दिल्ली सरकार अनधिकृत कालोनियों में बिजली पहुंचाने के लिये भूमि तथा फण्ड उपलब्ध कराने में बुरी तरह नाकाम
सरकार की बेरूखी से लाखों निवासी परेशानी में तथा बिजली कम्पनियाॅं असहाय -विजेन्द्र गुप्ता
नयी दिल्ली, 14 अक्तूूबर। नेता प्रतिपक्ष श्री विजेन्द्र गुप्ता ने आरोप लगाया कि दिल्ली सरकार अनधिकृत कालोनियों में विद्युतिकरण के लिये ग्रिड स्टेशनों तथा सब स्टेशनों के निर्माण के लिये भूमि तथा फण्ड उपलब्ध कराने में पूरी तरह असफल रही है इसके कारण इन कालोनियों में रहने वाले लाखों लोग भारी परेशानी का सामना कर रहे हैं । इसके साथ ही साथ बिजली वितरण कम्पनियों के समक्ष इन कालोनियों में बिजली उपलब्ध कराने में भारी कठिनाई आ रही है, सरकार की नाकामी की वजह से बिजली कम्पनियाॅं अपने आपको असहाय महसूस कर रही हैं ।
श्री गुप्ता के अनुसार कम्पनियों का कहना है कि फण्ड तथा भूमि उपलब्ध न होने के कारण अनधिकृत कालोनियों के आसपास के क्षेत्र में विद्युत प्रणाली पर भारी दबाव पड़ गया है । इन कालोनियेां में नया कनेक्शन उपलब्ध कराना तथा बिजली सप्लाई की विश्वसनीयता पर सदैव खतरा मंडराता रहता है । परंतु सरकार ने अभी तक इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाकर संकट को दूर करने की चेष्टा नहीं करी है ।
विपक्ष के नेता ने जानकारी दी कि दिल्ली की अनधिकृत काॅलोनियों, लाल डोरा क्षेत्र, लाल डोरा से बाहर का विस्तारित क्षेत्र, जे.जे. क्लस्टर्स आदि के कुछ भागों में जो बिजली वितरण कंपनियां उपलब्ध कराती हैं, उसके ढांचे के निर्माण का सारा व्यय बिजली कंपनियां अपने वार्षिक राजस्व लेखे में दिखाती थीं । इसका सीधा मतलब यह है कि दिल्ली के आम उपभोक्ता को ऊपरवर्णित क्षेत्रों में बिजली उपलब्ध कराने का खर्च बिजली कंपनियां बिजली बिल में जोड़कर दिखाती थीं । इस प्रकार आम आदमी पर इस खर्च का भार आता था ।
श्री गुप्ता ने बताया कि डी.ई.आर.सी. ने अपने पत्र दिनांक 29 अगस्त, 2013 द्वारा सभी बिजली वितरण कंपनियों से कहा कि वे अनधिकृत काॅलोनियों में बिजली पहुँचाने के लिए ढांचागत सुविधा देने का आर्थिक भार दिल्ली के आम बिजली उपभोक्ता पर बिजली बिल के माध्यम से नहीं डाल सकती हैं । यह खर्च सरकार और बिजली वितरण कंपनियों को ही उठाना होगा । बिजली कंपनियों ने दिल्ली सरकार को बार-बार पत्र लिखकर गैर विद्युतीकृत क्षेत्रों में विद्युतीकरण के लिए डी.ई.आर.सी. द्वारा तय की गयी धनराशि मांगी । सरकार ने अपने कानों में तेल डाल लिया और कंपनियों को पैसा नहीं दिया । तभी से इन क्षेत्रों में विद्युतीकरण का कार्य ठप पड़ा है ।
