क्या दलित के जान की कोई कीमत नही है : डॉ. उदित राज
नई दिल्ली: 15 मार्च 2017, आल इंडिया परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष व लोकसभा सांसद डॉ. उदित राज ने 13 मार्च होली के दिन जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में एमफिल के दलित छात्र मुथुकृष्णनन जीवानाथम के आत्महत्या पर गहरा दुःख व्यक्त किया है | डॉ. उदित राज का कहना है कि आत्महत्या का कारण बेहद गंभीर है क्यों कि इंटरव्यू में दलित छात्रों के साथ पहले से ही भेदभाव होता रहा है और अभी भी यह लगातार जारी है और ये आत्महत्या उसी का नतीजा है | इससे पहले हैदराबाद यूनिवर्सिटी में भेदभाव हुआ था और हमने एक होनहार दलित छात्र रोहित वेमुला को खो दिया था | मुथुकृष्णनन जीवानाथम रोहित वेमुला के साथ हैदराबाद विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ आन्दोलन में भी जुड़े थे | डॉ. उदित राज ने कहा कि मुथुकृष्णनन की आत्महत्या का केवल एक कारण इंटरव्यू ही नहीं था बल्कि उन्हें दलित होने की वजह से बचपन से ही घ्रणा का सामना करना पड़ता था |
डॉ. उदित राज ने कहा कि मुथुकृष्णनन ने सुसाइड से पहले 10 मार्च को अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा था कि ”एमफिल-पीएचडी में दाखिले में कोई समानता नहीं है, मौखिक परीक्षा में कोई समानता नहीं है, यहां समानता को सिर्फ नकारा जाता है, प्रो सुखदेव थोराट अनुशंसाओं को नकारना, प्रशासनिक खंड में छात्रों को प्रदर्शन करने का स्थान नकारना, वंचितों को शिक्षा नकारना। जब समानता को नकारा जाता है तो हर बात को झुठला दिया जाता है। उनके इस नोट को पढने से महसूस होता है कि भेदभाव को लेकर वह कितना चिंतित और पीडित महसूस कर रहा था | इसे केवल फेसबुक पोस्ट न समझ कर बल्कि इसे एक सुसाइड नोट की तरह मानकर इस मामले में जांच होनी चाहिए | आखिर कब तक होनहार दलित छात्र अपनी जान देते रहेंगे | क्या उनकी जान का कोई मोल नहीं है ?
डॉ. उदित राज ने कहा कि जब अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में एससी/एसटी विद्यार्थियों के साथ कथित भेदभाव को लेकर 2007 में प्रोफ़ेसर सुखदेव थोराट के नेतृत्व में एक कमेटी बनी थी.तो इस कमेटी ने विस्तृत अध्ययन कर, भेदभाव मिटाने के संबंध में कई सिफ़ारिशें जैसे –
1.संस्थानों में एससी/एसटी छात्रों के लिए अंग्रेज़ी और अन्य बेसिक विषयों की विशेष कोचिंग या रेमेडियल क्लासेज़ की व्यवस्था करनी चाहिए |
2- छात्रों और शिक्षकों के बीच संबंधों को सुधारने के लिए विशेष कोशिशें करनी चाहिए. इसके लिए औपचारिक शेड्यूल की व्यवस्था की जानी चाहिए |
3- थ्योरी और प्रैक्टिकल में पक्षपात से बचने के लिए वैकल्पिक प्रश्नों की संख्या को अधिक और लिखित को कम से कम किया जाए. इसके अलावा वायवा के नंबर को न्यूनतम स्तर पर लाना चाहिए|
4- कक्षा में भेदभाव पर अंकुश लगाने के लिए कक्षा प्रतिनिधियों की संख्या दो की जाए, जिसमें एक एससी/एसटी से हो|
5- गवर्निंग बॉडी को छात्रों, शिक्षकों और रेजिडेंट्स की एक संयुक्त कमेटी बनानी चाहिए, जो कैंपस और निजी मेसों में सामाजिक विभाजन की समस्या को ख़त्म करने पर ध्यान दे|
6- एससी/एसटी और ओबीसी स्टूडेंट्स से जुड़े मुद्दों को निपटाने के लिए 'इक्वल अपॉर्चुनिटी ऑफ़िसर' के रूप में एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति की जाए. इसी की निगरानी में रेमेडियल कक्षाएं चलाई जाएं|
7- इसी कार्यालय के मार्फत एससी/एसटी स्टूडेंट्स की शिकायतों और अन्य समस्याओं का निवारण किया जाए|
8- छात्रों से जुड़े मसलों को हल करने के लिए बनने वाली सभी कमेटियों में एससी/एसटी स्टूडेंट्स को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए|
9- शिक्षकों की नियुक्ति के मामले में आरक्षण के प्रावधानों का पालन किया जाए|
10- स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा आरक्षण के लागू किए जाने की सीधी निगरानी की जानी चाहिए |
लेकिन इन्हें संस्थानों में लागू नहीं किया जा रहा है और जब रोहित वेमुला आत्महत्या मामले ने तूल पकड़ा था तो कैंपसों में होने वाले भेदभाव का मुद्दा उठा था लेकिन उसके बाद भी इसे अभी तक लागू नही किया जा रहा है |
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