उपराज्यपाल पद की गरिमा धूमिल कर रही है केजरीवाल सरकार - विजेन्द्र गुप्ता
मुख्यमंत्री पहले अपनी सरकार के घोटालों की जाँच करायें - विजेन्द्र गुप्ता
नई दिल्ली, 01 नवम्बर । नेता प्रतिपक्ष श्री विजेन्द्र गुप्ता ने कहा है कि आम आदमी पार्टी की आस्था संविधान और संवैधानिक संस्थाओं में नहीं है, इसीलिए वह लगातार इनकी गरिमा को धूमिल करने का भरपूर प्रयास कर रही है । इसी कड़ी में सरकार के इषारे पर उसके नेताओं ने ओम प्रकाष चैटाला पैरोल मामले में उपराज्यपाल पर घटिया आरोप लगाकर उनकी तथा उनके पद की मर्यादा को तार-तार करने की कोषिष की है । दिल्ली के इतिहास में इसके पहले ऐसी कोई भी सरकार नहीं आई थी जो संविधान और संवैधानिक पदों की गरिमा धूमिल करने का कार्य किया हो । श्री गुप्ता ने मुख्यमंत्री से माँग की है कि पहले वे अपनी सरकार द्वारा किये गये घोटालों और भ्रश्टाचारों की निश्पक्ष जाँच करायें, उसके बाद ही किसी अन्य पर अंगुली उठाने का कार्य करें ।
दिल्ली सरकार और आम आदमी पार्टी पूरी तरह से दिग्भ्रमित हैं । जिस मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कल ही भ्रश्टाचार निरोधक षाखा प्रमुख एम. के. मीणा के खिलाफ जाँच के आदेष दिये हैं, उन्हीं के इषारे पर अब श्री मीणा से जाँच की माँग पार्टी के नेताओं ने की है । क्या इससे यह समझा जाए कि मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और उनकी सरकार ने एम. के. मीणा को अब ए.सी.बी. प्रमुख मान लिया है । दिल्ली सरकार का यह कदम स्वयं बताता है कि मुख्यमंत्री और उनकी सरकार कितने अनुभवहीन और बचकाने व्यवहार कर रहे हैं । क्या इन लोगों के हाथों में दिल्ली की जनता के हित सुरक्षित रह सकते हैं ।
श्री गुप्ता ने कहा कि भारतीय संविधान में राश्ट्रपति, उपराश्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय, चुनाव आयोग, राज्यों के राज्यपाल, केन्द्रषासित राज्यों के उपराज्यपाल, दिल्ली के उपराज्यपाल का पद और दायित्व संविधान में लिपिबद्ध हैं । इन सबको विवेकाधीन अधिकार प्राप्त हैं, जिनको देष का कोई भी व्यक्ति चुनौती नहीं दे सकता है । दिल्ली सरकार तथा आम आदमी पार्टी के नेताओं ने उपराज्यपाल नजीब जंग पर ओम प्रकाष चैटाला के पैरोल के मामले में भ्रश्टाचार करने का जो आरोप लगाया है, वह प्रथम दृश्टया ही गलत साबित हो जाता है । यह मामला भ्रश्टाचार की परिभाशा के तहत उसकी श्रेणी में ही नहीं आता है । भ्रश्टाचार तब कहा जाता है जब कोई व्यक्ति अपने पद का दुरुपयोग करके स्वयं या अन्य को आर्थिक या किसी अन्य प्रकार से लाभ पहुँचाता है । यदि चैटाला को पैरोल मिल भी जाती है तो इसमें उपराज्यपाल को कौन सा लाभ मिला, यह सबसे बड़ा सवाल है । इसका जवाब दिल्ली की जनता मुख्यमंत्री से जानना चाहती है।
दिल्ली सरकार जबसे सत्ता में आयी है, वह हर रोज स्टंट करती है, ताकि जनता को गुमराह किया जा सके । इस सरकार ने भ्रश्टाचार के आरोप में अपने दो मंत्रियों को बर्खास्त किया । चार मंत्रियों के विभाग बदले । एक बर्खास्त मंत्री के स्थान पर जो नया मंत्री बनाया, उसपर भी भ्रश्टाचार के गंभीर आरोप हैं । मुख्यमंत्री की सहमति से दिल्ली सरकार ने प्याज खरीद घोटाला, दाल खरीद घोटाला, चीनी खरीद घोटाला, जल वेंडिग मषीन कार्य आवंटन घोटाला और विज्ञापन घोटाला आदि दर्जनों घोटाले किये गये हैं । दिल्ली में पहली बार 21 संसदीय सचिव बनाकर उनपर करोड़ों रुपया सरकार फूँक रही है । सरकार ने अपनी पार्टी के हजारों कार्यकत्र्ताओं को संविदा के आधार पर सरकारी नौकरियाँ दी है । अब संविदा के आधार पर नियुक्त लोगों को नियमित करने की कार्यवाही की जा रही है । क्या यह भ्रश्टाचार नहीं है । ऐसा करके दिल्ली सरकार हजारों बेरोजगार नवयुवकों के रोजगार हक छीन रही है । क्या यह पद और मंत्रीपद की षपथ की अवमानना नहीं है ।
