केजरीवाल सरकार से 1000 ई-बसों की खरीद में 750 करोड़ का घोटाला है!
- दिल्ली सरकार ने अपने 7 मई 2018 के अपने एफीडेविट में कहा है कि उनके पास Environment Cess के तहत 1301 करोड़ रुपये की राशि है जिससे वे 2.5 करोड़ प्रति बस की लागत से 1000 बसे खरीदेंगे, जबकि Department of Heavy Industries ने इलैक्ट्रीक बसों की केपीटल कोस्ट का बेंच मार्क तय किया जिसमें प्रति बस की कीमत 75 लाख से 1.75 करोड़ रखी गई। -अजय माकन
- केजरीवाल सरकार से 1000 ई-बसों की खरीद में 750 करोड़ का घोटाला है क्योंकि ईपीसीए ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ई-बसों की लागत 75 लाख से 1.75 करोड़ प्रति होनी चाहिए, अर्थात 75 लाख प्रति ई-बस की लागत ज्यादा दिखाकर दिल्ली के करदाताओं की जेब पर डाका डाला जा रहा है।- अजय माकन
- दिल्ली सरकार ई- बसों की खरीद प्रति बस 1 करोड़ की सब्सिडी भी दे रही है। दिल्ली सरकार द्वारा ज्यादा से ज्यादा 55 रुपये प्रति किलोमीटर की दर से भुगतान करने की बात है और जहां बस खरीदने की जिम्मेदारी आॅपरेटर की है। दिल्ली में प्रति किलोमीटर के लिए राजस्व की दर आमतौर पर 25-30 प्रति किलोमीटर है और सरकार 30-25 प्रति किलोमीटर का अंतर देती है। इसी प्रकार बंगलूरु तथा हैदराबाद में यह दर 40 रुपये प्रति किलोमीटर है। जिसमें बिजली (इंधन) परिवहन विभाग वहन करता है और आपरेटर को कोई सब्सिडी भी नही दी जाती । - अजय माकन
- 11 जुलाई 2018 को केबिनेट की मीटिंग हुई और मीटिंग शुरु होने से पहले ही केजरीवाल ने सीसीटीवी कैमरे बंद करवा दिए और इस मीटिंग में 1000 ई-बसों की खरीद की मंजूरी दे दी गई और इसके लिए डिम्ट्स को नोमिनेशन के आधार पर कंसलटेन्ट भी नियुक्त कर दिया गया।- अजय माकन
- दिल्ली के वित्त, परिवहन तथा प्लानिंग विभाग ने ई-बस खरीद की प्रोपोजल का विरोध किया, बिना डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट के कैसे केबिनेट 2500 करोड़ के प्रोजेक्ट को मंजूरी दे सकती। उपरोक्त विभागों ने भी डिम्ट्स को नोमिनेशन के बेस पर कंसलटेंट बनाने का विरोध किया था। ईपीसीए ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दिल्ली सरकार को बसों की खरीद के लिए पैसा मांगने से पहले एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करनी चाहिए।- अजय माकन
- दिल्ली सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में दिए अपने एफिडेविट के पेज 3 पर पेरा 4 में यह झूठ बोला है कि उनको 40 ई-बसों के लिए 40 करोड़ रुपये की सहायता मिल गई है जबकि श्री भूरेलाल की अगुवाई वाली ईपीसीए कमेटी ने सर्वोच्च न्यायालय के सामने दी गई अपनी 15 मई 2018 की रिपोर्ट में कहा कि Department of Heavy Industries ने उनको बताया कि दिल्ली सरकार ने 40 बसों की खरीद के लिए शुरुआत में प्रोपोजल भेजा था परंतु प्रोजेक्ट के अनुसार उन्होने समय पर उसको फोलो नही किया और समय पर बिडिंग भी नही की, इसलिए जो राशि उपलब्ध थी वह अन्य शहरों को दे दी गई। - अजय माकन
- केजरीवाल सरकार ने उस डिम्टस को 2500 करोड़ के प्रोजेक्ट में कंसलटेंट नियुक्त कर दिया जिसके खिलाफ केजरीवाल सरकार ने सीएजी आडिट के आदेश दिए (Times of India ) की 29 जनवरी 2014 की रिपोर्ट के अनुसार), इसी प्रकार दिल्ली जल बोर्ड द्वारा वाटर टैंकर डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम को लेकर बनाई गई फेक्ट फाईडिंग कमेटी ने साफतौर पर कहा था कि डिम्ट्स ने 36.59 करोड़ रुपया ज्यादा चार्ज किया था जिसके कारण दिल्ली सरकार को नुकसान हुआ था। इसी प्रकार दिल्ली जल बोर्ड की 29 सितम्बर 2017 की बैठक में डिम्ट्स की सारी सेवाओं को तुरंत प्रभाव से निरस्त करने का निर्णय लिया गया था जिसमें वाटर टैंकर डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम भी शामिल था। - अजय माकन