श्री गुप्ता ने बताया कि अनधिकृत काॅलोनियों का कोई अधिकृत डेवलपर न होने के कारण इनका मानकों के अनुरूप विकास नहीं हुआ है । बिजली कंपनियों का कहना है कि उन्हें इन क्षेत्रों में बिजली पहुँचाने के लिए बड़े पैमाने पर ग्रिड स्टेशन, वितरण सब-स्टेशन बनाने के लिए भूमि की आवश्यकता है । 66 किलोवाट का एक ग्रिड-स्टेशन बनाने के लिए 100 मीटर लम्बी और 80 मीटर चैड़ी भूमि की न्यूनतम आवश्यकता है । इसी प्रकार एक विद्युत वितरण सब-स्टेशन बनाने के लिए न्यूनतम 10 मीटर लम्बी और 8 मीटर चैड़ी जगह की जरूरत है । यह भूमि भी सरकार या सरकारी विभागों को जुटानी है । इस मामले में भी दिल्ली सरकार फिसड्डी साबित हुई है । आम आदमी पार्टी ने चुनावों के समय सभी अनधिकृत काॅलोनियों, जे. जे. कलस्टर्स तथा लाल डोरा क्षेत्रों से बाहर बसे पाॅकेट्स में घूम-घूम कर घोषणा की थी कि सरकार बनने के बाद बिजली, पानी, सीवर, विद्यालय, अस्पताल, सामुदायिक केन्द्र, मनोरंजन केन्द्र, पार्क, महिला सशक्तिकरण केन्द्र, पुलिस स्टेशन, सार्वजनिक परिवहन, आश्रय केन्द्र, लाइब्रेरी, स्वरोजगार केन्द्र सभी क्षेत्रों में उपलब्ध करायेंगे । अन्य सुविधायें देना तो दूर रहा यहाँ तो लाखों लोग बिजली के कनेक्शन के इंतजार में नारकीय जीवन जी रहे हैं ।
उन्होंने बताया कि दिल्ली में अनधिकृत काॅलोनियों को बिजली देने का फैसला दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग ने वर्ष 2013 में ही कर लिया था । यह निर्णय मुख्य सचिव, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली सरकार, ऊर्जा सचिव, शहरी विकास सचिव, दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग सचिव आदि की बैठक के बाद लिया गया था । बैठक में तय हुआ था कि सरकार अनधिकृत काॅलोनियों में चरणबद्ध तरीके से बिजली का ढांचा खड़ा करके सभी घरों को बिजली से जगमगायेगी । इसके लिए प्रथम चरण में 11 गैर विद्युतीकृ त क्षेत्रों में टाटा पाॅवर द्वारा बिजली पहुँचाने का फैसला किया गया था ।
श्री गुप्ता ने बताया कि इसके लिए विशेषज्ञों द्वारा कुल लगभग 772 करोड़ रुपये के खर्च का आकलन किया गया था । इस राशि में से 574 करोड़ रुपये दिल्ली सरकार को देने थे, शेष 198 करोड़ रुपये टाटा पाॅवर को खर्च करने थे । दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग ने 11 क्षेत्रों में बिजली पहुँचाने के लिए 29 अगस्त, 2013 को टाटा पाॅवर को पत्र लिखा था । डी.ई.आर.सी. ने इन क्षेत्रों में इस तिथि से पहले ही बिजली देने के लिए योजना बनाई थी । इसके लिए उसने विस्तार से प्रोजेक्ट दिल्ली सरकार को भेजा था । इसके लिए डी.ई.आर.सी. ने गैर विद्युतीकृत क्षेत्रों में बिजली पहुँचाने के लिए पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार और मौजूदा आम आदमी पार्टी की सरकार को 10 मई, 2011 से लेकर 12 जून, 2012 तथा वर्ष 2013, 2014 और 2015 में लगातार पत्र भेजे । किसी भी सरकार ने आम आदमी को बिजली देने के बारे में जरा भी नहीं सोचा और आज तक ये इलाके अंधेरे में डूबे हुए हैं ।
श्री गुप्ता ने मांग करी कि दिल्ली सरकार डिस्काम्स को तुरंत ही भूमि तथा अपने हिस्से की राशि उपलब्ध कराये ताकि अनधिकृत कालोनियों में बिजली पहंुचाने के काम को सुचारू रूप से किया जा सके ।