दिल्ली सरकार और आम आदमी पार्टी पूरी तरह से दिग्भ्रमित हैं । जिस मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कल ही भ्रश्टाचार निरोधक षाखा प्रमुख एम. के. मीणा के खिलाफ जाँच के आदेष दिये हैं, उन्हीं के इषारे पर अब श्री मीणा से जाँच की माँग पार्टी के नेताओं ने की है । क्या इससे यह समझा जाए कि मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और उनकी सरकार ने एम. के. मीणा को अब ए.सी.बी. प्रमुख मान लिया है । दिल्ली सरकार का यह कदम स्वयं बताता है कि मुख्यमंत्री और उनकी सरकार कितने अनुभवहीन और बचकाने व्यवहार कर रहे हैं । क्या इन लोगों के हाथों में दिल्ली की जनता के हित सुरक्षित रह सकते हैं ।
श्री गुप्ता ने कहा कि भारतीय संविधान में राश्ट्रपति, उपराश्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय, चुनाव आयोग, राज्यों के राज्यपाल, केन्द्रषासित राज्यों के उपराज्यपाल, दिल्ली के उपराज्यपाल का पद और दायित्व संविधान में लिपिबद्ध हैं । इन सबको विवेकाधीन अधिकार प्राप्त हैं, जिनको देष का कोई भी व्यक्ति चुनौती नहीं दे सकता है । दिल्ली सरकार तथा आम आदमी पार्टी के नेताओं ने उपराज्यपाल नजीब जंग पर ओम प्रकाष चैटाला के पैरोल के मामले में भ्रश्टाचार करने का जो आरोप लगाया है, वह प्रथम दृश्टया ही गलत साबित हो जाता है । यह मामला भ्रश्टाचार की परिभाशा के तहत उसकी श्रेणी में ही नहीं आता है । भ्रश्टाचार तब कहा जाता है जब कोई व्यक्ति अपने पद का दुरुपयोग करके स्वयं या अन्य को आर्थिक या किसी अन्य प्रकार से लाभ पहुँचाता है । यदि चैटाला को पैरोल मिल भी जाती है तो इसमें उपराज्यपाल को कौन सा लाभ मिला, यह सबसे बड़ा सवाल है । इसका जवाब दिल्ली की जनता मुख्यमंत्री से जानना चाहती है।
दिल्ली सरकार जबसे सत्ता में आयी है, वह हर रोज स्टंट करती है, ताकि जनता को गुमराह किया जा सके । इस सरकार ने भ्रश्टाचार के आरोप में अपने दो मंत्रियों को बर्खास्त किया । चार मंत्रियों के विभाग बदले । एक बर्खास्त मंत्री के स्थान पर जो नया मंत्री बनाया, उसपर भी भ्रश्टाचार के गंभीर आरोप हैं । मुख्यमंत्री की सहमति से दिल्ली सरकार ने प्याज खरीद घोटाला, दाल खरीद घोटाला, चीनी खरीद घोटाला, जल वेंडिग मषीन कार्य आवंटन घोटाला और विज्ञापन घोटाला आदि दर्जनों घोटाले किये गये हैं । दिल्ली में पहली बार 21 संसदीय सचिव बनाकर उनपर करोड़ों रुपया सरकार फूँक रही है । सरकार ने अपनी पार्टी के हजारों कार्यकत्र्ताओं को संविदा के आधार पर सरकारी नौकरियाँ दी है । अब संविदा के आधार पर नियुक्त लोगों को नियमित करने की कार्यवाही की जा रही है । क्या यह भ्रश्टाचार नहीं है । ऐसा करके दिल्ली सरकार हजारों बेरोजगार नवयुवकों के रोजगार हक छीन रही है । क्या यह पद और मंत्रीपद की षपथ की अवमानना नहीं है ।
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