- हम केजरीवाल सरकार से 1000 ई-बसों की खरीद में किए जाने वाले 750 करोड़ के घोटाले पर जवाब मांगते है और हम यह भी पूछते है कि केजरीवाल ने डिम्ट्स को 2500 करोड़ के बसों की खरीद के कांट्रेक्ट में किस आधार पर कंसलटेंट के रुप में नियुक्त किया जबकि दिल्ली सरकार ने खुद डिम्ट्स को ब्लैक लिस्ट किया था।- अजय माकन
नई दिल्ली, 21 जुलाई, 2018 - दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष श्री अजय माकन ने कहा कि दिल्ली सरकार ने अपने 7 मई 2018 के अपने एफीडेविट में कहा है कि उनके पास Environment Cess के तहत 1301 करोड़ रुपये की राशि है जिससे वे 2.5 करोड़ प्रति बस की लागत से 1000 बसे खरीदेंगे। इस एफीडेविट पर सर्वोच्च न्यायालय ने भूरे लाल की अध्यक्षता वाली कमेटी को Environment Pollution (Prevention and Conrol) Authority (EPCA) को अपनी रिपोर्ट देने को कहा था। (संबधित दस्तावेज संलग्न है।)
श्री माकन ने कहा कि दिल्ली सरकार के एफीडेविट के जवाब में भूरेलाल की अध्यक्षता वाली Environment Pollution (Prevention and Control) Authority (EPCA) कमेटी ने अपनी 15.5.2018 की रिपोर्ट के पेरा 3.3 में कहा है कि Department of Heavy Industries ने इलैक्ट्रीक बसों की केपीटल कोस्ट का बेंच मार्क तय किया जिसमें प्रति बस की कीमत 75 लाख से 1.75 करोड़ रखी गई। जबकि दिल्ली सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में अपने एफीडेविट में प्रति बस की कीमत 2.5 करोड़ दी है जो कि बहुत ज्यादा है। श्री माकन ने कहा कि दिल्ली सरकार प्रति बस 1 करोड़ की सब्सिडी भी दे रही है। उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार द्वारा ज्यादा से ज्यादा 55 रुपये प्रति किलोमीटर की दर से भुगतान करने की बात है और जहां बस खरीदने की जिम्मेदारी आपरेटर की है। उन्होने कहा कि दिल्ली में प्रति किलोमीटर के लिए राजस्व की दर आमतौर पर 25-30 प्रति किलोमीटर है और सरकार 30-25 प्रति किलोमीटर का अंतर देती है। इसी प्रकार बंगलूरु तथा हैदराबाद में यह दर 40 रुपये प्रति किलोमीटर है। जिसमें बिजली (इंधन) परिवहन विभाग वहन करता है और आपरेटर को कोई सब्सिडी भी नही दी जाती ।
श्री माकन ने कहा कि ईपीसीए ने अपनी रिपोर्ट के पेरा 4 में साफ तौर पर कहा है कि वर्ष प्रतिवर्ष परिवहन विभाग को पैसा आवंटित किया गया जिसमें बसें खरीदने का भी पैसा भी होता था। परंतु बसें नही खरीदी गई। श्री माकन ने कहा कि पेरा 4 में टेबल नः 1 में एक नोट दिया गया है कि जिसमें लिखा है कि बजट की घोषणा में बसों की खरीद के लिए राशि का प्रावधान रखा गया परंतु उस वर्ष बस नही खरीदी गई। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि या तो पैसा लैप्स हो गया या दूसरे किसी अन्य कार्य में खर्च कर दिया गया।
प्रदेश कार्यालय में आयोजित संवाददाता सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए श्री अजय माकन ने कहा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविन्द केजरीवाल, उपमुख्यमंत्री श्री मनीष सिसोदिया तथा दिल्ली सरकार हमेशा की तरह मीडिया में स्टोरी प्लांट कराती है, कि उन्होंने एक नए कदम की शुरुआत दिल्ली के लिए की है। श्री माकन ने कहा कि श्री अरविन्द केजरीवाल ने ढ़ोल बजाकर यह कहा था कि प्रत्येक केबिनेट मीटिंग की रिकार्डिंग हुआ करेगी तथा इसका सीधा प्रसारण भी किया जाएगा ताकि सरकार के काम और फैसलों में पारदर्शिता बनाई जा सके। श्री माकन ने कहा कि बड़ी अजीब बात है कि दो केबिनेट मीटिंग की रिकार्डिंग हुई परंतु उनका कोई अता पता नही है अर्थात उनको सार्वजनिक नही किया गया। संवाददाता सम्मेलन में प्रदेश अध्यक्ष श्री अजय माकन के साथ मुख्य प्रवक्ता शर्मिष्ठा मुखर्जी, श्री चतर सिंह, मुख्य मीडिया काआर्डिनेटर श्री मेहदी माजिद तथा मीडिया काआर्डिनेटर श्री शिवम भगत भी मौजूद थे
