केजरीवाल सरकार द्वारा महत्वपूर्ण बिलों को सदन में रखना जनता को गुमराह करने के लिए महज नाटक - विजेन्द्र गुप्ता
आज षीतकालीन सत्र के प्रारम्भ होने से पूर्व एक संवाददाता सम्मेलन को सम्बोधित करते हुये दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजेन्द्र गुप्ता तथा भाजपा विधायक श्री ओमप्रकाष षर्मा व श्री जगदीष प्रधान ने इस बात की कड़ी भत्र्सना करी कि विधान सभा में कई महत्वपूर्ण बिलों को पटल पर रखे जाने की औपचारिकता की जा रही है जो मात्र रस्म अदायगी ही है । उन्होंने कहा कि विधान सभा की बिजनेस एडवाईजरी कमेटी ( कार्य मंत्रणा समिति ) को भी इस मुद्दे की जानकारी दिये बिना इसे सीधे सदन में लाया जाना नियमों का उल्लंघन है । उन्होंने बताया कि वे आज विधान सभा में सरकार के इस कदम का पुरजोर विरोध करेंगे इसके साथ ही साथ वे उपराज्यपाल श्री नजीब जंग से षीघ्र ही मिलकर उनसे दिल्ली सरकार के इस असंवैेधानिक व अनधिकृत कार्यवाही के विरूद्ध कार्यवाही करने के लिये मांग करेंगे ।
श्री गुप्ता के नेतृत्व में भाजपा विधायकों ने कहा कि सरकार का यह कदम केवल नाटक ही है क्योंकि 6 में से 5 बिलों को नियमानुसार उप राज्यपाल से विधान सभा के पटल पर रखने से पूर्व स्वीकृति ही नहीं ली गई है । सरकार द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले ये सब बिल अमान्य एवं षून्य माने जायेंगे क्योंकि इनको प्रस्तुत करने की सक्षम अधिकारी की अनुमति ही नहीं है । इससे सरकारी मषीनरी का दुरूपयोग तो होगा ही इसके अतिरिक्त सम्बधित महत्वपूर्ण विशयों को क्रियान्वित करने में जो विलम्ब व परेषानी होगी वह अतिरिक्त है ।
विपक्ष के नेता ने कहा कि यदि ये बिल सदन द्वारा अनुमोदित कर उपराज्यपाल के पास भेजे जाते हैं तो उपराज्यपाल के समक्ष इन बिलों को रद्द करने का कोई चारा ही नहीं होगा । इन बिलों को सदन में जनता को गुमराह करने के लिये रखा जा रहा है । उन्होंने कहा कि छः मे से एकमात्र समयबद्ध सेवा अधिकार अधिनियम, 2011 ;त्पहीज व िब्पजप्रमदे जव ज्पउम .इवनदक क्मसपअमतल व िैमतअपबमे ।बज 2011द्ध को ही उपराज्यपाल की पूर्वानुमति प्राप्त है । जिसका श्रेय भी केजरीवाल सरकार को नहीं जाता । यह बिल तो पिछली सरकार ने ही उपराज्यपाल से ही नियमानुसार स्वीकृत करा लिया था ।
श्री गुप्ता ने संवाददाताओं को जानकारी दी कि सत्र के दौरान जो बिल उपराज्यपाल की पूर्वानुमति के बिना सदन के सम्मुख रखे जा रहे हैं वे अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और उनका व्यापक प्रभाव होने की सम्भावना रखते हंै परंतु केजरीवाल सरकार की संवैधानिक प्रक्रिया में आस्था न होने के चलते इन बिलों की टांय-टांय फिस्स हो जायेगी । ये बिल हैं दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी संषोधन विधेयक), दिल्ली स्कूल षिक्षा संषोधन विधेयक, वर्किंग जर्नलिस्ट उपबंध अधिनियम (संषोधन विधेयक), स्कूलों के अतिरिक्त षुल्क अधिनियम की वापसी, न्यूनतम मजदूरी संषोधन विधेयक ।
बिजनेस एडवाईजरी कमेटी ( कार्य मंत्रणा समिति ) के सदस्य श्री ओमप्रकाष षर्मा ने इस बात पर गहरा आक्रोष व्यक्त किया कि केजरीवाल सरकार ने कमेटी को मजाक बनाकर रख दिया है । समिति के समक्ष सरकार की तरफ से कोई एजेंडा प्रस्तुत नहीं किया गया था । केवल सदस्यों ने ही एजेंडा रखा था । अनुच्छेद 55, 280 तथा तारांकित और अतारांकित प्रष्नों पर चर्चा की गई । कथित पांच बिलों के बारे में कोई चर्चा नही की गई । पूछने पर कहा गया कि समिति के समक्ष कोई बिल नहीं भेजा गया है और अ
