माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने स्थापित कर दिया है कि संविधान ही दिल्ली का बाॅस
आज का यह निर्णय अरविन्द केजरीवाल सरकार के लिए एक अंतिम चेतावनी है कि वह संविधान एवं विधि के द्वारा स्थापित व्यवस्था के अंतर्गत काम करें और अराजकता की राह से अलग हों-मनोज तिवारी
श्याम जाजू, मीनाक्षी लेखी, रमेश बिधुड़ी, महेश गिरी, उदित राज एवं अमन सिन्हा ने भी
पत्रकारवार्ता को सम्बोधित किया
नई दिल्ली, 4 जुलाई। दिल्ली भाजपा अध्यक्ष श्री मनोज तिवारी ने प्रदेश प्रभारी, सांसदों, प्रदेश पदाधिकारियों एवं प्रवक्ताओं की उपस्थिति में एक पत्रकारवार्ता में कहा कि आज का माननीय सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ का निर्णय बहुत स्पष्ट है, न्यायाधीशों ने विवेकशील एवं दृढ़ निर्णय दिया है और यह स्थापित कर दिया है कि संविधान ही दिल्ली एवं देश का बाॅस है। आज का यह निर्णय अरविन्द केजरीवाल सरकार के लिए एक अंतिम चेतावनी है कि वह संविधान एवं विधि के द्वारा स्थापित व्यवस्था के अंतर्गत काम करें और अराजकता की राह से अलग हों।
पत्रकारवार्ता में प्रदेश प्रभारी श्री श्याम जाजू, सांसद श्रीमती मीनाक्षी लेखी, श्री महेश गिरी, श्री रमेश बिधुड़ी एवं डाॅ. उदित राज एवं पार्टी प्रवक्ता एंव अधिवक्ता श्री अमन सिन्हा ने भी महामंत्री श्री राजेश भाटिया, उपाध्यक्ष श्री अभय वर्मा, प्रवक्ता श्री अश्वनी उपाध्याय, श्री प्रवीण शंकर कपूर, श्री अशोक गोयल एवं श्रीमती टीना शर्मा, मीडिया प्रभारी श्री प्रत्यूष कंठ एवं सह-प्रभारी श्री नीलकांत बक्शी की उपस्थिति में अपने वक्तव्य रखे।
श्री मनोज तिवारी ने कहा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने स्पष्ट कर दिया है कि:
1 संविधान के आर्टिकल 239 एए को वैध मानते हुये सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उपराज्यपाल ही दिल्ली के प्रशासक रहेंगे और दिल्ली में संविधान की परिधि में रह कर ही सरकार को कार्य करना होगा।
2 दिल्ली के भूमि, कानून व्यवस्था, सेवायें एवं पुलिस जैसे मुद्दे उपराज्यपाल के ही आधीन रहेंगे।
3 न्यायाधीशों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि केजरीवाल सरकार को संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार ही कार्य करना होगा और विधि अनुसार निर्णय लेने से पहले और पश्चात उपराज्यपाल को सूचित करना होगा।
4 निःसंदेह न्यायाधीशों ने दिल्ली सरकार की परिधि में आने वाले मामलों में उपराज्यपाल को सहयोग बढ़ाने के लिए कहा है पर दिल्ली की जनता के हित में जहां वह आवश्यक समझें उनके विवेकाधिकार में कोई कटौती नहीं की है।
इसका अभिप्राय यह है कि यदि दिल्ली सरकार संविधान की परिधि के बाहर जाकर कोई निर्णय लेती है तो उपराज्यपाल को उस पर अपनी मन भिन्नता लिखकर राष्ट्रपति को भेजने का अधिकार बना रहेगा।
5 यह फैसला बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि स्वयं न्यायाधीशों ने यह कहा है कि अराजकता किसी भी रूप में स्वीकार नहीं की जा सकती।
दिल्ली एवं देश की जनता भलिभांति जानती है कि दिल्ली में अराजकता मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने फैलाई है चाहे वह केन्द्र से द्वंद की स्थिति बनाकर हो, उपराज्यपाल से असंवैधानिक टकराव बनाकर हो या फिर अधिकारियों से हिंसात्मक व्यवहार से हो और नगर निगमों में राजनीतिक द्वेष बढ़ाकर।
6 न्यायाधीशों ने स्पष्ट कर दिया है कि दिल्ली देश की राजधानी है और संविधान अनुसार दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता।
वरिष्ठ अधिवक्ता एवं प्रवक्ता श्री अमन सिन्हा ने माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु पत्रकारों के समक्ष रख कर कहा कि इस निर्णय ने स्पष्ट कर दिया है कि उपराज्यपाल एवं मुख्यमंत्री दोनों को समन्वय से कार्य करना होगा और दिल्ली की जनता के प्रति जितना दायित्व मुख्यमंत्री का है उतना ही दायित्व उपराज्यपाल का है। इस निर्णय के पैरा 21 में न्यायाधीशों ने स्पष्ट कर दिया है कि दिल्ली के प्रशासकीय अधिकारी उपराज्यपाल ही हैं और कैबिनेट को अपने हर निर्णय की सूचना उन्हें देनी होगी। साथ ही उपराज्यपाल का यह विशेष अधिकार होगा कि यदि वह निर्णय को लोकहित या संविधान अनुरूप न मानें तो उस पर असहमति प्रकट करके राष्ट्रपति महोदय को प्रेषित कर सकते हैं।