श्री माकन ने कहा कि 11 जुलाई 2018 को केबिनेट की मीटिंग हुई और मीटिंग शुरु होने से पहले ही केजरीवाल जी ने सीसीटीवी कैमरे बंद करवा दिए और इस मीटिंग में 1000 ई-बसों की खरीद की मंजूरी दे दी गई और इसके लिए डिम्ट्स को नोमिनेशन के आधार पर कंसलटेन्ट भी नियुक्त कर दिया गया। श्री माकन ने कहा कि इस मीटिंग तथा डिम्स को कंसलटेन्ट नियुक्त किए जाने के पीछे क्या भ्रष्टाचार है और उनकी क्या मंशा है उसका पर्दाफाश हम कर रहे है।
श्री माकन ने कहा कि दिल्ली के वित्त, परिवहन तथा प्लानिंग विभाग ने इस प्रोपोजल का विरोध किया और बिना डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट के कैसे केबिनेट 2500 करोड़ के प्रोजेक्ट को मंजूरी दे सकती। श्री माकन ने कहा कि उपरोक्त विभागों ने भी डिम्ट्स को नोमिनेशन के बेस पर कंसलटेंट बनाने का विरोध किया था। श्री माकन ने बताया कि ईपीसीए ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दिल्ली सरकार को बसों की खरीद के लिए पैसा मांगने से पहले एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करनी चाहिए।
श्री माकन ने कहा कि केजरीवाल सरकार ने उस डिम्टस को 2500 करोड़ के प्रोजेक्ट में कंसलटेंट नियुक्त कर दिया जिसके खिलाफ केजरीवाल सरकार ने सीएजी आडिट के आदेश दिए (Times of India की 29 जनवरी 2014 की रिपोर्ट के अनुसार), इसी प्रकार दिल्ली जल बोर्ड द्वारा वाटर टैंकर डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम को लेकर बनाई गई फेक्ट फाईडिंग कमेटी ने साफतौर पर कहा था कि डिम्ट्स ने 36.59 करोड़ रुपया ज्यादा चार्ज किया था जिसके कारण दिल्ली सरकार को नुकसान हुआ था। श्री माकन ने कहा कि इसी प्रकार दिल्ली जल बोर्ड की 29 सितम्बर 2017 की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि डिम्ट्स की सारी सेवाओं को तुरंत प्रभाव से निरस्त किया गया था जिसमें वाटर टैंकर डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम भी था।
श्री माकन ने केजरीवाल सरकार से 1000 ई-बसों की खरीद में किए जाने वाले 750 करोड़ के घोटाले पर जवाब मांगा। श्री माकन ने केजरीवाल से यह भी पूछा कि उन्होंने डिम्ट्स को 2500 करोड़ के बसों की खरीद के कांट्रेक्ट में किस आधार पर कंसलटेंट के रुप में नियुक्त किया जबकि दिल्ली सरकार ने खुद डिम्ट्स को ब्लैक लिस्ट किया था।
श्री माकन ने कहा कि दिल्ली सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में दिए अपने एफिडेविट के पेज 3 पर पेरा 4 में यह झूठ बोला है कि उनको 40 ई-बसों के लिए 40 करोड़ रुपये की सहायता मिल गई है जबकि श्री भूरेलाल की अगुवाई वाली ईपीसीए कमेटी ने सर्वोच्च न्यायालय के सामने दी गई अपनी 15 मई 2018 की रिपोर्ट में है कि Department of Heavy Industries ने उनको बताया कि दिल्ली सरकार ने 40 बसों की खरीद के लिए शुरुआत में प्रोपोजल भेजा था परंतु प्रोजेक्ट के अनुसार उन्होने समय पर उसको फोलो नही किया और समय पर बिडिंग भी नही की, इसलिए जो राशि उपलब्ध थी वह अन्य शहरों को दे दी गई।
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