नयी दिल्ली, 14 अक्तूूबर। नेता प्रतिपक्ष श्री विजेन्द्र गुप्ता ने आरोप लगाया कि दिल्ली सरकार अनधिकृत कालोनियों में विद्युतिकरण के लिये ग्रिड स्टेशनों तथा सब स्टेशनों के निर्माण के लिये भूमि तथा फण्ड उपलब्ध कराने में पूरी तरह असफल रही है इसके कारण इन कालोनियों में रहने वाले लाखों लोग भारी परेशानी का सामना कर रहे हैं । इसके साथ ही साथ बिजली वितरण कम्पनियों के समक्ष इन कालोनियों में बिजली उपलब्ध कराने में भारी कठिनाई आ रही है, सरकार की नाकामी की वजह से बिजली कम्पनियाॅं अपने आपको असहाय महसूस कर रही हैं ।
श्री गुप्ता के अनुसार कम्पनियों का कहना है कि फण्ड तथा भूमि उपलब्ध न होने के कारण अनधिकृत कालोनियों के आसपास के क्षेत्र में विद्युत प्रणाली पर भारी दबाव पड़ गया है । इन कालोनियेां में नया कनेक्शन उपलब्ध कराना तथा बिजली सप्लाई की विश्वसनीयता पर सदैव खतरा मंडराता रहता है । परंतु सरकार ने अभी तक इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाकर संकट को दूर करने की चेष्टा नहीं करी है ।
विपक्ष के नेता ने जानकारी दी कि दिल्ली की अनधिकृत काॅलोनियों, लाल डोरा क्षेत्र, लाल डोरा से बाहर का विस्तारित क्षेत्र, जे.जे. क्लस्टर्स आदि के कुछ भागों में जो बिजली वितरण कंपनियां उपलब्ध कराती हैं, उसके ढांचे के निर्माण का सारा व्यय बिजली कंपनियां अपने वार्षिक राजस्व लेखे में दिखाती थीं । इसका सीधा मतलब यह है कि दिल्ली के आम उपभोक्ता को ऊपरवर्णित क्षेत्रों में बिजली उपलब्ध कराने का खर्च बिजली कंपनियां बिजली बिल में जोड़कर दिखाती थीं । इस प्रकार आम आदमी पर इस खर्च का भार आता था ।
श्री गुप्ता ने बताया कि डी.ई.आर.सी. ने अपने पत्र दिनांक 29 अगस्त, 2013 द्वारा सभी बिजली वितरण कंपनियों से कहा कि वे अनधिकृत काॅलोनियों में बिजली पहुँचाने के लिए ढांचागत सुविधा देने का आर्थिक भार दिल्ली के आम बिजली उपभोक्ता पर बिजली बिल के माध्यम से नहीं डाल सकती हैं । यह खर्च सरकार और बिजली वितरण कंपनियों को ही उठाना होगा । बिजली कंपनियों ने दिल्ली सरकार को बार-बार पत्र लिखकर गैर विद्युतीकृत क्षेत्रों में विद्युतीकरण के लिए डी.ई.आर.सी. द्वारा तय की गयी धनराशि मांगी । सरकार ने अपने कानों में तेल डाल लिया और कंपनियों को पैसा नहीं दिया । तभी से इन क्षेत्रों में विद्युतीकरण का कार्य ठप पड़ा है ।
श्री गुप्ता ने बताया कि अनधिकृत काॅलोनियों का कोई अधिकृत डेवलपर न होने के कारण इनका मानकों के अनुरूप विकास नहीं हुआ है । बिजली कंपनियों का कहना है कि उन्हें इन क्षेत्रों में बिजली पहुँचाने के लिए बड़े पैमाने पर ग्रिड स्टेशन, वितरण सब-स्टेशन बनाने के लिए भूमि की आवश्यकता है । 