प्रदेश प्रभारी श्री श्याम जाजू ने कहा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के आज के निर्णय ने संविधान को चुनौती देने वाले मुख्यमंत्री को उनका स्थान दिखा दिया है और यह निर्णय उनके लिए चेतावनी है कि हम करें वो कायदा की जिस राजनीति पर वह दिल्ली को चलाना चाहते हैं वो देश के लोगों और संविधान को कभी भी स्वीकार्य नहीं है।
श्री जाजू ने कहा कि बेहतर होगा कि मुख्यमंत्री इस निर्णय के बाद समझ लें कि वह दिल्ली के मालिक नहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं और मुख्यमंत्री के लिए जो संवैधानिक दायरा है उन्हें उसी में रहकर काम करना होगा।
सांसद श्रीमती मीनाक्षी लेखी ने कहा कि आज का माननीय सुप्रीम कोर्ट का निर्णय संविधान की विजय है और न्यायाधीशों ने केजरीवाल सरकार को यह संकेत दे दिया है कि किसी को भी संविधान की परिधि के बाहर जा कर काम करने की स्वतंत्रता नहीं है।
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया द्वारा सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद किये एक ट्वीट जिसमें उन्होंने पूर्ण राज्य के दर्जे के लिए आंदोलन जारी रखने की बात कही है पर टिप्पणी करते हुये श्रीमती मीनाक्षी लेखी ने कहा कि यह माननीय सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के समान है और दर्शाता है कि केजरीवाल सरकार के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश का कोई सम्मान नहीं है। जो सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को अपनी विजय बता रही है और साथ ही आंदोलन की बात कह रही है वह एक अराजक सरकार ही है।
सांसद श्री रमेश बिधूड़ी ने कहा कि आज का माननीय सुप्रीम कोर्ट का निर्णय स्थापित करता है कि संविधान सर्वोच्च है और उसके प्रावधानों के अनुसार ही कार्य कर करके दिल्ली की प्रशासकीय व्यवस्थाओं को चलाया जा सकता है। दिल्ली में गत तीन साल से विकास कार्य ठप्प हैं जिसका मूल कारण है कि सरकार विधि अनुसार योजनायें नहीं बनाती। आज का यह निर्णय अरविन्द केजरीवाल सरकार के लिए चेतावनी है कि वह विधि अनुसार कार्य कर दिल्ली की जनता के लिए विकास कार्य प्रारम्भ करें।
सांसद श्री महेश गिरी ने कहा कि केजरीवाल सरकार के लिए यह एक शर्मिंदगी का विषय है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में अराजकता को लेकर टिप्पणी की है। यह टिप्पणी कहीं न कहीं मुख्यमंत्री और उनकी सरकार के कार्यों को लेकर है क्योंकि स्वयं मुख्यमंत्री ने समय-समय पर अपने आप को अराजक घोषित किया है। उन्होंने कहा कि दिल्ली की जनता आज जब पानी-बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं को मांग रही है तब केजरीवाल सरकार ध्यान भटकाने के लिए पूर्ण राज्य का मुद्दा उछालने का प्रयास कर रही है और आज के माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने उस पर भी विराम लगा दिया है।
सांसद डाॅ. उदित राज ने कहा कि बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर ने 1952 में संविधान को लागू करते समय यह स्पष्ट कर दिया था कि देश की राजधानी होने के कारण दिल्ली संघ शासित प्रदेश रहेगा और आज माननीय सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने इसे पुनः स्पष्टता से स्थापित कर दिया। उन्होंने कहा कि अरविन्द केजरीवाल स्वयं एक अधिकारी रहे हैं, उन्हें राजनीति में आने से पूर्व ही संवैधानिक व्यवस्थाओं की जानकारी रही थी और आज जिस प्रकार की असंवैधानिक अराजकत वे फैला रहे हैं वह सिर्फ अपनी सरकार की नाकामियों को छिपाने का प्रयास कर रहे हैं।
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