डीडीसीए मामले में दिल्ली सरकार द्वारा गठित जाॅंच आयोग असंवैधानिक -विजेन्द्र गुप्ता
नेता प्रतिपक्ष श्री विजेन्द्र गुप्ता ने आज विधान सभा की बैठक प्रारम्भ होने से पूर्व संवाददाताओं को सम्बोधित करते हुये कहा कि विधानसभा के आज बुलाये गये विशेष सत्र में डी.डी.सी.ए. मामले में श्री गोपाल सुब्रम्हणयन की अध्यक्षता में जाॅंच आयोग गठित करने के प्रस्ताव पर विधान सभा में चर्चा करना असंवैधानिक है । इस अवसर पर भाजपा विधायक श्री ओमप्रकाश शर्मा भी उपस्थित थे । श्री गुप्ता ने कहा कि यह मामला न केवल उच्च न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है अपितु दिल्ली विधान सभा के नियम भी न्यायाधिकरण, आयोग आदि के समक्ष विषयों पर चर्चा उठाने के लिये प्रस्ताव प्रस्तुत करने की अनुमति नहीं देती । अतः सरकार का यह प्रस्ताव न्यायालय व विधान सभा दोनों की अवमानना है ।
श्री गुप्ता ने कहा कि सर्वप्रथम तो यह मामला दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष विचाराधीन होने के कारण विधान सभा में चर्चा के लिये नहीं उठाया जा सकता । उन्होंने कहा कि केन्द्रीय वित्तमंत्री श्री अरूण जेटली ने इस विषय आप के 6 नेताओं पर दिल्ली के पटियाला कोर्ट में अपराधिक तो हाईकोर्ट में 10 करोड़ की मानहानि का मुकदमा किया है । हाईकोर्ट में आज संयुक्त रजिस्ट्रार ने मामले पर सुनवाई करी । दिल्ली हाईकोर्ट ने श्री अरविंद केजरीवाल और आप नेताओं को इस मामले में सुनवाई के लिये नोटिस जारी किया है । इन सब संवैधानिक प्रक्रियाओं के चलते विधानसभा में चर्चा पूर्णतया गैरकानूनी व असंवैधानिक है ।
श्री गुप्ता ने कहा कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र विधान सभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियम 111 के अंतर्गत इस विषय पर चर्चा नहीं की जा सकती । इस नियम के अंतर्गत निम्नलिखित प्रावधान हैं:-
ऐसे प्रस्ताव प्रस्तुत करने की अनुज्ञा नहीं दी जायेगी जो किसी ऐसे विषय पर चर्चा उठाने के लिये हो जो किसी न्यायिक या अर्द्ध न्यायिक कार्य करने वाले किसी वैधानिक न्यायाधिकरण या वैधानिक प्राधिकारी के या किसी विषय की जांच या छानबीन करने के लिये नियुक्त किसी आयोग या जांच न्यायालय के सामने लंबित हो:
परन्तु यदि अध्यक्ष संतुष्ट हों कि इससे न्यायाधिकरण, वैधानिक प्राधिकारी, आयोग या जांच न्यायालय द्वारा उस विषय के विचार किए जाने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका नहीं है तो वे स्वविवेक से ऐसे विषय को सदन में उठाने की अनुमति दे सकेंगे जो जांच की प्रक्रिया या कार्यक्षेत्र या चरण से संबंधित हो ।
श्री गुप्ता ने कहा कि डीडीसीए कम्पनीज एक्ट के अंतर्गत एक पंजीकृत संस्था है । फिरोजशाह कोटला क्रिकेट ग्राउंड की भूमि केन्द्र सरकार के एल एण्ड डी ओ विभाग के स्वामित्व में आती है । यह विषय संविधान की लिस्ट प् के अंतर्गत होने के कारण दिल्ली सरकार के कार्यक्षेत्र में नहीं आता ।
दिल्ली ने क्रिकेट को अनेक महारथी दिये हैं । वर्तमान में सर्वश्री वीरेन्द्र सहवाग, गौतम गम्भीर, विराट कोहली, शिखर धवन, आशीष नेहरा तथा ईशांत शर्मा जैसे अनेक विश्वस्तरीय खिलाडि़यों के नाम उल्लेखनीय हैं । भारतीय क्रिकेट को दिये हैं । वर्ष प्रति वर्ष भारत की टीम के 15 खिलाडि़यों की स्क्वाड में 4 से 5 खिलाड़ी दिल्ली के रहे हैं । यह अपने आप में एक उल्लेखनीय उपलब्धि है । इससे सिद्ध होता है कि डीडीसीए ने क्रिकेट को प्रोत्साहित करने के लिये महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ।
