ट को सदन पटल पर नहीं रखा था। भाजपा के दबाव में उसने यह रिपोर्ट सदन पटल पर रख तो दी लेकिन उसे आज तक लागू नहीं किया है। निगमों को तृतीय दिल्ली वित्त आयोग की सिफारिषों के अनुसार ही राषि वर्श 2016 में दी जा रही है । चतुर्थ वित्त आयोग की सिफारिषों के अनुसार निगमों को कुल राजस्व का 12 प्रतिषत हिस्सा दिल्ली सरकार को देना चाहिए । वह पैसा अभी तक दिया नहीं गया है । इससे निगमों के सामने जबरदस्त आर्थिक संकट पैदा हो गया है । लाखों विकलांगों को पैंषन नहीं मिल पा रही है । सफाई कर्मचारियों, डाक्टरों, नर्सों, पैरा मेडिकल स्टाफ, षिक्षकों आदि को वेतन नहीं मिल पा रहा है । इसकी जिम्मेदार दिल्ली सरकार है । मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री चाहते हैं कि तीनों नगर निगम या तो उनके हवाले कर दिये जायें या उन्हें भंग कर दिया जाए। सरकार की यह माँग और सोच पूरी तरह संविधान विरूद्ध है । ऐसी स्थिति में एकमात्र रास्ता यही षेश बचता है कि राश्ट्रपति महोदय स्वयं हस्तक्षेप करें और दिल्ली सरकार को संविधान के अनुसार कार्य करने का आदेष दें ।
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