श्री षर्मा ने कहा कि कोई बिल एक सप्ताह से पूर्व एजेंडा में आना चाहिए और दो दिन पूर्व सभी विधायकों को जानकारी के लिए सर्कुलेट किया जाना चाहिऐ परंतु इस मामले ऐसा नहीं किया गया । जो सरकार की नियम कानूनों के प्रति घोर उपेक्षा दर्षाता है ।
श्री गुप्ता के नेतृत्व में भाजपा विधायकों ने कहा कि सरकार का यह कदम केवल नाटक ही है क्योंकि 6 में से 5 बिलों को नियमानुसार उप राज्यपाल से विधान सभा के पटल पर रखने से पूर्व स्वीकृति ही नहीं ली गई है । सरकार द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले ये सब बिल अमान्य एवं षून्य माने जायेंगे क्योंकि इनको प्रस्तुत करने की सक्षम अधिकारी की अनुमति ही नहीं है । इससे सरकारी मषीनरी का दुरूपयोग तो होगा ही इसके अतिरिक्त सम्बधित महत्वपूर्ण विशयों को क्रियान्वित करने में जो विलम्ब व परेषानी होगी वह अतिरिक्त है ।
विपक्ष के नेता ने कहा कि यदि ये बिल सदन द्वारा अनुमोदित कर उपराज्यपाल के पास भेजे जाते हैं तो उपराज्यपाल के समक्ष इन बिलों को रद्द करने का कोई चारा ही नहीं होगा । इन बिलों को सदन में जनता को गुमराह करने के लिये रखा जा रहा है । उन्होंने कहा कि छः मे से एकमात्र समयबद्ध सेवा अधिकार अधिनियम, 2011 ;त्पहीज व िब्पजप्रमदे जव ज्पउम .इवनदक क्मसपअमतल व िैमतअपबमे ।बज 2011द्ध को ही उपराज्यपाल की पूर्वानुमति प्राप्त है । जिसका श्रेय भी केजरीवाल सरकार को नहीं जाता । यह बिल तो पिछली सरकार ने ही उपराज्यपाल से ही नियमानुसार स्वीकृत करा लिया था ।
श्री गुप्ता ने संवाददाताओं को जानकारी दी कि सत्र के दौरान जो बिल उपराज्यपाल की पूर्वानुमति के बिना सदन के सम्मुख रखे जा रहे हैं वे अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और उनका व्यापक प्रभाव होने की सम्भावना रखते हंै परंतु केजरीवाल सरकार की संवैधानिक प्रक्रिया में आस्था न होने के चलते इन बिलों की टांय-टांय फिस्स हो जायेगी । ये बिल हैं दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी संषोधन विधेयक), दिल्ली स्कूल षिक्षा संषोधन विधेयक, वर्किंग जर्नलिस्ट उपबंध अधिनियम (संषोधन विधेयक), स्कूलों के अतिरिक्त षुल्क अधिनियम की वापसी, न्यूनतम मजदूरी संषोधन विधेयक ।
बिजनेस एडवाईजरी कमेटी ( कार्य मंत्रणा समिति ) के सदस्य श्री ओमप्रकाष षर्मा ने इस बात पर गहरा आक्रोष व्यक्त किया कि केजरीवाल सरकार ने कमेटी को मजाक बनाकर रख दिया है । समिति के समक्ष सरकार की तरफ से कोई एजेंडा प्रस्तुत नहीं किया गया था । केवल सदस्यों ने ही एजेंडा रखा था । अनुच्छेद 55, 280 तथा तारांकित और अतारांकित प्रष्नों पर चर्चा की गई । कथित पांच बिलों के बारे में कोई चर्चा नही की गई । पूछने पर कहा गया कि समिति के समक्ष कोई बिल नहीं भेजा गया है और अ
श्री षर्मा ने कहा कि कोई बिल एक सप्ताह से पूर्व एजेंडा में आना चाहिए और दो दिन पूर्व सभी विधायकों को जानकारी के लिए सर्कुलेट किया जाना चाहिऐ परंतु इस मामले ऐसा नहीं किया गया । जो सरकार की नियम कानूनों के प्रति घोर उपेक्षा दर्षाता है ।
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