दिल्ली सरकार की डीडीसीए को बेकडोर से अपने कब्जे में लेने की सभी चेष्टायें विफल हो चुकी हैं । अभी हाल ही में आयोजित मैच में बीसीसीआई ने दिल्ली सरकार की दखल से इंकार किया गया था । न्यायाधीश मुदगल की देखरेख में गठित कमेटी ने भी दिल्ली सरकार के दावे को स्वीकार नहीं किया था । अतः अब केजरीवाल डीडीसीए पर कब्जा करना चाहते हैं । अतः अपने उद्देश्य की पूर्ति हेतु वह इस विषय का राजनीतिकरण कर बदले की भावना से काम कर रहे हैं ।
रजिस्ट्रार आफ कम्पनीज ने भी अपने स्तर पर इंक्वायरी कमेटी गठित की थी । इसमें स्टेडियम के निर्माण को लेकर कोई अनियमितता नहीं पाई गई । इस कमेटी में एसआईएफओ के एक सदस्य भी सम्मिलित थे । यह पाया गया था कि कुछ तकनीकी खामियाॅं है जो कम्पाउंडेबल हैं ।
केजरीवाल सरकार ने डीडीसीए पर जबरदस्ती बदनीयति से 23 करोड़ रूपये मनोरंजन कर के रूप में ठोक दिए थे जिन्हें अदा कर दिया गया है । डीडीसीए ने इसे एडवांस पेमेंट के रूप में जमा कर दिया । स्टेडियम के निर्माण में कोई भी सरकारी पैसा खर्च नहीं हुआ । मात्र 114 करोड़ रूपये व्यय हुये जिनमें से 58 करोड़ रूपये म्च्प्ब् द्वारा सिविल कार्यों पर खर्च किये गये । बाकी 57 करोड़ रूपये 43 मदों के अंतर्गत व्यय किये गये । जिनमें प्रमुख हैंे 42 हजार सीटों की उपलब्धता, वातानुकूल संयंत्रों, जनरेटरों, टवायलेट ब्लाकों, ग्राउंड तैयार करने इत्यादि पर व्यय किये गये । डीडीसीए के पास विस्तृत विवरण उपलब्ध है ।
यह आश्चर्य का विषय है कि जो कमीशन बनाया गया है उसमें श्री गोपाल सुब्रहम्यणम को अध्यक्ष बनाया गया है । वह एक वकील हैं जो इस विषय पर अपनी राय पहले ही दे चुके हैं और वह सर्वविदित है । अतः उनसे किसी भी प्रकार की निष्पक्षता की आशा नहीं की जा सकती । यदि आयोग ही गठित करना था तो किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश को इसका अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए था । परन्तु श्री केजरीवाल ने अपने मतलब का अध्यक्ष चुनकर निष्पक्षता की सारी आशाओं पर पानी फेर दिया है ।
श्री गुप्ता ने कहा कि सर्वप्रथम तो यह मामला दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष विचाराधीन होने के कारण विधान सभा में चर्चा के लिये नहीं उठाया जा सकता । उन्होंने कहा कि केन्द्रीय वित्तमंत्री श्री अरूण जेटली ने इस विषय आप के 6 नेताओं पर दिल्ली के पटियाला कोर्ट में अपराधिक तो हाईकोर्ट में 10 करोड़ की मानहानि का मुकदमा किया है । हाईकोर्ट में आज संयुक्त रजिस्ट्रार ने मामले पर सुनवाई करी । दिल्ली हाईकोर्ट ने श्री अरविंद केजरीवाल और आप नेताओं को इस मामले में सुनवाई के लिये नोटिस जारी किया है । इन सब संवैधानिक प्रक्रियाओं के चलते विधानसभा में चर्चा पूर्णतया गैरकानूनी व असंवैधानिक है ।
श्री गुप्ता ने कहा कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र विधान सभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियम 111 के अंतर्गत इस विषय पर चर्चा नहीं की जा सकती । इस नियम के अंतर्गत निम्नलिखित प्रावधान हैं:-
ऐसे प्रस्ताव प्रस्तुत करने की अनुज्ञा नहीं दी जायेगी जो किसी ऐसे विषय पर चर्चा उठाने के लिये हो जो किसी न्यायिक या अर्द्ध न्यायिक कार्य करने वाले किसी वैधानिक न्यायाधिकरण या वैधानिक प्राधिकारी के या किसी विषय की जांच या छानबीन करने के लिये नियुक्त किसी आयोग या जांच न्यायालय के सामने लंबित हो:
परन्तु यदि अध्यक्ष संतुष्ट हों कि इससे न्यायाधिकरण, वैधानिक प्राधिकारी, आयोग या जांच न्यायालय द्वारा उस विषय के विचार किए जाने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका नहीं है तो वे स्वविवेक से ऐसे विषय को सदन में उठाने की अनुमति दे सकेंगे जो जांच की प्रक्रिया या कार्यक्षेत्र या चरण से संबंधित हो ।
श्री गुप्ता ने कहा कि डीडीसीए कम्पनीज एक्ट के अंतर्गत एक पंजीकृत संस्था है । फिरोजशाह कोटला क्रिकेट ग्राउंड की भूमि केन्द्र सरकार के एल एण्ड डी ओ विभाग के स्वामित्व में आती है । यह विषय संविधान की लिस्ट प् के अंतर्गत होने के कारण दिल्ली सरकार के कार्यक्षेत्र में नहीं आता ।
दिल्ली ने क्रिकेट को अनेक महारथी दिये हैं । वर्तमान में सर्वश्री वीरेन्द्र सहवाग, गौतम गम्भीर, विराट कोहली, शिखर धवन, आशीष नेहरा तथा ईशांत शर्मा जैसे अनेक विश्वस्तरीय खिलाडि़यों के नाम उल्लेखनीय हैं । भारतीय क्रिकेट को दिये हैं । वर्ष प्रति वर्ष भारत की टीम के 15 खिलाडि़यों की स्क्वाड में 4 से 5 खिलाड़ी दिल्ली के रहे हैं । यह अपने आप में एक उल्लेखनीय उपलब्धि है । इससे सिद्ध होता है कि डीडीसीए ने क्रिकेट को प्रोत्साहित करने के लिये महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ।
दिल्ली सरकार की डीडीसीए को बेकडोर से अपने कब्जे में लेने की सभी चेष्टायें विफल हो चुकी हैं । अभी हाल ही में आयोजित मैच में बीसीसीआई ने दिल्ली सरकार की दखल से इंकार किया गया था । न्यायाधीश मुदगल की देखरेख में गठित कमेटी ने भी दिल्ली सरकार के दावे को स्वीकार नहीं किया था । अतः अब केजरीवाल डीडीसीए पर कब्जा करना चाहते हैं । अतः अपने उद्देश्य की पूर्ति हेतु वह इस विषय का राजनीतिकरण कर बदले की भावना से काम कर रहे हैं ।
रजिस्ट्रार आफ कम्पनीज ने भी अपने स्तर पर इंक्वायरी कमेटी गठित की थी । इसमें स्टेडियम के निर्माण को लेकर कोई अनियमितता नहीं पाई गई । इस कमेटी में एसआईएफओ के एक सदस्य भी सम्मिलित थे । यह पाया गया था कि कुछ तकनीकी खामियाॅं है जो कम्पाउंडेबल हैं ।
केजरीवाल सरकार ने डीडीसीए पर जबरदस्ती बदनीयति से 23 करोड़ रूपये मनोरंजन कर के रूप में ठोक दिए थे जिन्हें अदा कर दिया गया है । डीडीसीए ने इसे एडवांस पेमेंट के रूप में जमा कर दिया । स्टेडियम के निर्माण में कोई भी सरकारी पैसा खर्च नहीं हुआ । मात्र 114 करोड़ रूपये व्यय हुये जिनमें से 58 करोड़ रूपये म्च्प्ब् द्वारा सिविल कार्यों पर खर्च किये गये । बाकी 57 करोड़ रूपये 43 मदों के अंतर्गत व्यय किये गये । जिनमें प्रमुख हैंे 42 हजार सीटों की उपलब्धता, वातानुकूल संयंत्रों, जनरेटरों, टवायलेट ब्लाकों, ग्राउंड तैयार करने इत्यादि पर व्यय किये गये । डीडीसीए के पास विस्तृत विवरण उपलब्ध है ।
यह आश्चर्य का विषय है कि जो कमीशन बनाया गया है उसमें श्री गोपाल सुब्रहम्यणम को अध्यक्ष बनाया गया है । वह एक वकील हैं जो इस विषय पर अपनी राय पहले ही दे चुके हैं और वह सर्वविदित है । अतः उनसे किसी भी प्रकार की निष्पक्षता की आशा नहीं की जा सकती । यदि आयोग ही गठित करना था तो किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश को इसका अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए था । परन्तु श्री केजरीवाल ने अपने मतलब का अध्यक्ष चुनकर निष्पक्षता की सारी आशाओं पर पानी फेर दिया है ।
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