दिल्ली सरकार बिना किसी षर्त के चैथे वित्त आयोग की सिफारिषों को अविलम्ब लागू करे -विजेन्द्र गुप्ता
विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता श्री विजेन्द्र गुप्ता ने आज दिल्ली सरकार के उस निर्णय को जनता के साथ गंभीर विष्वासघात तथा संविधान की मर्यादा के विरूद्ध करार दिया है, जिसमें उसने कहा है कि वह चैथे दिल्ली वित्त आयोग की सिफारिषों को तभी लागू करेगी, जब भारत सरकार अपने हिस्से की सिफारिषों को लागू कर देगी । सरकार की यह षर्त अत्यंत अन्यायपूर्ण तथा धूर्ततापूर्ण है ।
श्री गुप्ता ने कहा कि उन्हें चैथे दिल्ली वित्त आयोग की सिफारिषों को लागू करवाने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा । अब जब निर्णय की घड़ी आ गई है, तब दिल्ली सरकार ने न्यायालय के भय से आयोग की सिफारिषों को सदन में रखने की औपचारिकता निभाई है । परन्तु उसकी मंषा इसे लागू करने की बिल्कुल नहीं है । उसने इसे लागू न करने का रास्ता ढूॅंढा है । इसके साथ ही साथ उसने भारत के संविधान की धारा 243-।, दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 (संषोधित-1995) तथा दिल्ली सरकार के संबंधित नियमों का स्पश्ट उल्लंघन किया है । इन तीनों महत्वपूर्ण वैधानिक दस्तावेजों में दिल्ली सरकार के लिए कोई ऐसी बाध्यता नहीं है कि वे केन्द्र सरकार की स्वीकृति की षर्त लगाये । यदि सरकार वास्तव में दिल्लीवासियों का हित चाहती है तो इसे बिना किसी षर्त के लागू कर सकती थी ।
श्री गुप्ता ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी की यह पुरजोर मांग है कि दिल्ली सरकार बिना किसी षर्त के चैथे दिल्ली वित्त आयोग की सिफारिषों को अविलम्ब लागू करे और दिल्ली नगर निगमों को इसकी सिफारिषों के अनुरूप उनके वित्तीय अधिकार का सम्मान करते हुए देय फंड जारी करे । उन्होंने कहा कि यदि दिल्ली सरकार ऐसा नहीं करती है तो वह पुनः उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटायेंगे और उसे संविधान तथा नियमों के उल्लंघन को ध्यान में रखते हुए इस निर्णय को रद्द करने के लिए याचिका दायर करेंगे ।
केजरीवाल सरकार द्वारा चैथे दिल्ली वित्त आयोग की सिफारिषों को लागू करने करने के लिए जो षर्त रख रही है, वह दिल्ली की 2 करोड़ जनता के साथ धोखा है । यह वस्तुतः उनके हितों की हत्या है । केजरीवाल सरकार का यह कहना कि भारत सरकार जब तक अपने हिस्से की सिफारिषों को लागू नहीं करती है तब तक उसे अपने हिस्से की सिफारिषों को लागू करना बिल्कुल ही मुष्किल है, सरकार की धूर्तता व दूशित मंषा को दर्षाता है ।
नेता प्रतिपक्ष ने आरोप लगाया कि चूँकि तीनों दिल्ली नगर निगमों में भारतीय जनता पार्टी का षासन है, अतः केजरीवाल सरकार ने राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित होकर यह जनविरोधी व संविधानविरोधी निर्णय लिया है । अब जब केन्द्र सरकार सातवें वेतन आयोग की सिफारिषों पर विचार कर उन्हें लागू करने जा रही है, तब नगर निगमों के ऊपर जो वित्तभार आयेगा, दिल्ली सरकार ने उसकी भी कतई परवाह नहीं की । दिल्ली सरकार को तो नगर निगमों को इस अतिरिक्त भार को वहन करने के लिए चैथे दिल्ली वित्त आयोग की सिफारिषों को अविलम्ब लागू कर देना चाहिए था, परन्तु इसके बिल्कुल ठीक विपरीत आचरण करते हुए उसने इसे लागू न करने का रास्ता ढूँढ लिया है ।
श्री गुप्ता ने कहा कि उन्हें चैथे दिल्ली वित्त आयोग की सिफारिषों को लागू करवाने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा । अब जब निर्णय की घड़ी आ गई है, तब दिल्ली सरकार ने न्यायालय के भय से आयोग की सिफारिषों को सदन में रखने की औपचारिकता निभाई है । परन्तु उसकी मंषा इसे लागू करने की बिल्कुल नहीं है । उसने इसे लागू न करने का रास्ता ढूॅंढा है । इसके साथ ही साथ उसने भारत के संविधान की धारा 243-।, दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 (संषोधित-1995) तथा दिल्ली सरकार के संबंधित नियमों का स्पश्ट उल्लंघन किया है । इन तीनों महत्वपूर्ण वैधानिक दस्तावेजों में दिल्ली सरकार के लिए कोई ऐसी बाध्यता नहीं है कि वे केन्द्र सरकार की स्वीकृति की षर्त लगाये । यदि सरकार वास्तव में दिल्लीवासियों का हित चाहती है तो इसे बिना किसी षर्त के लागू कर सकती थी ।
श्री गुप्ता ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी की यह पुरजोर मांग है कि दिल्ली सरकार बिना किसी षर्त के चैथे दिल्ली वित्त आयोग की सिफारिषों को अविलम्ब लागू करे और दिल्ली नगर निगमों को इसकी सिफारिषों के अनुरूप उनके वित्तीय अधिकार का सम्मान करते हुए देय फंड जारी करे । उन्होंने कहा कि यदि दिल्ली सरकार ऐसा नहीं करती है तो वह पुनः उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटायेंगे और उसे संविधान तथा नियमों के उल्लंघन को ध्यान में रखते हुए इस निर्णय को रद्द करने के लिए याचिका दायर करेंगे ।
केजरीवाल सरकार द्वारा चैथे दिल्ली वित्त आयोग की सिफारिषों को लागू करने करने के लिए जो षर्त रख रही है, वह दिल्ली की 2 करोड़ जनता के साथ धोखा है । यह वस्तुतः उनके हितों की हत्या है । केजरीवाल सरकार का यह कहना कि भारत सरकार जब तक अपने हिस्से की सिफारिषों को लागू नहीं करती है तब तक उसे अपने हिस्से की सिफारिषों को लागू करना बिल्कुल ही मुष्किल है, सरकार की धूर्तता व दूशित मंषा को दर्षाता है ।
नेता प्रतिपक्ष ने आरोप लगाया कि चूँकि तीनों दिल्ली नगर निगमों में भारतीय जनता पार्टी का षासन है, अतः केजरीवाल सरकार ने राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित होकर यह जनविरोधी व संविधानविरोधी निर्णय लिया है । अब जब केन्द्र सरकार सातवें वेतन आयोग की सिफारिषों पर विचार कर उन्हें लागू करने जा रही है, तब नगर निगमों के ऊपर जो वित्तभार आयेगा, दिल्ली सरकार ने उसकी भी कतई परवाह नहीं की । दिल्ली सरकार को तो नगर निगमों को इस अतिरिक्त भार को वहन करने के लिए चैथे दिल्ली वित्त आयोग की सिफारिषों को अविलम्ब लागू कर देना चाहिए था, परन्तु इसके बिल्कुल ठीक विपरीत आचरण करते हुए उसने इसे लागू न करने का रास्ता ढूँढ लिया है ।
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