विज्ञापनों पर करोड़ांे रूपया बर्बाद करने और दिल्ली से विज्ञापन हटाने के मामले की सीबीआई जांच हो - विजेन्द्र गुप्ता
नई दिल्ली, 30 जुलाई । नेता प्रतिपक्ष श्री विजेन्द्र गुप्ता ने कहा है कि जनता को गुमराह करने के लिये विज्ञापनों पर 526 करोड़ रूपये बर्बाद करने पर उच्च न्यायालय दिल्ली द्वारा सख्त रूख अपनाये जाने से घबराकर दिल्ली सरकार ने दिल्ली और दिल्ली मैट्रो रेल समेत सभी स्थानों से विज्ञापन उतार लिये हैं। इससे साबित होता है कि दिल्ली सरकार को पता था कि वह सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देशों की जानबूझकर अवहेलना कर रही है। अब सजा से बचने के लिये ही विज्ञापन हटाये गये हैं। उन्होंने विज्ञापन प्रकरण की जांच सीबीआई से कराये जाने की मांग की है।
श्री गुप्ता ने कहा है कि इन विज्ञापनों पर 526 करोड़ रूपया फंूकने से दिल्ली की जनता बेहद नाराज थी। भीषण महंगाई, पानी, बिजली, बच्चों की फीस, दवाइयों, वैट आदि पर एक तरफ दिल्ली की जनता पर दिल्ली सरकार की ओर से भारी आर्थिक बोझ लाद दिया गया है। बुजुर्गों, विधवाओं, विकलांगों आदि की पेंशन धन की कमी का रोना रोकर दिल्ली सरकार द्वारा रोक दी गयी है। दूसरी तरफ असत्य और गुमराह करने वाले विज्ञापनों पर सरकार द्वारा हर रोज लगभग दो करोड़ रूपये फंूके जा रहे हैं। इसकी आलोचना भाजपा ने विधानसभा के अन्दर और बाहर की थी। नेता प्रतिपक्ष ने इन विज्ञापनों पर खर्च रोककर जनता की भलाई के लिये वह पैसा खर्च करने के लिये मुख्यमंत्री सहित दिल्ली सरकार से बराबर मांग की लेकिन सरकार ने कोई सुनवाई नहीं की।
एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुये सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली सहित देश के सभी राज्यों को स्पष्ट दिशा निर्देश जारी किये थे कि सरकारी विज्ञापन मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों आदि का महिमामण्डन के लिये जारी नहीं किये जा सकते। जनता के धन से विज्ञापन पर खर्च सिर्फ जनहित के मुद्दों पर किया जा सकता है। शर्त यह है कि ऐसे विज्ञापनों में सिर्फ राष्ट्रपति भारत, प्रधानमंत्री और सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की ही फोटो लगायी जा सकती है। दिल्ली सरकार के विज्ञापनों में इन दिशा निर्देशों की अवमानना करते हुये मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का असत्य तथ्यों सहित गुणगान किया गया था।
श्री गुप्ता ने बताया कि उच्च न्यायालय दिल्ली ने 29 जुलाई 2015 को एक जनहित याचिका की सुनवाई करते समय दिल्ली सरकार से पूछा है कि विज्ञापनों पर जो पैसा खर्च किया गया है वह पैसा सरकारी मद में खर्च किया गया है या फिर उसे आम आदमी पार्टी के फंड से खर्च किया गया है? इस प्रश्न का उत्तर न्यायालय ने 03 अगस्त 2015 को दाखिल करने को कहा है। इसी के बाद दिल्ली सरकार ने आनन फानन में दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के नाम का दुरूपयोग कर सारे विज्ञापन हटा लिये। दिल्ली सरकार के अंदर विज्ञापनों को लेकर अपराध बोध था, इसीलिये उसने 03 अगस्त 2015 की सुनवाई से पहले ही सारे विज्ञापन हटवा लिये।
श्री गुप्ता ने कहा है कि इन विज्ञापनों पर 526 करोड़ रूपया फंूकने से दिल्ली की जनता बेहद नाराज थी। भीषण महंगाई, पानी, बिजली, बच्चों की फीस, दवाइयों, वैट आदि पर एक तरफ दिल्ली की जनता पर दिल्ली सरकार की ओर से भारी आर्थिक बोझ लाद दिया गया है। बुजुर्गों, विधवाओं, विकलांगों आदि की पेंशन धन की कमी का रोना रोकर दिल्ली सरकार द्वारा रोक दी गयी है। दूसरी तरफ असत्य और गुमराह करने वाले विज्ञापनों पर सरकार द्वारा हर रोज लगभग दो करोड़ रूपये फंूके जा रहे हैं। इसकी आलोचना भाजपा ने विधानसभा के अन्दर और बाहर की थी। नेता प्रतिपक्ष ने इन विज्ञापनों पर खर्च रोककर जनता की भलाई के लिये वह पैसा खर्च करने के लिये मुख्यमंत्री सहित दिल्ली सरकार से बराबर मांग की लेकिन सरकार ने कोई सुनवाई नहीं की।
एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुये सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली सहित देश के सभी राज्यों को स्पष्ट दिशा निर्देश जारी किये थे कि सरकारी विज्ञापन मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों आदि का महिमामण्डन के लिये जारी नहीं किये जा सकते। जनता के धन से विज्ञापन पर खर्च सिर्फ जनहित के मुद्दों पर किया जा सकता है। शर्त यह है कि ऐसे विज्ञापनों में सिर्फ राष्ट्रपति भारत, प्रधानमंत्री और सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की ही फोटो लगायी जा सकती है। दिल्ली सरकार के विज्ञापनों में इन दिशा निर्देशों की अवमानना करते हुये मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का असत्य तथ्यों सहित गुणगान किया गया था।
श्री गुप्ता ने बताया कि उच्च न्यायालय दिल्ली ने 29 जुलाई 2015 को एक जनहित याचिका की सुनवाई करते समय दिल्ली सरकार से पूछा है कि विज्ञापनों पर जो पैसा खर्च किया गया है वह पैसा सरकारी मद में खर्च किया गया है या फिर उसे आम आदमी पार्टी के फंड से खर्च किया गया है? इस प्रश्न का उत्तर न्यायालय ने 03 अगस्त 2015 को दाखिल करने को कहा है। इसी के बाद दिल्ली सरकार ने आनन फानन में दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के नाम का दुरूपयोग कर सारे विज्ञापन हटा लिये। दिल्ली सरकार के अंदर विज्ञापनों को लेकर अपराध बोध था, इसीलिये उसने 03 अगस्त 2015 की सुनवाई से पहले ही सारे विज्ञापन हटवा लिये।
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