बदले की भावना के कारण निगमों का 4400 करोड़ रुपया नहीं दे रही सरकार - विजेन्द्र गुप्ता
चतुर्थ वित्त आयोग लागू करने की मांग को लेकर आगामी सत्र में सरकार पर धावा बोलेगी भाजपा -विजेन्द्र गुप्ता
नई दिल्ली, 27 अक्तूबर । नेता प्रतिपक्ष श्री विजेन्द्र गुप्ता ने कहा है कि दिल्ली सरकार तीनों नगर निगमों के साथ बदले की भावना से कार्य कर रही है । सरकार नहीं चाहती कि निगम आर्थिक रूप से मजबूत होकर दिल्लीवासियों की सेवा करें । इसीलिए मुख्यमंत्री ने कहा है कि वे दिल्ली चतुर्थ वित्त आयोग की रिपोर्ट को आगामी सत्र में सदन पटल पर तो रखेगी, लेकिन उसे लागू नहीं करेगी । श्री गुप्ता ने कड़े षब्दों में सरकार को चेतावनी देते हुए कहा है कि भाजपा चतुर्थ दिल्ली वित्त आयोग की सिफारिषें तुरंत लागू करने के लिए विधानसभा के 18 नवम्बर से जारी होने वाले सत्र में सरकार पर धावा बोलेगी ।
उन्होंने कहा कि तीनों नगर निगम दिल्ली सरकार की उपेक्षा के कारण जबरदस्त आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं । सरकार पर तीनों नगर निगमों का 4400 करोड़ रुपये बकाया है । इसमें से 1000 करोड़ रुपये पूर्वी दिल्ली नगर निगम, 1600 करोड़ रुपये दक्षिणी दिल्ली नगर निगम और 1800 करोड़ रुपये उत्तरी दिल्ली नगर निगम को दिल्ली सरकार द्वारा तुरंत दिया जाना चाहिए । सरकार इस रकम को जान-बूझकर नहीं दे रही है, ताकि तीनों नगर निगम दिल्लीवासियों को निगम प्रदत्त सुविधायें न दे सकें और दिल्ली सरकार इसका ठीकरा नगर निगमों पर फोड़कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक सके ।
राजधानी में जबसे आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है, तीनों नगर निगमों को लगातार प्रयास करके आर्थिक रूप से विकलांग बनाया जा रहा है । इसके बाद भी दिल्ली के तीनों नगर निगम बगैर जनता पर बोझ डाले अपनी आय बढ़ाकर आम आदमी को वह सब सुविधायें देने का प्रयास कर रहे हैं, जिसकी कि वह हकदार है । दिल्ली सरकार द्वारा निगमों को उनका ग्लोबल षेयर का पैसा न दिये जाने के कारण सफाई कर्मचारियों ने हड़ताल पर जाने का फैसला किया था । मुख्यमंत्री ने बाँटो और राज करो की नीति अपनाकर एक गुट को आष्वासन देकर हड़ताल समाप्त कराने का ढिंढोरा पीटा, लेकिन त्योहारों के सीजन में आज भी दिल्ली में सफाई कर्मचारियों की हड़ताल चल रही है । इससे दिल्लीवासियों के रंग में भंग सरकार जान-बूझकर डाल रही है ।
श्री गुप्ता ने कहा कि संविधान में संषोधन करके स्थानीय स्वषासन को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए ही राज्यों द्वारा वित्त आयोगों का गठन एक संवैधानिक दायित्व बनाया गया था । भाजपा षासित राज्य तो इनका पालन करके अपने यहाँ के नगर निगमों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन देष के जिन राज्यों में गैर भाजपा की सरकारें हैं और वहाँ की नगर परिशदों, नगर पालिकाओं, नगर निगमों में भाजपा जीती है, वहाँ राज्य सरकारें स्थानीय स्वषासित संस्थाओं को वित्तीय रूप से कमजोर करके उनको कार्य नहीं करने दे रही हैं । यही हाल दिल्ली में भी है ।
उन्होंने कहा कि तीनों नगर निगम दिल्ली सरकार की उपेक्षा के कारण जबरदस्त आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं । सरकार पर तीनों नगर निगमों का 4400 करोड़ रुपये बकाया है । इसमें से 1000 करोड़ रुपये पूर्वी दिल्ली नगर निगम, 1600 करोड़ रुपये दक्षिणी दिल्ली नगर निगम और 1800 करोड़ रुपये उत्तरी दिल्ली नगर निगम को दिल्ली सरकार द्वारा तुरंत दिया जाना चाहिए । सरकार इस रकम को जान-बूझकर नहीं दे रही है, ताकि तीनों नगर निगम दिल्लीवासियों को निगम प्रदत्त सुविधायें न दे सकें और दिल्ली सरकार इसका ठीकरा नगर निगमों पर फोड़कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक सके ।
राजधानी में जबसे आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है, तीनों नगर निगमों को लगातार प्रयास करके आर्थिक रूप से विकलांग बनाया जा रहा है । इसके बाद भी दिल्ली के तीनों नगर निगम बगैर जनता पर बोझ डाले अपनी आय बढ़ाकर आम आदमी को वह सब सुविधायें देने का प्रयास कर रहे हैं, जिसकी कि वह हकदार है । दिल्ली सरकार द्वारा निगमों को उनका ग्लोबल षेयर का पैसा न दिये जाने के कारण सफाई कर्मचारियों ने हड़ताल पर जाने का फैसला किया था । मुख्यमंत्री ने बाँटो और राज करो की नीति अपनाकर एक गुट को आष्वासन देकर हड़ताल समाप्त कराने का ढिंढोरा पीटा, लेकिन त्योहारों के सीजन में आज भी दिल्ली में सफाई कर्मचारियों की हड़ताल चल रही है । इससे दिल्लीवासियों के रंग में भंग सरकार जान-बूझकर डाल रही है ।
श्री गुप्ता ने कहा कि संविधान में संषोधन करके स्थानीय स्वषासन को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए ही राज्यों द्वारा वित्त आयोगों का गठन एक संवैधानिक दायित्व बनाया गया था । भाजपा षासित राज्य तो इनका पालन करके अपने यहाँ के नगर निगमों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन देष के जिन राज्यों में गैर भाजपा की सरकारें हैं और वहाँ की नगर परिशदों, नगर पालिकाओं, नगर निगमों में भाजपा जीती है, वहाँ राज्य सरकारें स्थानीय स्वषासित संस्थाओं को वित्तीय रूप से कमजोर करके उनको कार्य नहीं करने दे रही हैं । यही हाल दिल्ली में भी है ।
Comments
Post a Comment