66 किलोवाट का एक ग्रिड-स्टेशन बनाने के लिए 100 मीटर लम्बी और 80 मीटर चैड़ी भूमि की न्यूनतम आवश्यकता है । इसी प्रकार एक विद्युत वितरण सब-स्टेशन बनाने के लिए न्यूनतम 10 मीटर लम्बी और 8 मीटर चैड़ी जगह की जरूरत है । यह भूमि भी सरकार या सरकारी विभागों को जुटानी है । इस मामले में भी दिल्ली सरकार फिसड्डी साबित हुई है । आम आदमी पार्टी ने चुनावों के समय सभी अनधिकृत काॅलोनियों, जे. जे. कलस्टर्स तथा लाल डोरा क्षेत्रों से बाहर बसे पाॅकेट्स में घूम-घूम कर घोषणा की थी कि सरकार बनने के बाद बिजली, पानी, सीवर, विद्यालय, अस्पताल, सामुदायिक केन्द्र, मनोरंजन केन्द्र, पार्क, महिला सशक्तिकरण केन्द्र, पुलिस स्टेशन, सार्वजनिक परिवहन, आश्रय केन्द्र, लाइब्रेरी, स्वरोजगार केन्द्र सभी क्षेत्रों में उपलब्ध करायेंगे । अन्य सुविधायें देना तो दूर रहा यहाँ तो लाखों लोग बिजली के कनेक्शन के इंतजार में नारकीय जीवन जी रहे हैं ।
उन्होंने बताया कि दिल्ली में अनधिकृत काॅलोनियों को बिजली देने का फैसला दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग ने वर्ष 2013 में ही कर लिया था । यह निर्णय मुख्य सचिव, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली सरकार, ऊर्जा सचिव, शहरी विकास सचिव, दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग सचिव आदि की बैठक के बाद लिया गया था । बैठक में तय हुआ था कि सरकार अनधिकृत काॅलोनियों में चरणबद्ध तरीके से बिजली का ढांचा खड़ा करके सभी घरों को बिजली से जगमगायेगी । इसके लिए प्रथम चरण में 11 गैर विद्युतीकृ त क्षेत्रों में टाटा पाॅवर द्वारा बिजली पहुँचाने का फैसला किया गया था ।
श्री गुप्ता ने बताया कि इसके लिए विशेषज्ञों द्वारा कुल लगभग 772 करोड़ रुपये के खर्च का आकलन किया गया था । इस राशि में से 574 करोड़ रुपये दिल्ली सरकार को देने थे, शेष 198 करोड़ रुपये टाटा पाॅवर को खर्च करने थे । दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग ने 11 क्षेत्रों में बिजली पहुँचाने के लिए 29 अगस्त, 2013 को टाटा पाॅवर को पत्र लिखा था । डी.ई.आर.सी. ने इन क्षेत्रों में इस तिथि से पहले ही बिजली देने के लिए योजना बनाई थी । इसके लिए उसने विस्तार से प्रोजेक्ट दिल्ली सरकार को भेजा था । इसके लिए डी.ई.आर.सी. ने गैर विद्युतीकृत क्षेत्रों में बिजली पहुँचाने के लिए पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार और मौजूदा आम आदमी पार्टी की सरकार को 10 मई, 2011 से लेकर 12 जून, 2012 तथा वर्ष 2013, 2014 और 2015 में लगातार पत्र भेजे । किसी भी सरकार ने आम आदमी को बिजली देने के बारे में जरा भी नहीं सोचा और आज तक ये इलाके अंधेरे में डूबे हुए हैं ।
श्री गुप्ता ने मांग करी कि दिल्ली सरकार डिस्काम्स को तुरंत ही भूमि तथा अपने हिस्से की राशि उपलब्ध कराये ताकि अनधिकृत कालोनियों में बिजली पहंुचाने के काम को सुचारू रूप से किया जा सके ।
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