दंड प्रक्रिया संहिता (दिल्ली संषोधन) बिल, 2015 के माध्यम से केजरीवाल सरकार दिल्ली पुलिस को अपने विधायी तथा कार्यकारी पक्ष के नियंत्रण में लाना चाहती है - विजेन्द्र गुप्ता
विपक्ष के नेता श्री विजेन्द्र गुप्ता ने आज कहा कि केजरीवाल सरकार द्वारा आज सदन में प्रस्तुत दंड प्रक्रिया संहिता (दिल्ली संषोधन) बिल, 2015 संविधान में निहित प्रक्रियाओं के विरूद्ध है । दिल्ली सरकार अधिनियम के अनुच्छेद 45 के अनुरूप इसे उपराज्यपाल की अनुमति के उपरांत ही सदन में लाया जाना चाहिए ।
श्री गुप्ता ने कहा कि दिल्ली विधानसभा के मामले में कोई भूमिका नहीं है । संविधान की धारा 239 ए ए के अंतर्गत यह दिल्ली सरकार के कार्यक्षेत्र से बाहर है । यदि संषोधित बिल में निहित अधिकार दिल्ली सरकार के मजिस्ट्रेटों को दिये जाते है तो उन्हंे पुलिस के विरूद्ध अनुषासनात्क कार्रवाई करने का अधिकार प्रदान करेगा । भारत की संसद ने स्पश्ट रूप से यह अधिकार किसी भी राज्य सरकार की समीक्षात्मक षक्ति से बाहर रखा है । दिल्ली सरकार ऐसे मामलों में दखल देने का प्रयास कर रही है, जिसके लिए उसके पास यह अधिकार ही नहीं है ।
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के अनुच्छेद 176 में कुछ षक्तियां मजिस्ट्रेटों को दी गयी हैं, यदि वे षक्तियां कार्यकारी पक्ष को दी जाएं तो यह संविधान में निहित षक्तियों को पृथक रखने की भावना के विरूद्ध होगा । धारा 176 के अंतर्गत कार्यकारी अधिकारियों को न्याय अधिकारियों को निर्देष जारी करने की षक्ति दी जायेगी । उन्होंने कहा कि इस अनुच्छेद के अंतर्गत कस्टडी में हुई मौत तथा दहेज में हुई मौत के मामले में मजिस्ट्रेट जांच कर सकती है । परन्तु प्रस्तावित संषोधन में दिल्ली सरकार को षक्ति दी जा रही है कि वह किसी भी मामले की जांच करवा सकती है । दिल्ली सरकार स्वयं यह षक्तियां अपने अधीन निहित नहीं कर सकती है । यह संसद द्वारा संविधान में निहित प्रावधानों के विरूद्ध होगा ।
विपक्ष के नेता ने कहा कि सरकार दिल्ली पुलिस को अपने नियंत्रण में लेना चाहती है । वह चाहती है कि उसके पास दिल्ली पुलिस के उपर अनुषासनात्क नियंत्रण की षक्ति हो तथा वह पुलिस के विरूद्ध जांच कर सके । दिल्ली सरकार संविधान के विरूद्ध पुलिस को अपने विधायी तथा कार्यकारी नियंत्रण में लाना चाहती है । विपक्ष इसका पुरजोर विरोध करता है ।
श्री गुप्ता ने कहा कि दिल्ली विधानसभा के मामले में कोई भूमिका नहीं है । संविधान की धारा 239 ए ए के अंतर्गत यह दिल्ली सरकार के कार्यक्षेत्र से बाहर है । यदि संषोधित बिल में निहित अधिकार दिल्ली सरकार के मजिस्ट्रेटों को दिये जाते है तो उन्हंे पुलिस के विरूद्ध अनुषासनात्क कार्रवाई करने का अधिकार प्रदान करेगा । भारत की संसद ने स्पश्ट रूप से यह अधिकार किसी भी राज्य सरकार की समीक्षात्मक षक्ति से बाहर रखा है । दिल्ली सरकार ऐसे मामलों में दखल देने का प्रयास कर रही है, जिसके लिए उसके पास यह अधिकार ही नहीं है ।
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के अनुच्छेद 176 में कुछ षक्तियां मजिस्ट्रेटों को दी गयी हैं, यदि वे षक्तियां कार्यकारी पक्ष को दी जाएं तो यह संविधान में निहित षक्तियों को पृथक रखने की भावना के विरूद्ध होगा । धारा 176 के अंतर्गत कार्यकारी अधिकारियों को न्याय अधिकारियों को निर्देष जारी करने की षक्ति दी जायेगी । उन्होंने कहा कि इस अनुच्छेद के अंतर्गत कस्टडी में हुई मौत तथा दहेज में हुई मौत के मामले में मजिस्ट्रेट जांच कर सकती है । परन्तु प्रस्तावित संषोधन में दिल्ली सरकार को षक्ति दी जा रही है कि वह किसी भी मामले की जांच करवा सकती है । दिल्ली सरकार स्वयं यह षक्तियां अपने अधीन निहित नहीं कर सकती है । यह संसद द्वारा संविधान में निहित प्रावधानों के विरूद्ध होगा ।
विपक्ष के नेता ने कहा कि सरकार दिल्ली पुलिस को अपने नियंत्रण में लेना चाहती है । वह चाहती है कि उसके पास दिल्ली पुलिस के उपर अनुषासनात्क नियंत्रण की षक्ति हो तथा वह पुलिस के विरूद्ध जांच कर सके । दिल्ली सरकार संविधान के विरूद्ध पुलिस को अपने विधायी तथा कार्यकारी नियंत्रण में लाना चाहती है । विपक्ष इसका पुरजोर विरोध करता है ।
Comments
Post a Comment